Tuesday, April 12, 2016

तलाकशुदा महिलाएं अपने पूर्व पति का नाम और उपनाम इस्तेमाल न करें: हाई कोर्ट

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तलाकशुदा महिलाएं अपने पूर्व पति का नाम और उपनाम इस्तेमाल न करें: हाई कोर्ट

 एक पुलिस इंस्पेक्टर के मामले की सुनवाई करते हुए मुंबई हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसके अनुसार तलाकशुदा महिलाओं द्वारा अपने पूर्व पति का नाम और उपनाम इस्तेमाल न करने को कहा गया है। इस इंस्पेक्टर का अपने विवाह के छह महीने बाद ही तलाक हो गया था। 1996 में यह मामला पारिवारिक अदालत में आया। जिसके बाद पहले बांद्रा पारिवारिक न्यायालय ने और बाद में हाईकोर्ट ने तलाक को मंजूरी दे दी। इसके बाद भी इंस्पेक्टर की तलाकशुदा पत्नी ने जब पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने का हवाला देकर उसके नाम और उपनाम का इस्तेमाल करना जारी रखा, तो इंस्पेक्टर ने बांद्रा फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर इसका विरोध किया।
 इस पर पिछले वर्ष मुंबई फैमिली कोर्ट के न्यायाधीश आर.आर. वाछा ने महिला के तलाकशुदा होने की पुष्टि होने पर उसे अपने पूर्व पति के नाम और उपनाम का इस्तेमाल न करने का आदेश दिया। फैमिली कोर्ट के इसी फैसले को उक्त महिला ने मुंबई हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट के न्यायाधीश रोशन दलवी ने अब फैमिली कोर्ट के फैसले को जायज ठहराते हुए कहा है कि तलाकशुदा महिला अपने पूर्व पति का नाम और उपनाम इस्तेमाल करना न सिर्फ बंद करें बल्कि बैंक खातों में भी इसका उल्लेख करना बंद करे। मुंबई हाईकोर्ट का यह फैसला कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस फैसले के आने के बाद अब भविष्य में बड़े राजनीतिक या औद्योगिक घरानों में विवाह होने के बाद तलाक लेने वाली महिलाओं को अपने पूर्व पति का नाम और उपनाम इस्तेमाल करना बंद करना पड़ सकता है।

तलाक के मामले में बच्चे की डीएनए जाँच तब तक नहीं, जब तक पिता न चाहे

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 उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है कि तलाक के मामले में किसी बच्चे के डीएनए परीक्षण के आदेश तब तक नहीं दिये जा सकते जब तक पति उसे अपना बच्चा नहीं होने का निश्चित आरोप नहीं लगाता। दूसरे शब्दों में, बच्चे के असल माता-पिता का पता लगाने के लिये उसका डीएनए परीक्षण तभी किया जा सकता है जब पति यह निश्चित आरोप लगाए वह बच्चा किसी दूसरे आदमी का है। हालांकि वह इस बात को तलाक के आधार के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकता।

 उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक सम्बन्ध होने के दौरान बच्चे का जन्म होने की स्थिति में उसकी वैधता की धारणा काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि तलाक की अर्जी दायर होने के वक्त विवाह के दोनों पक्षों का एक दूसरे से जरूरी वास्ता था। खासकर तब जब पति इस बात को जोर देकर ना कहे कि उसकी पत्नी का बच्चा किसी दूसरे मर्द से अवैध सम्बन्धों का नतीजा है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी तथा न्यायमूर्ति आर. एम. लोढ़ा की पीठ ने अपने निर्णय में पति भरतराम द्वारा दायर याचिका पर बच्चे का डीएनए परीक्षण कराने के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती देने वाली रामकन्या बाई द्वारा दायर अपील को बरकरार रखा। उच्च न्यायालय ने पति द्वारा सत्र न्यायालय में तलाक के मुकदमे की कार्यवाही के दौरान बच्चे की वैधता पर सवाल नहीं उठाए जाने के बावजूद उसका डीएनए परीक्षण कराने का निर्देश दिया था।

महिला द्वारा पति व ससुराल पर अत्याचार का झूठा मामला बन सकता है तलाक का आधार: हाई कोर्ट

बम्बई उच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि किसी महिला द्वारा अपने पति तथा ससुराल के लोगों पर अत्याचार का झूठा मामला दर्ज कराना भी तलाक का आधार बन सकता है। अदालत की पीठ ने हाल में एक मामले में तलाक मंजूर करते हुए कहा हमारी नजर में एक झूठे मामले में पति और उसके परिवार के सदस्यों की गिरफ्तारी से हुई उनकी बेइज्जती और तकलीफ मानसिक प्रताड़ना देने के समान है और पति सिर्फ इसी आधार पर तलाक की माँग कर सकता है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति एपी देशपांडे तथा न्यायमूर्ति आरपी सोंदुरबलदोता की पीठ ने पारिवारिक अदालत के उस फैसले से असहमति जाहिर की, जिसमें पत्नी द्वारा पति तथा उसके परिजनों के खिलाफ एक शिकायत दर्ज करवाना उस महिला के गलत आरोप लगाने की आदत की तरफ इशारा नहीं करता।

 पीठ ने कहा हम पारिवारिक अदालत की उस मान्यता सम्बन्धी तर्क को नहीं समझ पा रहे हैं कि सिर्फ एक शिकायत के आधार पर पति और उसके परिवार के लोगों की गिरफ्तारी से उन्हें हुई शर्मिंदगी और पीड़ा को मानसिक प्रताड़ना नहीं माना जा सकता। यह बेबुनियाद बात है कि मानसिक प्रताड़ना के लिए एक से ज्यादा शिकायतें दर्ज होना जरूरी है। यह मामला आठ मार्च 2001 को वैवाहिक बंधन में बँधे पुणे के एक दम्पति से जुड़ा है। पति ने आरोप लगाया था कि शादी की रात से ही उसकी पत्नी ने यह कहना शुरू कर दिया था कि उसके साथ छल हुआ है, क्योंकि उसे विश्वास दिलाया गया था कि वह मोटी तनख्वाह पाता है। पति का आरोप है कि उसकी पत्नी ने उसके तथा अपनी सास के खिलाफ क्रूरता का मुकदमा दायर किया था। बहरहाल, निचली अदालत ने सुबूतों के अभाव में दोनों लोगों को आरोपों से बरी कर दिया था। उसके बाद पति ने पारिवारिक अदालत में तलाक की अर्जी दी थी, लेकिन उस अदालत ने कहा कि पत्नी द्वारा एकमात्र शिकायत दर्ज कराने का यह मतलब नहीं है कि उसे झूठे मामले दायर कराने की आदत है। अदालत ने कहा था कि महज इस आधार पर तलाक नहीं लिया जा सकता। बहरहाल, बाद में उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले से असहमति जाहिर की।

पति के चरित्र पर अंगुली उठाना क्रूरता....

पति के चरित्र पर अंगुली उठाना क्रूरता

 पति के चरित्र पर अंगुली उठाने पर बांबे हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। अदालत ने इसे क्रूरता की श्रेणी में रखते हुए तलाक का पर्याप्त आधार बताया है। अदालत ने यह फैसला पति की तलाक याचिका को स्वीकार करते हुए दिया। साथ ही पति और उसकी बहनों (ननदों) के बीच नाजायज संबंधों का आरोप लगाने वाली महिला की कड़ी आलोचना भी की। न्यायमूर्ति एआर जोशी और एएम खानविल्कर की खंडपीठ ने 21 जून को आदेश दिया, ‘हम पारिवारिक कोर्ट के विवाह-विच्छेद के आदेश को बनाए रखने पर सहमत हैं। पत्नी द्वारा पति पर लगाए गए आरोप, क्रूरता की श्रेणी में आते हैं, इसलिए तलाक की डिक्री दी जाती है।’

 इस बीच हाई कोर्ट ने उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें पारिवारिक अदालत ने महिला व उसकी बेटी को गुजारा भत्ता तथा अलग आवास देने की याचिका को अस्वीकार कर दिया था। अदालत ने कहा कि यह उचित नहीं था और इसे ठीक से नहीं निपटाया गया। हाई कोर्ट ने महिला व उसकी बेटी को फैमिली कोर्ट के समक्ष नए सिरे से गुजारा भत्ता और अलग आवास देने वाली याचिका को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। पति को लिखे पत्र और पारिवारिक न्यायालय के समक्ष मौखिक साक्ष्यों तथा वाद-विवाद के दौरान महिला ने आरोप लगाया था कि उसके पति के अपनी बहनों से नाजायज संबंध हैं। खंडपीठ ने कहा, ‘पत्नी ने 11 मई 2006 को पति को लिखे पत्र में कहा, मुझे आप और आपकी बहनों के बीच नाजायज संबंध होने के संकेत दिखे हैं। ऐसे में हमारी राय में फैमिली कोर्ट द्वारा पारित डिक्री को क्रूरता के आधार पर वैध ठहराया जाना चाहिए।’ न्यायाधीशों ने कहा, ‘हमें इस फैसले में आरोप को बार-बार कहने से बचना चाहिए। उल्लेख करने के लिए इतना ही पर्याप्त है कि यह गंभीर और उपेक्षा करने वाली टिप्पणी है।’

कोई पढ़ेगा मेरे दिल का दर्द ?

भारत देश में ऐसा राष्टपति होना चाहिए जो देश के आम आदमी की बात सुने और भोग-विलास की वस्तुओं का त्याग करने की क्षमता रखता हो. ऐसा ना हो कि देश का पैसा अपनी लम्बी-लम्बी विदेश यात्राओं में खर्च करें. इसका एक छोटा-सा उदाहरण माननीय राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी है. जहाँ पर किसी पत्र का उत्तर देना भी उचित नहीं समझा जाता है. इसके लिए मेरा पत्र ही एक उधारण है | 
माननीय राष्ट्रपति जी, मैंने आपको पत्र भेजकर इच्छा मृत्यु की मांग की थी और पुलिस द्वारा परेशान किये जाने पर भी मैंने आपको पत्र भेजकर मदद करने की मांग की थी. अब लगभग एक साल मेरे भेजे पत्र को हो चुके है. आपके यहाँ से कोई मदद नहीं मिली. क्या अब मैं अपना जीवन अपने हाथों से खत्म कर लूँ. कृपया मुझे जल्दी से जबाब दें.
मैंने जब अपने वकीलों या अनेक व्यक्तियों को अपने केसों के बारें में और अपने व्यवहार के बारे में बताया तब उनका यहीं कहना था कि आपको अपनी पत्नी के इतने अत्याचार नहीं सहन करने चाहिए थें और उसको खूब अच्छी तरह से मारना चाहिए था. लगभग छह महीने पहले आए एक फोन पर मेरी पत्नी का कहना था कि-अगर तुमने कभी मारा होता तो तुम्हारा "घर" बस जाता. क्या मारने से घर बसते हैं ? क्या आज महिलाएं खुद मार खाना चाहती हैं ? क्या कोई महिला बिना मार खाए किसी का घर नहीं बसा सकती है ? इसके साथ एक और बिडम्बना देखें-मेरे ऊपर दहेज के लिए मारने-पीटने के आरोपों के केस दर्ज है और मेरी पत्नी के पास इसके कोई भी सबूत नहीं है. केस दर्ज होने के एक साल बाद मेरी पत्नी ने एक दिन फोन पर कहा था कि ये सब मैंने नहीं लिखवाया ये तो वकील ने लिखवाया है , क्योकि हमारा केस ही आपके खिलाफ दर्ज नहीं हो रहा था. फिर आदमी कहीं पर तो अपना गुस्सा तो निकलेगा. पाठकों आपको शायद मालूम हो हमारे देश में एक पत्नी द्वारा अपने पति और उसके परिजनों के खिलाफ एफ.आई.आर. लिखवाते समय कोई सबूत नहीं माँगा जाता है. इसलिए आज महिलाये दहेज कानून को अपने सुसराल वालों के खिलाफ "हथिहार" के रूप में प्रयोग करती है और मेरी पत्नी तो यहाँ तक कहती है कि मेरे बहन और जीजा आदि को फंसाने के लिए पुलिसे और वकील ने उकसाया था और एक दिन जब मैं अपनी बिमारी की वजह से "पेशी" पर नहीं गया था. तब उन्होंने मेरी पत्नी का "रेप" तक करने की कोशिश की थी. अब आप मेरी पत्नी का क्या-क्या सच मानेंगे. यह आप बताए. मैं यह बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ कि एक दिन झूठे का मुहँ काला होगा और सच्चे का बोलबाला होगा. मगर अभी तो पुलिस ने मेरे खिलाफ "आरोप पत्र" यानि चार्जशीट भी दाखिल नहीं की है. दहेज मांगने के झूठे केसों को निपटाने में लगने वाला "समय" और "धन" क्या मुझे वापिस मिल जायेगा. पिछले दिनों ही दिल्ली की एक निचली अदालत का एक फैसला अखवार में इसी तरह का आया है. उसमें पति को अपने आप को "निर्दोष" साबित करने में "दस" साल लग गए कि उसने या उसके परिवार ने अपनी पत्नी को दहेज के लिए कभी परेशान नहीं किया और ना उसको प्रताडित किया. क्या हमारे देश की पुलिस और न्याय व्यवस्था सभ्य व्यक्तियों को अपराधी बनने के लिए मजबूर नहीं कर रही है ? मैंने ऐसे बहुत उदाहरण देखे है कि जिस घर में पत्नी को कभी मारा पीटा नहीं जाता, उसी घर की पत्नी अपने पति के खिलाफ कानून का सहारा लेती है , जिस घर में हमेशा पति पत्नी को मारता रहता है. वो औरत कभी भी पति के खिलाफ नहीं जाती, क्योकि उसे पता है कि यह अगर अपनी हद पार कर गया तो मेरे सारे परिवार को ख़तम कर देगा , यह समस्या केवल उन पतियों के साथ आती है. जो कुछ ज्यादा ही शरीफ होते है.
जब तक हमारे देश में दहेज विरोधी लड़कों के ऊपर दहेज मांगने के झूठे केस दर्ज होते रहेंगे. तब तक देश में से दहेज प्रथा का अंत सम्भव नहीं है. आज मेरे ऊपर दहेज के झूठे केसों ने मुझे बर्बाद कर दिया. आज तक कोई संस्था मेरी मदद के लिए नहीं आई. सरकार और संस्थाएं दहेज प्रथा के नाम घडयाली आंसू खूब बहाती है, मगर हकीकत में कोई कुछ नहीं करना चाहता है.सिर्फ दिखावे के नाम पर कागजों में खानापूर्ति कर दी जाती है. आप भी अपने विचार यहाँ पर व्यक्त करें. लेखक से Only My Life Care पर जुड़े .......

तलाक होने पर पति भी मांग सकता हैपत्नी से गुजारा भत्ता......

तलाक होने पर पति भी मांग सकता हैपत्नी से गुजारा भत्ता......

सरकार ने हाल में हिंदू मैरिज एक्ट से जुड़े कानून में बदलाव करने का फैसला किया है। इसके लागू हो जाने के बाद तलाक लेना ज्यादा आसान हो जाएगा। वैसे, पहले से मौजूद कानून में कई ऐसे आधार हैं, जिनके तहत तलाक के लिए अर्जी दाखिल की जा सकती है। तलाक के आधार और इसकी मौजूदा प्रक्रिया के बारे में बता रहे हैं कमल हिन्दुस्तानी जी
तलाक के आधार
तलाक लेने के कई आधार हैं जिनकी व्याख्या हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-13 में की गई है। कानूनी जानकार अजय दिग्पाल का कहना है कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कोई भी (पति या पत्नी) कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे सकता है। व्यभिचार (शादी के बाहर शारीरिक रिश्ता बनाना), शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना, नपुंसकता, बिना बताए छोड़कर जाना, हिंदू धर्म छोड़कर कोई और धर्म अपनाना, पागलपन, लाइलाज बीमारी, वैराग्य लेने और सात साल तक कोई अता-पता न होने के आधार पर तलाक की अर्जी दाखिल की जा सकती है।
यह अर्जी इलाके के अडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज की अदालत में दाखिल की जा सकती है। अर्जी दाखिल किए जाने के बाद कोर्ट दूसरी पार्टी को नोटिस जारी करता है और फिर दोनों पार्टियों को बुलाया जाता है। कोर्ट की कोशिश होती है कि दोनों पार्टियों में समझौता हो जाए लेकिन जब समझौते की गुंजाइश नहीं बचती तो प्रतिवादी पक्ष को वादी द्वारा लगाए गए आरोपों के मद्देनजर जवाब दाखिल करने को कहा जाता है। आमतौर पर इसके लिए 30 दिनों का वक्त दिया जाता है। इसके बाद दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट मामले में ईशू प्रेम करती है और फिर गवाहों के बयान शुरू होते हैं यानी वादी ने जो भी आरोप लगाए हैं, उसे उसके पक्ष में सबूत देने होंगे।
कानूनी जानकार ललित अस्थाना ने बताया कि वादी ने अगर दूसरी पार्टी पर नपुंसकता या फिर बेरहमी का आरोप बनाया है तो उसे इसके पक्ष में सबूत देने होंगे। नपुंसकता, लाइलाज बीमारी या पागलपन के केस में कोर्ट चाहे तो प्रतिवादी की मेडिकल जांच करा सकती है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत फैसला देती है। अगर तलाक का आदेश होता है तो उसके साथ कोर्ट गुजारा भत्ता और बच्चों की कस्टडी के बारे में भी फैसला देती है।
एडवोकेट आरती बंसल ने बताया कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-24 के तहत दोनों पक्षों में से कोई भी गुजारे भत्ते के लिए किसी भी स्टेज पर अर्जी दाखिल कर सकता है। पति या पत्नी की सैलरी के आधार पर गुजारा भत्ता तय होता है। बच्चा अगर नाबालिग हो तो उसे आमतौर पर मां के साथ भेजा जाता है। पति या पत्नी दोनों में जिसकी आमदनी ज्यादा होती है, उसे गुजारा भत्ता देना पड़ सकता है।
आपसी रजामंदी से तलाक
आपसी रजामंदी से भी दोनों पक्ष तलाक की अर्जी दाखिल कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि दोनों पक्ष एक साल से अलग रहे हों। आपसी रजामंदी से लिए जाने वाले तलाक में आमतौर पर टेंपरामेंटल डिफरेंसेज की बात होती है। इस दौरान दोनों पक्षों द्वारा दाखिल अर्जी पर कोर्ट दोनों पक्षों को समझाने की कोशिश करता है। अगर समझौता नहीं होता, तो कोर्ट फर्स्ट मोशन पास करती है और दोनों पक्षों को छह महीने का समय देती है और फिर पेश होने को कहती है। इसके पीछे मकसद यह है कि शायद इतने समय में दोनों पक्षों में समझौता हो जाए।
छह महीने बाद भी दोनों पक्ष फिर अदालत में पेश होकर तलाक चाहते हैं तो कोर्ट फैसला दे देती है। आपसी रजामंदी के लिए दाखिल होने वाली अजीर् में तमाम टर्म एंड कंडिशंस पहले से तय होती हैं। बच्चों की कस्टडी के बारे में भी जिक्र होता है और कोर्ट की उस पर मुहर लग जाती है।
जूडिशल सैपरेशन
हिंदू मैरिज एक्ट में जूडिशल सैपरेशन का भी प्रोविजन है। यह तलाक से थोड़ा अलग है। इसके लिए भी अर्जी और सुनवाई तलाक की अर्जी पर होने वाली सुनवाई के जैसे ही होती है, लेकिन इसमें शादी खत्म नहीं होती। दोनों पक्ष बाद में चाहें तो सैपरेशन खत्म कर सकते हैं यानी जूडिशल सैपरेशन को पलटा जा सकता है, जबकि तलाक को नहीं। एक बार तलाक हो गया और उसके बाद दोनों लोग फिर से साथ आना चाहें तो उन्हें दोबारा से शादी करनी होगी।

किन मामलों में हो सकता है समझौता और किन में नहीं

किन मामलों में हो सकता है समझौता और किन में नहीं1 Jul 2012, 0900 hrs IST,नवभारत टाइम्स
देखने में आता है कि कई बार किसी मामले में शिकायती और आरोपी के बीच समझौता हो जाता है और केस खत्म होने के लिए संबंधित अदालत में अर्जी दाखिल की जाती है। केस रद्द करने का आदेश पारित हो जाता है। लेकिन कई ऐसे मामले भी हैं, जिनमें समझौता नहीं हो सकता। और ऐसे मामले भी हैं, जिनमें हाई कोर्ट की इजाजत से ही केस खत्म हो सकता है। क्या है कानूनी प्रावधान, बता रहे हैं राजेश चौधरी :

समझौतावादी मामले
सीआरपीसी के तहत मामूली अपराध वाले मामले को 'समझौतावादी अपराध' की कैटिगरी में रखा गया है। जैसे क्रिमिनल डिफेमेशन, मारपीट, जबरन रास्ता रोकना आदि से संबंधित मामले समझौता वादी अपराध की कैटिगरी में रखा गया है। कानूनी जानकार और हाई कोर्ट में सरकारी वकील नवीन शर्मा के मुताबिक समझौतावादी अपराध वह अपराध है, जो आमतौर पर मामूली अपराध की श्रेणी में रखा जाता है। ऐसे मामले में शिकायती और आरोपी दोनों आपस में समझौता कर कोर्ट से केस खत्म करने की गुहार लगा सकते हैं।

ऐसे मामले में अगर दोनों पक्षों में आपस में समझौता हो जाए और केस खत्म करने के लिए रजामंदी हो जाए तो इसके लिए इन्हें संबंधित कोर्ट के सामने अर्जी दाखिल करनी होती है। इस अर्जी में अदालत को बताया जाता है कि चूंकि दोनों पक्षों में समझौता हो गया है और मामला समझौतावादी है, ऐसे में केस रद्द किया जाना चाहिए। अदालत की इजाजत से केस रद्द किया जाता है। जो मामले समझौतावादी हैं, उसके निपटारे के लिए केस को लोक अदालत में भी रेफर किया जाता है। लोक अदालत ऐसे मामले में एक सुनवाई में केस का निपटारा कर देती है।

गैर समझौतावादी मामले 
जो मामले गैर समझौतावादी हैं, उसमें दोनों पक्षों के आपसी समझौते से केस खत्म नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट के वकील डी. बी. गोस्वामी के मुताबिक अगर मामला हत्या, बलात्कार, डकैती, फिरौती के लिए अपहरण सहित संगीन अपराध से संबंधित है तो ऐसे मामले में शिकायती और आरोपी के बीच समझौता होने से केस रद्द नहीं किया जा सकता। लेकिन किसी दूसरे गैर समझौतावादी मामले में अगर दोनों पक्षों में समझौता हो जाए तो भी हाई कोर्ट की इजाजत से ही एफआईआर रद्द की जा सकती है, अन्यथा नहीं। इसके लिए दोनों पक्षों को हाई कोर्ट में सीआरपीसी की धारा-482 के तहत अर्जी दाखिल करनी होती है और हाई कोर्ट से गुहार लगाई जाती है कि चूंकि दोनों पक्षों में समझौता हो गया है और इस मामले को आगे बढ़ाने से कोई मकसद हल नहीं होगा, ऐसे में हाई कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल कर केस रद्द करने का आदेश दे दे।

सीआरपीसी की धारा-482 में हाई कोर्ट के पास कई अधिकार हैं। हाई कोर्ट जब देखता है कि न्याय के लिए उसे अपने अधिकार का इस्तेमाल करना जरूरी है तब ऐसे मामलों में अपने अधिकार का इस्तेमाल करता है। देखा जाए तो दहेज प्रताड़ना से संबंधित मामले गैर समझौतावादी हैं, लेकिन अगर शिकायत करने वाली बहू फिर से अपने ससुराल में रहना चाहती हो और उसे अपने पति से समझौता हो चुका हो और ऐसी सूरत में दोनों पक्ष केस रद्द करवाना चाहते हैं तो वे हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर इसके लिए गुहार लगाते हैं।

कई बार अगर दोनों पक्ष इस बात के लिए सहमत हो जाते हैं कि उन्हें अब साथ नहीं रहना और आपसी रजामंदी से वह तलाक भी चाहते हैं और गुजारा भत्ता आदि देने के लिए पति तैयार हो जाता है तो ऐसी सूरत में भी दहेज प्रताड़ना मामले में दोनों पक्ष केस खत्म करने की गुहार लगाते हैं। तब हाई कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल कर केस रद्द करने का आदेश पारित कर सकता है। यानी गैर समझौतावादी केसों में हाई कोर्ट के आदेश से ही केस रद्द किया जा सकता है अन्यथा नहीं।

पति की हत्या में पत्नी और प्रेमी को उम्रकैद....

पति की हत्या में पत्नी और प्रेमी को उम्रकैद....
नई दिल्ली
अदालत ने अवैध संबंधों का विरोध करने पर पति की हत्या मामले में मृतक की पत्नी और उसके प्रेमी को उम्रकैद सुनाई है। अदालत ने घरेलू नौकरानी को सबूत नष्ट करने के इल्जाम से बरी कर दिया। अडिशनल सेशन जज अतुल कुमार गर्ग की अदालत ने मृतक की 11 साल की लड़की की गवाही को सबसे अहम माना। लड़की ने अदालत से कहा कि वारदात वाली रात मंदीप सिंह उनके घर आया था। पहले उसने उसकी मां परमजीत कौर के साथ मिलकर उसके पिता को शराब पिलाई। इसके बाद उसे और उसके भाई को नौकरानी के साथ दूसरे कमरे में भेज दिया था। अगले दिन उसके पिता मृत पाए गए थे।

पेश मामले के मुताबिक, 27-28 अक्टूबर 2007 को पुलिस को सूचना मिली थी कि डिफेंस कॉलोनी इलाके में रहने वाले एक शख्स की हत्या हो गई है। पुलिस ने मौके से खून से सना एक चाकू और लोहे का तवा भी बरामद किया। पुलिस को छानबीन से पता चला कि मृतक हरभजन सिंह की पत्नी परमिंदर कौर के किसी मंदीप सिंह नामक शख्स से अवैध संबंध थे। हरभजन सिंह इसका विरोध करता था।

पुलिस ने महिला को हिरासत में लेकर उससे सख्ती से पूछताछ की तो उसने सच बयान कर दिया। पुलिस ने उससे मिली जानकारी के आधार पर मंदीप सिंह को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने सबूत नष्ट करने के आरोप में मृतक की नौकरानी चंदा को भी गिरफ्तार किया। पुलिस ने जब मृतक की लड़की से पूछताछ की तो उसने इस बात का खुलासा किया कि मंदीप सिंह अकसर उनके घर पर आता था। जब भी वह घर आता था उनकी मां उन्हें दूसरे कमरे में भेज देती थी। वारदात वाली रात भी वह उनके घर पर आया था।

अभियोजन पक्ष ने मृतक के बच्चों सहित 21 गवाहों को अदालत में पेश किया। अदालत ने गवाहों के बयान और अभियोजन पक्ष की दलील सुनने के बाद मंदीप सिंह और परमिंदर कौर को हत्या और सबूत नष्ट करने का दोषी करार देते हुए उन्हें उम्रकैद सुनाई। अदालत ने दोनों पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना भी किया। वहीं अदालत ने नौकरानी को संदेह का लाभ देते हुए उसे बरी कर दिया।

दहेज केस में समझौता देगा बेस्ट ऑप्शन

दहेज केस में समझौता देगा बेस्ट ऑप्शन
दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी किए जाने को लेकर लॉ कमिशन सिफारिश करने की तैयारी में है। दरअसल अभी तक दहेज प्रताड़ना का मामला गैर समझौता वादी है और इस मामले में समझौता होने के बाद भी केस रद्द करने के लिए हाई कोर्ट से गुहार लगानी पड़ती है और दोनों पक्षों की दलील से संतुष्ट होने के बाद ही हाई कोर्ट मामला रद्द करने का आदेश देती है लेकिन अगर केस समझौता वादी हो जाए तो मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में ही अर्जी दाखिल कर मामले में समझौता किया जा सकता है। मैजिस्ट्रेट मामले को खत्म कर सकता है। कानूनी जानकार बताते हैं कि दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी किए जाने का बेहतर परिणाम देखने को मिलेगा।
जानकार बताते हैं कि कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि दहेज प्रताड़ना से संबंधित मामले को टूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कई बार हाई कोर्ट भी सख्त टिप्पणी कर चुकी है। 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस जे. डी. कपूर ने अपने एक ऐतिहासिक जजमेंट में कहा था कि ऐसी प्रवृति जन्म ले रही है जिसमें कई बार लड़की न सिर्फ अपने पति बल्कि उसके तमाम रिश्तेदार को ऐसे मामले में लपेट देती है। एक बार ऐसे मामले में आरोपी होने के बाद जैसे ही लड़का व उसके परिजन जेल भेजे जाते हैं तलाक का केस दायर कर दिया जाता है। नतीजतन तलाक के केस बढ़ रहे हैं। अदालत ने कहा था कि धारा-498 ए से संबंधित मामले में अगर कोई गंभीर चोट का मामला न हो तो उसे समझौता वादी बनाया जाना चाहिए। अगर दोनों पार्टी अपने विवाद को खत्म करना चाहते हैं तो उन्हें समझौते के लिए स्वीकृति दी जानी चाहिए। धारा-498 ए (दहेज प्रताड़ना) के दुरुपयोग के कारण शादी की बुनियाद को हिला रहा है और समाज के लिए यह अच्छा नहीं है।

अदालत का वक्त होता है खराब 

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस (रिटायर्ड) आर. एस. सोढी ने बताया कि कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि पति-पत्नी के बीच गर्मागर्मी के कारण दोनों एक दूसरे के खिलाफ तोहमत लगाते हैं और इस कारण मामला कोर्ट में आ जाता है। लेकिन बाद में दोनों पक्ष को महसूस होता है कि मामले में समझौते की गुंजाइश बची हुई है और दोनों पक्ष अगर समझौता करना चाहें तो उसका प्रावधान होना चाहिए। अभी के प्रावधान के तहत ऐसे मामले में अगर दोनों पक्ष मामला खत्म भी करना चाहें तो उन्हें एफआईआर रद्द करने के लिए हाई कोर्ट में इसके लिए अर्जी दाखिल करनी होती है कई बार दोनों पक्ष कोर्ट के बाहर समझौता कर लेते हैं और अदालत में ट्रायल के दौरान मुकर जाते हैं ऐसे में अदालत का वक्त बर्बाद होता है। अगर दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी बनाया जाएगा तो निश्चित तौर पर ऐसे मामलों की पेंडेंसी में कमी आएगी।

और भी विकल्प खुले हैं 

जानेमाने सीनियर लॉयर के . टी . एस . तुलसी ने कहा कि मामला समझौता वादी किए जाने से भी दोषी को बच निकलने का कोई चांस नहीं है। लेकिन इसका फायदा यह है कि अगर दोनों पक्ष चाहता है कि वह मामला खत्म कर भविष्य में फिर से साथ रहेंगे तो भी समझौता किए जाने का प्रावधान बेहतर विकल्प होगा अगर दोनों इस बात पर सहमत हों कि अब उन्हें साथ नहीं रहना तो भी आपसी सहमति से तलाक लिए जाने के एवज में दोनों मामले को सेटल कर सकेंगे। वैसे भी दहेज प्रताड़ना मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद भी अधिकतम 3 साल कैद की सजा का प्रावधान है। 3 साल तक की सजा वाले अधिकांश मामले समझौता वादी हैं ऐसे में इसे भी समझौता वादी किया जाना जरूरी है।

महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं 

जानीमानी वकील मीनाक्षी लेखी ने कहा कि दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी किया जाए और मामला गैर जमानती बना रहे तो दोषी को बचने का चांस नहीं रहेगा। ज्यादातर समझौता वादी केस जमानती होता है लेकिन दहेज प्रताड़ना मामला गैर जमानती है और ऐसी स्थिति में लड़का पक्ष को यह पता होगा कि अगर वह गलती करेंगे तो जेल जाएंगे। अगर किसी भी सूरत में समझौते की गुंजाइश है तो वह समझौते का रास्ता अपना सकते हैं और इस तरह पीडि़ता को जल्दी न्याय मिलेगा। निश्चित तौर पर कई बार देखने को मिलता है कि दहेज प्रताड़ना से संबंधित केस का दुरुपयोग किया जाता है लेकिन कई बार यह भी देखने को मिलता है कि लड़की को इस तरह प्रताडि़त किया जाता है कि वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती ऐसे में दहेज प्रताड़ना से संबंधित कानून में किसी भी तरह की ढिलाई ठीक नहीं होगी। यह कानून इसीलिए बनाया गया ताकि महिलाओं को सुरक्षा दी जा सके और काफी हद तक इस कारण महिलाएं अपने आप को काफी सुरक्षित महसूस करती हैं।

प्रेमी किरायेदार के साथ मिलकर पत्नी ने की पति की हत्या.......

प्रेमी किरायेदार के साथ मिलकर पत्नी ने की पति की हत्या.......
नई दिल्ली
किरायेदार के साथ प्रेम संबंध थे और इस कारण पति को रास्ते से हत्या की योजना बनाई गई और फिर किरायेदार के साथ मिलकर पति की हत्या को अंजाम दिया गया। निचली अदालत ने इस मामले में सोनिया और उसके किरायेदार सतपाल को उम्रकैद सुनाई। मामला हाई कोर्ट के सामने आया। हाई कोर्ट ने कहा कि सोनिया ने सतपाल के साथ मिलकर हत्या की साजिश रची। दोनों की अपील खारिज कर दी गई। सोनिया इस मामले में खुद ही शिकायती बनी थी।

मामला 2004 का है। उत्तम नगर इलाके में रहने वाली सोनिया उर्फ गुड्डो ने बयान दिया कि जब वह अपने एक जानकार राकेश के साथ घर पहुंची तो उसके पति घर में लहूलुहान पड़े हुए थे। पुलिस के मुताबिक, 23 सितंबर 2004 को सोनिया ने बयान दिया कि वह अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने गई थी। वापस आई तो उसके पति ने कहा कि उनके जानने वाले राकेश को बुलाकर ले आए। वह राकेश के साथ जब घर पहुंची तो उसके पति मनोज कुमार मरे पड़े थे।

इस दौरान उसने राकेश से कहा कि वह पुलिस को इत्तला न करे लेकिन पड़ोसियों ने पुलिस को इत्तला की। पुलिस ने सोनिया के बयान के आधार पर हत्या का केस दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी। पुलिस ने सोनिया की बेटी और राकेश का बयान दर्ज किया। दोनों के बयान सोनिया के बयान से मेल नहीं खा रहे थे। पुलिस को शिकायती सोनिया पर शक हुआ और उसने दोबारा सोनिया से पूछताछ की। सोनिया ने पुलिस के सामने इकबालिया बयान दिया। सोनिया के बयान के आधार पर पुलिस ने खून से सना तौलिया और अन्य कपड़ें बरामद किए। उसके बयान के आधार पर इस मामले का दूसरा आरोपी सतपाल करनाल रोड से गिरफ्तार किया गया। सतपाल के बयान के आधार पर लोहे की पाइप बरामद की गई जिससे हत्या को अंजाम दिया गया था। यह मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था।
अदालती सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि सतपाल सोनिया और मनोज का किरायेदार था। दोनों में अवैध संबंध थे। मनोज की बेटी ने बयान दिया कि उसने सुबह 7:15 बजे अपने पिता मनोज, मां सोनिया और सतपाल को एक साथ घर में देखा था। सतपाल कुसीर् पर बैठा था जबकि मनोज नीचे। दूसरी तरफ सोनिया ने पुलिस को बयान दिया था कि सतपाल सुबह 5:30 से 6 के बीच घर से निकल गया था। इस मामले में 19 गवाह बनाए गए। निचली अदालत ने हत्या की साजिश में सोनिया और सतपाल को उम्रकैद सुनाई जबकि सतपाल को हत्या के लिए भी उम्रकैद सुनाई गई।

मामला हाई कोर्ट के सामने आया। हाई कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य से साफ है कि सतपाल पेइंग गेस्ट के तौर पर मनोज के घर रहता था। राकेश उन सभी को जानते थे। राकेश ने बयान दिया था कि अक्सर सोनिया और सतपाल एक साथ मजार जाते थे। जब वह सोनिया के साथ घर पहुंचे तो सोनिया ने दरवाजा चाबी से खोला और अंदर मनोज मरा पड़ा था। अदालत ने कहा कि सतपाल और सोनिया में प्रेम संबंध था और इसी कारण मनोज को रास्ते से हटाया गया।

'पापा अंदर जल रहे थे, मां ने बाहर से दरवाजा बंद किया'

'पापा अंदर जल रहे थे, मां ने बाहर से दरवाजा बंद किया'


नई दिल्ली। पति-पत्नी के बीच झगड़ा आम बात है लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसी कौन सी परिस्थिति पैदा हो गई कि बाथरुम में बंद पति आग की लपटों में घिरा रहा और पत्नी बाहर खड़ी तमाशा देखती रही? आखिर 18 साल की शादी के बाद ऐसी कौन सी नौबत आ गई कि पत्नी बेटी के सामने ही इतना क्रूर रवैया अपनाती रही? पिता मदद के लिए चिल्लाता रहा और मां ने बेटी को जकड़ कर रख लिया? मनोवैज्ञानिकों की मानें तो इसकी वजह सामान्य नहीं हो सकती। झगड़े के इतने बड़े रूप लेने की वजह तभी हो सकती है जब वो शख्स साइको हो।

दरअसल नाबालिग बेटी की मानें तो मां जसलीन पिता हरपाल से अलग होना चाहती थी। कई सालों से अनबन होने की वजह से जल्द ही दोनों का तलाक होने वाला था। जबकि संपत्ति को लेकर दोनों के बीच विवाद बढ़ता ही जा रहा था। मां पैसे मांगती थी जबकि पिता इसे लिखित में चाहते थे। साथ ही इस बात को भी लिखित में चाहते थे कि अब तक जसलीन ने हरपाल से क्या कुछ लिया है? इसी संपत्ति के विवाद में मां पिता के खिलाफ खौफनाक साजिश रचने लगी।

मनोवैज्ञानिकों की मानें तो ऐसी स्थिति में झगड़े की वजह को समझना बहुत जरूरी होता है। साथ ही ऐसे मामले में मनोवैज्ञानिकों की राय लेनी जरूरी होती है। क्योंकि अगर इसका सही समय पर इलाज नहीं कराया गया तो कभी कभी ये स्वभाव मानसिक बीमारी की शक्ल ले लेता है। जिसे आम तौर पर लोग समझ नहीं पाते।

कुल मिलाकर दिल्ली के भोगल में जो कुछ हुआ उसने हर किसी को हैरान कर दिया है। ये साफ कर दिया है कि मामूली झगड़ा किस तरह से एक बड़ी घटना का रूप ले सकता है।
बता दें कि कुछ दिनों पहले तक ये मामला हादसा बताने की कोशिश की जाती रही। दरअसल घर में जले इनवर्टर, बैटरी कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे थे लेकिन बेटी ने जैसे ही मां के खिलाफ मुंह खोला साजिश की कड़ियां खुद ब खुद जुड़ने लगीं। बेटी के बयान के बाद ही मां को गिरफ्तार कर लिया गया है।
ये सवाल महीने भर तक कर गुत्थी बने रहे। जब तक बेटी सामने नहीं आई लेकिन जैसे ही मामला खुला पिता की मौत का राज सामने आ गया। पुलिस के मुताबिक शुरुआती तफ्तीश में इस मामले को हादसा करार देने की भरसक कोशिश की गई। दरअसल पुलिस के मुताबिक इस मामले में कोई गवाह सामने नहीं था।
घर में जला हुआ इनवर्टर मिला, बैट्री में आग लग गई थी, वहां जले हुए कपड़े मिले लेकिन जैसे ही बेटी सामने आई पुलिस ने सबसे पहले सीआरपीसी की धारा 164 के तहत कोर्ट में बेटी का बयान दर्ज कराया। इस बयान के अलावा पुलिस ने परिस्थितिजन्य सबूतों और फॉरेंसिक रिपोर्ट के मद्देनजर जसलीन को गिरफ्तार कर लिया।
लेकिन सवाल ये है कि आखिर ऐसी कौन सी स्थिति पैदा हो गई कि मां पर ही पिता की हत्या का आरोप लग रहा है। आखिर क्यों मां ने बेटी को रोकने की कोशिश की। बेटी की मानें तो घर में मां-पिता के बीच अक्सर झगड़ा होता था। मां पिता से अलग होना चाहती थी, साथ ही पैसे की मांग भी करती थी।
वैसे 15 साल की इस नाबालिग बेटी की मानें तो कई दिनों से मां के इरादे खौफनाक थे। मां ने बकायदा अपनी पति की हत्या की साजिश रची। कुछ दिन पहले से ही ऐसे काम करने लगी थीं। जिस पर उसने शुरू में तो ध्यान नहीं दिया लेकिन अब जब पिता की जिंदा जलकर मौत हो चुकी है तो हत्या की साजिश की कड़ी जुड़ती नजर आ रही है।
बेटी के मुताबिक पिता की मौत के मामले में मां के खिलाफ कई सबूत हैं। पहला सबूत ये है कि घटना से कई दिन पहले ही उसने नायलॉन से कपड़े निकालने शुरू कर दिए जो आग लगने की जगह पर मिला। दूसरा सबूत ये है कि बाथरूम की कुंडी पर तार लगाया गया ताकि वो अंदर से न खुल पाए।
तीसरा सबूत ये है कि जब बाथरुम में आग लगी तो मां वहां खड़ी तमाशा देखती रही। चौथा सबूत ये है कि जब बेटी और दूसरे लोगों ने बचाने की कोशिश की तो न सिर्फ उसने रोका बल्कि ये भी कहा कि अंदर कोई नहीं है। अब बेटी की एक ही ख्वाहिश है कि उसकी मां को सजा मिले ताकि उसके पिता को इंसाफ मिल सके।
यही नहीं मैकेनिकल इंजीनियर हरपाल सिंह का परिवार भी उनकी पत्नी के खिलाफ आरोप लगा रहा है। हरपाल गुड़गांव की एक कंपनी में काम करते थे लेकिन आते जाते अक्सर नीचे के फ्लोर में रह रही अपनी मां से मिलते थे। हरपाल की मां की मानें तो वो अक्सर पत्नी की ज्यादती की शिकायत करता रहता था।
हरपाल की जसलीन से शादी 1994 में हुई थी लेकिन शुरू से ही दोनों में काफी लड़ाई होती थी। हरपाल की मां की मानें तो घटना वाले दिन भी बहू की हरकत संदेह के घेरे में रही। इनके मुताबिक अगर पत्नी बाथरुम और घर का दरवाजा खोल देती तो हरपाल की जिंदगी बचाई जा सकती थी।
इस घटना के बाद पुलिस ने कई बार हरपाल की नाबालिग बेटी के साथ पूछताछ की है। बेटी की अब एक ही इच्छा है कि मां को उसके किए की सजा मिले और पिता को इंसाफ मिले। इसके लिए जितनी भी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। इसके लिए वो तैयार है।

Monday, April 11, 2016

498a (दहेज़ एक्ट) का दुरूपयोग

धारा 498a और घरेलू हिंसा और उत्पीडन के दुरुपयोग के खिलाफ एक प्रयास

यह कानून आप के लिए किस क़दर खतरनाक है और आप किस प्रकार खतरे में है और यह समाज के लिए कितना घातक है --
आपकी पत्नी द्वारा पास के पुलिस स्टेशन पर 498a दहेज़ एक्ट या घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक लिखित झूठी शिकायत करती है तो आप, आपके बुढे माँ- बाप और रिश्तेदार फ़ौरन ही बिना किसी विवेचना के गिरफ्तार कर लिए जायेंगे और गैर-जमानती टर्म्स में जेल में डाल दिए जायेंगे भले चाहे की गई शिकायत फर्जी और झूठी ही क्यूँ न हो! आप शायेद उस गलती की सज़ा पा जायेंगे जो आपने की ही नही और आप अपने आपको निर्दोष भी साबित नही कर पाएँगे और अगर आपने अपने आपको निर्दोष साबित कर भी लिया तब तक शायेद आप आप न रह सके बल्कि समाज में एक जेल याफ्ता मुजरिम कहलायेंगे और आप का परिवार समाज की नज़र में क्या होगा इसका अंदाजा आप लगा सकते है
498a दहेज़ एक्ट या घरेलू हिंसा अधिनियम को केवल आपकी पत्नी या उसके सम्बन्धियों के द्वारा ही निष्प्रभावी किया जा सकता है आपकी पत्नी की शिकायत पर आपका पुरा परिवार जेल जा सकता है चाहे वो आपके बुढे माँ- बाप हों, अविवाहित बहन, भाभी (गर्भवती क्यूँ न हों) या 3 साल का छोटा बच्चा शिकायत को वापस नही लिया जा सकता और शिकायत दर्ज होने के बाद आपका जेल जाना तय है ज्यादातर केसेज़ में यह कम्पलेंट झूठी ही साबित होती है और इस को निष्प्रभावी करने के लिए स्वयं आपकी पत्नी ही आपने पूर्व बयान से मुकर कर आपको जेल से मुक्त कराती है आपका परिवार एक अनदेखे तूफ़ान से घिर जाएगा साथ ही साथ आप भारत के इस सड़े हुए भ्रष्ट तंत्र के दलदल में इस कदर फसेंगे की हो सकता आपका या आपके परिवार के किसी फ़र्द का मानसिक संतुलन ही न बिगड़ जाए यह कानून आपकी पत्नी द्वारा आपको ब्लेकमेल करने का सबसे खतरनाक हथियार है इसलिए आपको शादी करने से पूर्व और शादी के बाद ऐसी भयानक परिस्थिति का सामना न करना पड़े इसके लिए कुछ एहतियात की ज़रूरत होगी जो की इसी ब्लॉग पर मौजूद है आप उसे पढ़े और सतर्क रहे

एफआईआर में नाम होने मात्र के आधार पर पति-संबन्धियों के विरुद्ध धारा-498ए का मुकदमा नहीं होना चाहिये -उच्चतम न्यायालय.....

एफआईआर में नाम होने मात्र के आधार पर पति-संबन्धियों के विरुद्ध धारा-498ए का मुकदमा नहीं होना चाहिये -उच्चतम न्यायालय.....

• डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

भारत की सबसे बड़ी अदालत, अर्थात् सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनेक बार इस बात पर चिन्ता प्रकट की जा चुकी है कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498-ए का जमकर दुरुपयोग हो रहा है। जिसका सबसे बड़ा सबूत ये है कि इस धारा के तहत तर्ज किये जाने वाले मुकदमों में सज

ा पाने वालों की संख्या मात्र दो फीसदी है! यही नहीं, इस धारा के तहत मुकदमा दर्ज करवाने के बाद समझौता करने का भी कोई प्रावधान नहीं है! ऐसे में मौजूदा कानूनी व्यवस्था के तहत एक बार मुकदमा अर्थात् एफआईआर दर्ज करवाने के बाद वर पक्ष को मुकदमे का सामना करने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं बचता है। जिसकी शुरुआत होती है, वर पक्ष के लोगों के पुलिस के हत्थे चढने से और वर पक्ष के जिस किसी भी सदस्य का भी, वधु पक्ष की ओर से धारा 498ए के तहत एफआईआर में नाम लिखवा दिया जाता है, उन सबको बिना ये देखे कि उन्होंने कोई अपराध किया भी है या नहीं उनकी गिरफ्तारी करना पुलिस अपना परम कर्त्तव्य समझती है!
ऐसे मामलों में आमतौर पर पुलिस पूरी मुस्तेदी दिखाती देखी जाती है। जिसकी मूल में मेरी राय में दो बड़े कारण हैं। पहला तो यह कि यह कानून न्यायशास्त्र के इस मौलिक सिद्धान्त का सरेआम उल्लंघन करता है कि आरोप लगाने के बाद आरोपों को सिद्ध करने का दायित्व अभियोजन या परिवादी पर नहीं डालकर आरोपी को कहता है कि “वह अपने आपको निर्दोष सिद्ध करे।” जिसके चलते पुलिस को इस बात से कोई लेना-देना नहीं रहता कि बाद में चलकर यदि कोई आरोपी छूट भी जाता है तो इसके बारे में उससे कोई सवाल-जवाब किये जाने की समस्या नहीं होगी। वैसे भी पुलिस से कोई सवाल-जवाब किये भी कहाँ जाते हैं?
दूसरा बड़ा कारण यह है कि ऐसे मामलों में पुलिस को अपना रौद्र रूप दिखाने का पूरा अवसर मिलता है और सारी दुनिया जानती है कि रौद्र रूप दिखाते ही सामने वाला निरीह प्राणी थर-थर कांपने लगता है! पुलिस व्यवस्था तो वैसे ही अंग्रेजी राज्य के जमाने की अमानवीय परम्पराओं और कानूनों पर आधारित है! जहॉं पर पुलिस को लोगों की रक्षक बनाने के बजाय, लोगों को डंडा मारने वाली ताकत के रूप में जाना और पहचाना जाता है! ऐसे में यदि कानून ये कहता हो कि 498ए में किसी को भी बन्द कर दो, यह चिन्ता कतई मत करो कि वह निर्दोष है या नहीं! क्योंकि पकड़े गये व्यक्ति को खुद को ही सिद्ध करना होगा कि वह दोषी नहीं है। अर्थात् अरोपी को अपने आपको निर्दोष सिद्ध करने के लिये स्वयं ही साक्ष्य जुटाने होंगे। ऐसे में पुलिस को पति-पक्ष के लोगों का तेल निकालने का पूरा-पूरा मौका मिल जाता है।
अनेक बार तो खुद पुलिस एफआईआर को फड़वाकर, अपनी सलाह पर पत्नीपक्ष के लोगों से ऐसी एफआईआर लिखवाती है, जिसमें पति-पक्ष के सभी छोटे बड़े लोगों के नाम लिखे जाते हैं। जिनमें-पति, सास, सास की सास, ननद-ननदोई, श्‍वसुर, श्‍वसुर के पिता, जेठ-जेठानियाँ, देवर-देवरानियाँ, जेठ-जेठानियों और देवर-देवरानियों के पुत्र-पुत्रियों तक के नाम लिखवाये जाते हैं। अनेक मामलों में तो भानजे-भानजियों तक के नाम घसीटे जाते हैं। पुलिस ऐसा इसलिये करती है, क्योंकि जब इतने सारे लोगों के नाम आरोपी के रूप में एफआईआर में लिखवाये जाते हैं तो उनको गिरफ्तार करके या गिरफ्तारी का भय दिखाकर अच्छी-खासी रिश्‍वत वसूलना आसान हो जाता है और अपनी तथाकथित अन्वेषण के दौरान ऐसे आलतू-फालतू-झूठे नामों को रिश्‍वत लेकर मुकदमे से हटा दिया जाता है। जिससे अदालत को भी अहसास कराने का नाटक किया जाता है कि पुलिस कितनी सही जाँच करती है कि पहली ही नजर में निर्दोष दिखने वालों के नाम हटा दिये गये हैं।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश द्वय टीएस ठाकुर और ज्ञानसुधा मिश्रा की बैंच का हाल ही में सुनाया गया यह निर्णय कि “केवल एफआईआर में नाम लिखवा देने मात्र के आधार पर ही पति-पक्ष के लोगों के विरुद्ध धारा-498ए के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिये”, स्वागत योग्य है| यद्यपि यह इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। जब तक इस कानून में से आरोपी के ऊपर स्वयं अपने आपको निर्दोष सिद्ध करने का भार है, तब तक पति-पक्ष के लोगों के ऊपर होने वाले अन्याय को रोक पाना असम्भव है, क्योंकि यह व्यवस्था न्याय का गला घोंटने वाली, अप्राकृतिक और अन्यायपूर्ण कुव्यवस्था है!

सरकार, पुलिस और लड़की वालों का गुंडाराज कब तक चलेगा ?

सरकार, पुलिस और लड़की वालों का गुंडाराज कब तक चलेगा ? 

चर्चित निशा शर्मा केस यू.पी. का है. उसमें फंसे मेरे मित्र मुनीष दलाल को नौ साल "अदालत" में चले मामले में दोषी नहीं माना. लेकिन इन नौ साल में उसका कैरियर बर्बाद हो गया. नौ साल कोर्ट के चक्कर लगाते हुए लाखों रूपये खर्च हो गए. क्या बिगाड़ लिया यू.पी. पुलिस और सरकार ने "निशा शर्मा" का ? यह तो उदाहरण मात्र एक ही केस है. ऐसे अब तक लाखों केस झूठे साबि
त हो चुके है. आज लड़की वालों की तरफ से दहेज मांगने के लाखों केस राज्य सरकार पूरे देश भर में लड़ रही है. जिसमें एक सर्व के अनुसार 94 % केस झूठे साबित हो रहे है, जिसके कारण न्याय मिलने में देरी हो रही है और जजों का कीमती समय खराब होने के साथ ही देश को आर्थिक नुकसान होने के साथ ही लाखों पुरुष मानसिक दबाब ना सहन नहीं कर पाने के कारण आत्महत्या कर लेते है. सरकार और देश की अदालतें आँख बंद करके बैठी हुई है. यदि सरकार कुछ नहीं कर रही है तो जजों को चाहिए कि लड़की वालों को सख्त से सख्त सजा देते हुए पुरुष को मुआवजा दिलवाए. जजों को एक-दो मामलों खुद संज्ञान लेकर लड़की वालों पर कार्यवाही करने की जरूरत है. फिर कोई भी लड़की वाला झूठे केस दर्ज नहीं करवाएगा. इससे दोषी को सजा मिलेगी और निर्दोष शोषित नहीं होगा. दहेज के झूठे मामलों को सुप्रीम कोर्ट अपनी एक टिप्पणी में "घरेलू आतंकवाद" की संज्ञा दे चुका है. आज अपराध हर राज्य में हो रहे है. बस कुछ हाई प्रोफाइल ही हमारे सामने आ पाते है, बाकियों की एफ.आई.आर ही दर्ज नहीं होती है.            रमेश कुमार सिरफिरा जी

कंप्लेंट केस में शिकायती को कोर्ट में देना होता है सबूत.

आए दिन अदालत में कंप्लेंट केस दाखिल किया जाता है और उस मामले में शिकायती के बयान दर्ज किए जाते हैं। अगर कोर्ट बयान से संतुष्ट हो जाए तो आरोपी के नाम समन जारी किया जाता है। इस तरह के कंप्लेंट केस कब दाखिल किए जाते हैं और इसके लिए क्या कानूनी प्रावधान है, बता रहे हैं |

संज्ञेय अपराध के लिए .....
अगर किसी संज्ञेय मामले में पुलिस सीधे एफआईआर दर्ज नहीं करती तो शिकायती सीआरपीसी की धारा-156 (3) के तहत अदालत में अर्जी दाखिल करता है और अदालत पेश किए गए सबूतों के आधार पर फैसला लेती है। कानूनी जानकार बताते हैं कि ऐसे मामले में पुलिस के सामने दी गई शिकायत की कॉपी याचिका के साथ लगाई जाती है और अदालत के सामने तमाम सबूत पेश किए जाते हैं। इस मामले में पेश किए गए सबूतों और बयान से जब अदालत संतुष्ट हो जाए तो वह पुलिस को निर्देश देती है कि इस मामले में केस दर्ज कर छानबीन करे।

असंज्ञेय अपराध के लिए...... 
मामला असंज्ञेय अपराध का हो तो अदालत में सीआरपीसी की धारा-200 के तहत कंप्लेंट केस दाखिल किया जाता है। कानूनी जानकार डी. बी. गोस्वामी के मुताबिक कानूनी प्रावधानों के तहत शिकायती को अदालत के सामने तमाम सबूत पेश करने होते हैं। उन दस्तावेजों को देखने के साथ-साथ अदालत में प्रीसमनिंग एविडेंस होता है। यानी प्रतिवादी को समन जारी करने से पहले का एविडेंस रेकॉर्ड किया जाता है।

प्रतिवादी कब बनता है आरोपी .......
शिकायती ने जिस पर आरोप लगाया है, वह तब तक आरोपी नहीं है, जब तक कि कोर्ट उसे बतौर आरोपी समन जारी न करे। यानी शिकायती ने जिस पर आरोप लगाया है, वह प्रतिवादी होता है और अदालत जब शिकायती के बयान से संतुष्ट हो जाए तो वह प्रतिवादी को बतौर आरोपी समन जारी करती है और इसके बाद ही प्रतिवादी को आरोपी कहा जाता है, उससे पहले नहीं। क्रिमिनल लॉयर अजय दिग्पाल के मुताबिक कंप्लेंट केस में शिकायती के बयान से अगर अदालत संतुष्ट न हो तो केस उसी स्टेज पर खारिज कर दिया जाता है। एक बार अदालत से समन जारी होने के बाद आरोपी अदालत में पेश होता है और फिर मामले की सुनवाई शुरू होती है।

पुलिस केस और कंप्लेंट केस में फर्क ........
कंप्लेंट केस में शिकायती को हर तारीख पर पेश होना होता है। लेकिन शिकायत पर अगर सीधे पुलिस ने केस दर्ज कर लिया हो या फिर अदालत के आदेश से पुलिस ने केस दर्ज किया हो तो शिकायती की हर तारीख पर पेशी जरूरी नहीं है। ऐसे मामले में जिस दिन शिकायती का बयान दर्ज होना होता है, उसी दिन शिकायती को कोर्ट जाने की जरूरत होती है। कंप्लेंट केस में शिकायती को तमाम सबूत अदालत के सामने देने होते हैं, जबकि पुलिस केस में पुलिस मामले की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट अदालत में पेश करती है। पुलिस केस में शिकायती और आरोपी के बीच समझौता होने के बाद कोर्ट की इजाजत से केस रद्द किया जा सकता है, वहीं कंप्लेंट केस में शिकायती चाहे तो केस वापस ले सकता है। 

पति देगा 10 लाख, दहेज का केस रद्द...

नई दिल्ली।। दहेज प्रताड़ना के एक मामले में दोनों पक्षों में समझौता हो जाने और इसके मुताबिक पत्नी को 10 लाख रुपये देने पर पति के राजी होने के बाद हाई कोर्ट ने इस मामले में दर्ज एफआईआर रद्द करने का निर्देश दिया। अदालत ने आरोपी को बतौर हर्जाना 25 हजार रुपये डिफरेंटली एबल्ड वकीलों के लिए बनाए गए फंड में देने का आदेश भी दिया।

इस मामले में आरोपी पति ने हाई कोर्ट में अर्जी देकर कहा कि उसका अपनी पत्नी से समझौता हो चुका है, दोनों में तलाक हो चुका है और पत्नी को इस बात से ऐतराज नहीं है कि केस रद्द कर दिया जाए। इसके लिए पत्नी की ओर से दी गई अंडरटेकिंग भी अदालत में पेश की गई। अदालत को बताया गया कि तलाक के दौरान साढ़े 6 लाख रुपये पत्नी को दिए गए और बाकी साढ़े तीन लाख रुपये अदालत में दिए जा रहे हैं। इस दौरान सरकारी वकील नवीन शर्मा ने दलील दी कि इस मामले में पुलिस का काफी वक्त जाया हुआ है। केस में गवाही चल रही है, ऐसे में अगर इस स्टेज पर केस रद्द किया जाए तो आरोपी पर हर्जाना लगाया जाना चाहिए। इसके बाद अदालत ने आरोपी पर हर्जाना लगाया और निर्देश दिया कि वह 25 हजार रुपये बार काउंसिल ऑफ दिल्ली के डिसेबल्ड लॉयर्स के फंड में जमा करे।

यह मामला चांदनी महल इलाके का है। 14 जुलाई, 2006 को आरोपी पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना और अमानत में खयानत का केस दर्ज किया गया। अभियोजन पक्ष के मुताबिक, यह शादी 21 मई, 2005 को हुई थी। शादी के बाद 3 मार्च, 2006 को लड़की ने बच्ची को जन्म दिया। बाद में पति-पत्नी में अनबन शुरू हो गई और फिर लड़की ने अपने पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज कराया। इस दौरान महिला ने अपने पति और ससुरालियों के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत भी केस दर्ज कराया। बाद में वह अपनी बच्ची को लेकर चली गई। उसने भरण पोषण संबंधी अर्जी भी दाखिल की। इस दौरान पति ने बच्ची की कस्टडी के लिए याचिका दायर की। फिर यह मामला मध्यस्थता केंद्र को रेफर हो गया और तब इनमें समझौता हो गया और दोनों पक्ष केस वापस लेने को राजी हो गए। साथ ही दोनों तलाक लेने को भी राजी हुए। इस दौरान यह तय हुआ कि पति अपनी पत्नी को 10 लाख रुपये देगा। इसी समझौते के तहत पति ने सवा तीन लाख रुपये तलाक के पहले मोशन पर जबकि सवा तीन लाख रुपये दूसरे मोशन पर दिए और बाकी साढ़े तीन लाख रुपये हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान पत्नी के हवाले किया। 

दहेज प्रताड़ना : महिला 1, पति 2

नई दिल्ली।। अदालत में दहेज प्रताड़ना का एक अनोखा केस चल रहा है। पीड़ित महिला ने अपने पहले पति को तलाक दिए बिना दूसरी शादी कर ली, लेकिन यह शादी भी ज्यादा नहीं चल पाई। लिहाजा महिला ने दूसरे पति को भी छोड़ दिया। महिला ने अपने दोनों पतियों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना के तहत पुलिस में कंप्लेंट कर दी।

पुलिस ने महिला की कंप्लेंट पर पहले पति और उसके परिवार वालों के साथ-साथ दूसरे पति के खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया। फिलहाल इस केस की सुनवाई महिला कोर्ट की मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट एकता गाबा की अदालत में चल रही है। अदालत ने सरकारी पक्ष को गवाही शुरू कराने का आदेश दिया है।

पेश मामले के मुताबिक जनकपुरी इलाके में रहने वाली बलजिंदर कौर की शादी नवंबर 1990 में बलविंदर सिंह (दोनों बदले हुए नाम) के साथ हुई थी। लड़की वालों ने अपनी हैसियत के मुताबिक दहेज भी दिया था। बलविंदर सिंह का मुंबई में भी घर था। लिहाजा शादी होते ही वह लड़की को साथ लेकर मुंबई चला गया। शादी के कुछ समय बाद ही ससुराल वालों ने लड़की को दहेज के लिए प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। 13 जनवरी 1991 को पहली लोहड़ी मनाने बलजिंदर कौर अपने मायके आई। यहां आने के बाद भी ससुराल वालों ने उसके परिवार वालों के सामने दहेज की डिमांड रखी। लड़की के पिता ने उसी वक्त उधार लेकर 20,000 रुपये लड़की के ससुराल वालों को दिए। इसके बाद वह वापस मुंबई लौट गई।

वापस लौटने के बाद भी उसे लगातार दहेज के लिए प्रताडि़त किया जाता रहा। परेशान होकर उसने अपने पति का घर छोड़ दिया। कुछ समय तक अकेला रहने के बाद उसने योगेंद्र सिंह उर्फ टोनी (बदला हुआ नाम) से दूसरी शादी कर ली। दुर्भाग्यवश महिला की दूसरे पति से भी बन नहीं पाई। लिहाजा महिला ने दूसरे पति को भी छोड़ दिया।

महिला ने पहले पति सास, ससुर और ननद के अलावा दूसरे पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना की कंप्लेंट की। कंप्लेट में महिला ने बलविंदर सिंह और योगेंद्र सिंह को अपना पति बताया है। कंप्लेंट में कहीं पर भी इस बात का जिक्र नहीं है कि उसने पहले पति को तलाक देकर दूसरी शादी की। पुलिस ने अपना पल्ला झाड़ते हुए पांचों आरोपियों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का दर्ज कर लिया। इस मामले में एफआईआर 2001 में दर्ज की गई थी, लेकिन अभी तक मामला लटका हुआ है। फाइल जब ट्रांसफर होकर मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट एकता गाबा की अदालत में पहुंची तो अदालत भी यह देखकर हैरान रह गई कि महिला के दो-दो पतियों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मुकदमा कैसे दर्ज हो सकता है? बहरहाल, अब इसमें गवाही शुरू होगी।

Tuesday, April 5, 2016

मानव अधिकार आयोग

आयोग का उद्देश्य – भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों के इंसान की तरह सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार प्रदान कर रखा है। इंसान, इंसान ही होता है हैवान नहीं हो सकता, फिर भी हमारे देश का एक वर्ग इंसान को हैवान की तरह बांधने, बांधने के बाद छोड़कर हंकाने और कभी-कभी इंसान के सम्मान को छोड़कर बाकी सभी सुख-सुविधाएं उन्हें मुहैया करने के पक्ष में है। अब तो इस मशीनी युग में सारा काम मशीन से किया जाता है और उन मशीनों को चलाने वाले इंसानी दिमाग होते हैं। इस मशीनों का मालिक मशीनों को ठीक-ठाक रखने के लिए इसके रख-रखाव पर ठीक-ठाक खर्च करता है, उसी तरह इस मशीनी युग से पहले जब हमारा समाज जानवरों पर निर्भर करता था, खेती से लेकर ढुलाई तक काम और उससे पहले राजा महाराजा लड़ाई में जानवरों का इस्तेमाल किया करते थे। राजाओं की सेना में घोड़ों और हाथियों के अस्तबल हुआ करते थे और उनकी देखभाल के लिए भी इसी तरह के इंसान लगाये जाते थे जिस तरह आज मशीनों की देखभाल के लिए लगाए जाते हैं। खेती और ढुलाई का काम जानवरों से लेने वाले लोग भी जानवरों की देखभाल इतनी करते थे कि एक-दूसरे में होड़ लगती थी, किसका जानवर कितना अच्छा और मजबूत है। आज हमारा कारपोरेट पुराने राजाओं और खेतीहरों की तरह जानवर की जगह इंसान पाल रहा है और ये पालतू इंसान बहुत खुश होता है, कार्पोरेट से अच्छी सुख-सुविधाएं प्राप्त करके।
भारतीय समाज में जानवरों की तरह अच्छी सुख-सुविधा प्राप्त करके जी-तोड़ मेहनत करने की ललक पैदा हुई है। विदेश जाकर अच्छे कर्पोरट्स के अस्तबल में रखे जाते हैं, कहीं से उनको किसी तरह से चिन्ता न हो और पूरी लगन के साथ अपने मालिक की सेवा करें और अपनी मेधा उसके लिए ही खर्च करें, हमारा देश हमारा समाज उनके लिए कुछ नहीं है और जिसमें उनका भला है उसी में लगे हैं। यही काॅरपोरेट हमारे देश में अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए प्रयासरत है, अपनी कम्पनियों से मिलने वाला मुनाफा हम देशवासियों को आपस में लड़ाने पर भी खर्च करता है और साथ ही उस मशीनरी पर भी जो देश का प्रशासन चलाती है।
आये दिन देश को कमजोर करने के उद्देश्य से देश के अलग-अलग हिस्सों में ब्लास्ट होते हैं और उन ब्लास्ट में असली गुनहगार गिरफ्त में नहीं आते और बेगुनाहों को पकड़ कर उनका इन्काउन्टर कर दिया जाता है या फिर मौका पाकर उन्हें किसी ब्लास्ट में अभियुक्त बना दिया जाता है या फिर ऐसी घटना में अभियुक्त बनाया जाता है जो कभी घटित न हुई हो। बेगुनाहों को पकड़कर हफ्तों-महीनों और कुछ एक को वर्षों प्रताड़ित किया जाता है और बाद में उनकी गिरफ्तारी दिखाई जाती है और इस प्रकार उनसे सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार छीन लिया जाता है। बेगुनाहों को उनकी गिरफ्तारी की असली तारीख से फर्जी तारीख तक के बीच में जिस तरह प्रताड़ित किया जाता है उस पर मानव अधिकार आयोग यह कहकर विचार नहीं करता कि बाद में उनके खिलाफ मुकदमा कायम हुआ है और उनकी गिरफ्तारी सही है जबकि मानव अधिकार आयोग का यह कर्तव्य बनता है कि देश के नागरिकों द्वारा की जाने वाली इस प्रकार की शिकायतों की जांच अपने स्तर से करे और उसी एजेन्सी से वह जांच न कराए जिसके खिलाफ पीड़ित व्यक्ति की शिकायत है। यदि ऐसा न किया गया तो पुलिस उत्पीड़न और फर्जी इन्काउन्टर का यह सिलसिला बन्द होने वाला नहीं है। आयोग के लिए अपने विवेक इस्तेमाल करना आवश्यक है न कि शासन और प्रशासन का एक अंग बना रहना।
विकाश आर्या 

भारत का संविधान (पूर्ण पाठ)


इस पृष्‍ठ में सामग्रियों की एक सूची है जो आपको उस पृष्‍ठ के संगत अनुभाग में ले जाएगी। कुछ अनुभाग शीर्ष पोर्टेबल डॉक्‍यूमेंट फॉर्मेट (पीडीएफ) में खुलते हैं जो हिन्‍दी में भारतीय संविधान प्रदर्शित करते हैं। ये पीडीएफ फाइलें एक नई विंडो में खुलती हैं।
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विषयसूची

आमुख(हिन्‍दी पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

भाग I: संघ और उसका राज्‍य क्षेत्र(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
1संघ का नाम और राज्‍य क्षेत्र
2नए राज्‍यों का प्रवेश या स्‍थापना
2क[निरसन]
3नए राज्‍यों का निर्माण और वर्तमान राज्‍यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन
4पहली अनुसूची और चौथी अनुसूचियों के संशोधन तथा अनुपूरक, और पारिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्‍छेद 2 और अनुच्‍छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियां

भाग II: नागरिकता(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
5संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता
6पाकिस्‍तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
7पाकिस्‍तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
8भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
9विदेशी राज्‍य की नागरिकता, स्‍वेच्‍छा से अर्जित करने वाले व्‍यक्तियों का नागरिक न होना
10नागरिकता के अधिकारों को बना रहना
11संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना

भाग III: मूल अधिकार(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

साधारण

अनुच्‍छेदविवरण
12परिभाषा
13मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्‍पीकरण करने वाली विधियां

समता का अधिकार

अनुच्‍छेदविवरण
14विधि के समक्ष समानता
15धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्‍म स्‍थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध
16लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता
17अस्‍पृश्‍यता का अंत
18उपाधियों का अंत

स्‍वतंत्रता का अधिकार

अनुच्‍छेदविवरण
19वाक-स्‍वतंत्रता आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण
20अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
21प्राण और दैहिक स्‍वतंत्रता का संरक्षण
22कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण

शोषण के विरुद्ध अधिकार

अनुच्‍छेदविवरण
23मानव और दुर्व्‍यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध
24कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध

धर्म की स्‍वतंत्रता का अधिकार

अनुच्‍छेदविवरण
25अंत:करण की और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्‍वतंत्रता
26धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्‍वतंत्रता
27किसी विशिष्‍ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्‍वतंत्रता
28कुल शिक्षा संस्‍थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्‍वतंत्रता

संस्‍कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार

अनुच्‍छेदविवरण
29अल्‍पसंख्‍यक-वर्गों के हितों का संरक्षण
30शिक्षा संस्‍थाओं की स्‍थापना और प्रशासन करने का अल्‍पसंख्‍यक-वर्गों का अधिकार
31[निरसन]

कुछ विधियों की व्‍यावृत्ति

अनुच्‍छेदविवरण
31कसंपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्‍यावृत्ति
31खकुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्‍यकरण
31गकुछ निदेशक तत्‍वों को प्रभाव करने वाली विधियों की व्‍यावृत्ति
31घ[निरसन]

सांविधानिक उपचारों का अधिकार

अनुच्‍छेदविवरण
32इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार
32A[निरसन]
33इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद की शक्ति
34जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निर्बन्‍धन
35इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने का विधान

भाग IV: राज्‍य की नीति के निदेशक तत्‍व(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
36परिभाषा
37इस भाग में अंतर्विष्‍ट तत्‍वों का लागू होना
38राज्‍य लोक कल्‍याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्‍यवस्‍था बनाएगा
39राज्‍य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्‍व
39कसमान न्‍याय और नि:शुल्‍क विधिक सहायता
40ग्राम पंचायतों का संगठन
41कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार
42काम की न्‍यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध
43कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि
43कउद्योगों के प्रबंध में कार्मकारों का भाग लेना
44नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता
45बालकों के लिए नि:शुल्‍क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध
46अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्‍य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि
47पोषाहार स्‍तर और जीवन स्‍तर को ऊंचा करने तथा लोक स्‍वास्‍थ्‍य को सुधार करने का राज्‍य का कर्तव्‍य
48कृषि और पशुपालन का संगठन
48कपर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन और वन तथा वन्‍य जीवों की रक्षा
49राष्‍ट्रीय महत्‍व के संस्‍मारकों, स्‍थानों और वस्‍तुओं का संरक्षण
50कार्यपालिका से न्‍यायपालिका का पृथक्‍करण
51अंतरराष्‍ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि

भाग IVक: मूल कर्तव्‍य(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
51Aमूल कर्तव्‍य

भाग V: संघ(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अध्‍याय I. कार्यपालिका

राष्‍ट्रपति और उपराष्‍ट्रपति

अनुच्‍छेदविवरण
52भारत के राष्‍ट्रपति
53संघ की कार्यपालिका शक्ति
54राष्‍टप्रति का निर्वाचन
55राष्‍ट्रपति के निर्वाचन की रीति
56राष्‍ट्रपति की पदावधि
57पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता
58राष्‍ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताएं
59राष्‍टप्रति के पद के लिए शर्तें
60राष्‍ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
61राष्‍ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रकिया
62राष्‍ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्‍यक्ति की पदावधि
63भारत का उप राष्‍ट्रपति
64उप राष्‍ट्रपति का राज्‍य सभा का पदेन सभापति होना
65राष्‍ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसकी अनुपस्थिति में उप राष्‍टप्रति का राष्‍ट्रपति के रूप में कार्य करना या उसके कृत्‍यों का निर्वहन
66उप राष्‍ट्रपति का निर्वाचन
67उप राष्‍ट्रपति की पदावधि
68उप राष्‍ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्‍यक्ति की पदावधि
69उप राष्‍ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
70अन्‍य आकस्मिकताओं में राष्‍ट्रपति के कृत्‍यों का निर्वहन
71राष्‍ट्रपति या उप राष्‍ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्‍त विषयत
72क्षमता आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राष्‍ट्रपति की शक्ति
73संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्‍तार

मंत्रि-परिषद


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अनुच्‍छेदविवरण
74राष्‍ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रि-परिषद
75मंत्रियों के बारे में अन्‍य उपबंध

भारत का महान्‍यायवादी


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अनुच्‍छेदविवरण
76भारत का महान्‍यायवादी

सरकारी कार्य का संचालन


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अनुच्‍छेदविवरण
77भारत सरकार के कार्य का संचालन
78राष्‍ट्रपति को जानकारी देने आदि के संबंध में प्रधानमंत्री के कर्तव्‍य

अध्‍याय II. संसद

साधारण

अनुच्‍छेदविवरण
79संसद का गठन
80राज्‍य सभा की संरचना
81लोक सभा की संरचना
82प्रत्‍येक जनगणना के पश्‍चात पुन: समायोजन
83संसद के सदनों की अवधि
84संसद की सदस्‍यता के लिए अर्हता
85संसद के सत्र, सत्रावसान और विघटन
86सदनों के अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्‍टप्रति का अधिकार
87राष्‍ट्रपति का विशेष अभिभाषण
88सदनों के बारे में मंत्रियों और महान्‍यायवादी के अधिकार

संसद के अधिकारी

अनुच्‍छेदविवरण
89राज्‍य सभा का सभापति और उप सभापति
90उप सभापति का पद रिक्‍त होना, पदत्‍याग और पद से हटाया जाना
91सभापति के पद के कर्तव्‍यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की उप सभापति या अन्‍य व्‍यक्ति की शक्ति
92जब सभापति या उप सभापति को पद से हटाने का कोई संकल्‍प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
93लोक सभा और अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष
94अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष का पद रिक्‍त होना, पद त्‍याग और पद से हटाया जाना
95अध्‍यक्ष के पद के कर्तव्‍यों को पालन करने या अध्‍यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्‍यक्ष या अन्‍य व्‍यक्ति की शक्ति
96जब अध्‍यक्ष या उपाध्‍यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्‍प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
97सभापति और उप सभापति तथा अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष के वेतन और भत्ते
98संसद का सचिवालय

कार्य संचालन

अनुच्‍छेदविवरण
99सदस्‍यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
100सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति

सदस्‍यों की निरर्हताएं

अनुच्‍छेदविवरण
101स्‍थानों का रिक्‍त होना
102सदस्‍यता के लिए निरर्हताएं
103सदस्‍यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्‍नों पर विनिश्‍चय
104अनुच्‍छेद 99 के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने से पहले या निरर्हित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शास्ति

संसद और उसके सदस्‍यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्‍मुक्तियां

अनुच्‍छेदविवरण
105संसद के सदनों की तथा उनके सदस्‍यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार आदि
106सदस्‍यों के वेतन और भत्ते

विधायी प्रक्रिया

अनुच्‍छेदविवरण
107विधेयकों के पुर: स्‍थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपलबंध
108कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्‍त बैठक
109धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया
110"धन विधेयक" की परिभाषा
111विधेयकों पर अनुमति

वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया

अनुच्‍छेदविवरण
112वार्षिक वित्तीय विवरण
113संसद में प्राक्‍कलनों के संबंध में प्रक्रिया
114विनियोग विधेयक
115अनुपूरक, अतिरिक्‍त या अधिक अनुदान
116लेखानुदान, प्रत्‍ययानुदान और अपवादानुदान
117वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध

साधारणतया प्रक्रिया

अनुच्‍छेदविवरण
118प्रक्रिया के नियम
119संसद में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन
120संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा
121संसद में चर्चा पर निर्बंधन
122न्‍यायालयों द्वारा संसद की कार्यवाहियों की जांच न किया जाना

अध्‍याय III. राष्‍ट्रपति की विधायी शक्तियां

अनुच्‍छेदविवरण
123संसद के विश्रांतिकाल में अध्‍यादेश प्रख्‍यापित करने की राष्‍ट्रपति की शक्ति

अध्‍याय IV. संघ की न्‍यायपालिका

अनुच्‍छेदविवरण
124उच्‍चतम न्‍यायालय की स्‍थापना और गठन
125न्‍यायाधीशों के वेतन आदि
126कार्यकारी मुख्‍य न्‍यायमूर्ति की नियुक्ति
127तदर्थ न्‍यायाधीशों की नियुक्ति
128उच्‍चतम न्‍यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्‍यायाधीशों की उपस्थिति
129उच्‍चतम न्‍यायालय का अभिलेख न्‍यायालय होना
130उच्‍चतम न्‍यायालय का स्‍थान
131उच्‍चतम न्‍यायालय की आरंभिक अधिकारिता
131क[निरसन]
132कुछ मामलों में उच्‍च न्‍यायालयों से अपीलों में उच्‍चतम न्‍यायालय की अपीली अधिकारिता
133उच्‍च न्‍यायालयों में सिविल विषयों से संबंधित अपीलों में उच्‍चतम न्‍यायालय की अपीली अधिकारिता
134दांडिक विषयों में उच्‍चतम न्‍यायालय की अपीली अधिकारिता
134कउच्‍चतम न्‍यायालय में अपील के लिए प्रमाणपत्र
135विद्यमान विधि के अधीन फेडरल न्‍यायालय की अधिकारिता और शक्तियों का उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा प्रयोक्‍तव्‍य होना
136अपील के लिए उच्‍चतम न्‍यायालय की विशेष इजाजत
137निर्णयों या आदेशों का उच्‍चतम न्‍यायालयों द्वारा पुनर्विलोकन
138उच्‍चतम न्‍यायालय की अधिकारिता की वृद्धि
139कुछ रिट निकालने की शक्तियों का उच्‍चतम न्‍यायालय को प्रदत्त किया जाना
139ककुछ मामलों का अंतरण
140उच्‍चतम न्‍यायालय की आनुषंगिक शक्तिया
141उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्‍यायालयों पर आबद्धकर होना
142उच्‍चतम न्‍यायालय की डिक्रियों और आदेशों का प्रवर्तन और प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश
143उच्‍चतम न्‍यायालय से परामर्श करने की राष्‍ट्रपति की शक्ति
144सिविल और न्‍यायिक प्राधिकारियों द्वारा उच्‍चतम न्‍यायालय
144क[निरसन]
145न्‍यायालय के नियम आदि
146उच्‍चतम न्‍यायालय के अधिकारी और सेवक तथा व्‍यय
147निर्वचन

अध्‍याय V. भारत के नियंत्रक-महा लेखापरीक्षक

अनुच्‍छेदविवरण
148भारत का नियंत्रक - महा लेखापरीक्षक
149नियंत्रक महा लेखापरीक्षक के कर्तव्‍य और शक्तियां
150संघ के और राज्‍यों के लेखाओं का प्ररूप
151संपरीक्षा प्रतिवेदन

भाग VI: राज्‍य(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अध्‍याय I. साधारण

अनुच्‍छेदविवरण
152परिभाषा

अध्‍याय II. कार्यपालिका

राज्‍यपाल

अनुच्‍छेदविवरण
153राज्‍यों के राज्‍यपाल
154राज्‍य की कार्यपालिका शक्ति
155राज्‍यपाल की नियुक्ति
156राज्‍य की पदावधि
157राज्‍यपाल के पद के लिए शर्तें
158राज्‍यपाल के पद के लिए शर्तें
159राज्‍यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
160कुछ आकस्मिकताओं में राज्‍यपाल के कृत्‍यों का निर्वहन
161क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राज्‍यपाल की शक्ति
162राज्‍य की कार्यपालिका शक्ति का विस्‍तार

मंत्रि परिषद

अनुच्‍छेदविवरण
163राज्‍यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रि परिषद
164मंत्रियों के बारे में अन्‍य उपबंध

राज्‍य का महाविधवक्‍ता

अनुच्‍छेदविवरण
165राज्‍य का महाधिवक्‍ता

सरकारी कार्य का संचालन

अनुच्‍छेदविवरण
166राज्‍य की सरकार के कार्य का संचालन
167राज्‍यपाल को जानकारी देने आदि के संबंध में मुख्‍यमंत्री के कर्तव्‍य

अध्‍याय III. राज्‍य का विधान मंडल

साधारण

अनुच्‍छेदविवरण
168राज्‍यों के विधान - मंडलों का गठन
169राज्‍यों में विधान परिषदों का उत्‍सादन या सृजन
170विधान सभाओं की संरचना
171विधान परिषदों की संरचना
172राज्‍यों के विधान-मंडलों की अवधि
173राज्‍य के विधान-मंडल की सदस्‍यता के लिए अर्हता
174राज्‍य के विधान-मंडल के सत्र, सत्रावहसान और विघटन
175सदन और सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्‍यपाल का अधिकार
176राज्‍यपाल का विशेष अभिभाषण
177सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्‍ता के अधिकार

राज्‍य के विधान-मंडल के अधिकारी

अनुच्‍छेदविवरण
178विधान सभा का अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष
179अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष का पद रिक्‍त होना, पदत्‍याग और पद से हटाया जाना
180अध्‍यक्ष के पद के कर्तव्‍यों का पालन करने या अध्‍यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्‍यक्ष या अन्‍य व्‍यक्ति की शाक्ति
181जब अध्‍यक्ष या उपाध्‍यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्‍प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
182विधान परिषद का सभापति और उप सभापति
183सभापति और उप सभापति का पद रिक्‍त होना, पदत्‍याग और पद से हटाया जाना
184सभापति के पद के कर्तव्‍यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की उप सभापति या अन्‍य व्‍यक्ति की शक्ति
185जब सभापति या उप सभापति को पद से हटाने का कोई संकल्‍प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
186अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष तथ सभापति और उप सभापति के वेतन और भत्ते
187राज्‍य के विधान मंडल का सचिवालय

कार्य संचालन

अनुच्‍छेदविवरण
188सदस्‍यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
189सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति

सदस्‍यों की निरर्हताएं

अनुच्‍छेदविवरण
190स्‍थानों का रिक्‍त होना
191सदस्‍यता के लिए निरर्हताएं
192सदस्‍यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्‍नों पर विनिश्‍चय
193अनुच्‍छेद 188 के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञा करने से पहले या अर्हित न होते हुए या निरर्हित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शास्ति

राज्‍यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्‍यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्‍मुक्तियां

अनुच्‍छेदविवरण
194विधान-मंडलों के सदनों की तथा सदस्‍यों और समितियों की शक्तियां, विशेषधिकार आदि
195सदस्‍यों के वेतन और भत्ते

विधायी प्रक्रिया

अनुच्‍छेदविवरण
196विधेयकों के पुर: स्‍थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध
197धन विधेयकों से भिन्‍न विधेयकों के बारे में विधान परिषद की शक्तियों पर निर्बंधन
198धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया
199"धन विधेयक" की परिभाषा
200विधेयकों पर अनुमति
201विचार के लिए आरक्षित विधेयक

वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया

अनुच्‍छेदविवरण
202वार्षिक वित्तीय विवरण
203विधान-मंडल में प्राक्‍कलनों के संबंध में प्रक्रिया
204विनियोग विधेयक
205अनुपूरक, अतिरिक्‍त या अधिक अनुदान
206लेखानुदान, प्रत्‍ययानुदान और अपवादानुदान
207वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध

साधारणतया प्रक्रिया

अनुच्‍छेदविवरण
208प्रक्रिया के नियम
209राज्‍य के विधान-मंडल में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन
210विधान मंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा
211विधान-मंडल में चर्चा पर निर्बंधन
212न्‍यायालयों द्वारा विधन मंडल की कार्यवाहियों की जांच न किया जाना

अध्‍याय IV. राज्‍यपाल की विधायी शाक्ति

अनुच्‍छेदविवरण
213विधान मंडल के विश्रांतिकाल में अध्‍यादेश प्रख्‍याति करने की राज्‍यपाल की शक्ति

अध्‍याय V. राज्‍यों के उच्‍च न्‍यायालय

अनुच्‍छेदविवरण
214राज्‍यों के लिए उच्‍च न्‍यायालय
215उच्‍च न्‍यायालयों का अभिलेख न्‍यायालय होना
216उच्‍च न्‍यायालयों का गठन
217उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीश की नियुक्ति और उसके पद की शर्तें
218उच्‍चतम न्‍यायालय से संबंधित कुछ उपबंधों का उच्‍च न्‍यायालयों का लागू होना
219उच्‍च न्‍यायालयों के न्‍यायाधीशों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
220स्‍थायी न्‍यायाधीश रहने के पश्‍चात विधि-व्‍यवसाय पर निर्बंधन
221न्‍यायाधीशों के वेतन आदि
222किसी न्‍यायाधीश का एक उच्‍च न्‍यायालय से दूसरे उच्‍च न्‍यायालय को अंतरण
223कार्यकारी मुख्‍य न्‍यायमूर्ति की नियुक्ति
224अपर और कार्यकारी न्‍यायाधीशों की नियुक्ति
224कउच्‍च न्‍यायालयों की बैठकों में सेवानिवृत्त न्‍यायाधीशों की नियुक्ति
225विद्यमान उच्‍च न्‍यायालयों की अधिकारिता
226कुछ रिट निकालने की उच्‍च न्‍यायालय की शक्ति
226क[निरसन]
227सभी न्‍यायालयों के अधीक्षण की उच्‍च न्‍यायालय की शक्ति
228कुछ मामलों का उच्‍च न्‍यायालय को अंतरण
228क[निरसन]
229उच्‍च न्‍यायालयों के अधिकारी और सेवक तथा व्‍यय
230उच्‍च न्‍यायालयों की अधिकारिता का संघ राज्‍य क्षेत्रों पर विस्‍तार
231दो या अधिक राज्‍यों के लिए एक ही उच्‍च न्‍यायालय की स्‍थापना

अध्‍याय VI. अधीनस्‍थ न्‍यायालय

अनुच्‍छेदविवरण
233जिला न्‍यायाधीशों की नियुक्ति
233ककुछ जिला न्‍यायाधीशों की नियुक्तियों का और उनके द्वारा किए गए निर्णयों आदि का विधिमान्‍यकरण
234न्‍यायिक सेवा में जिला न्‍यायाधीशों से भिन्‍न व्‍यक्तियों की भर्ती
235अधीनस्‍थ न्‍यायालयों पर नियंत्रण
236निर्वचन
237कुछ वर्ग या वर्गों के मजिस्‍ट्रेटों पर इस अध्‍याय के उपबंधों का लागू होना

भाग VII: पहली अनुसूची के भाग ख के राज्‍य(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
238[निरसन]

भाग VIII: संघ राज्‍य क्षेत्र(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
239संघ राज्‍यक्षेत्रों का प्रशासन
239ककुछ संघ राज्‍य क्षेत्रों के लिए स्‍थानीय विधान मंडलों या मं‍त्रि-परिषदों का या दोनों का सृजन
239कदिल्‍ली के संबंध में विशेष उपबंध
239ककसांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध
239कखविधान मंडल के विश्रांतिकाल में अध्‍यादेश प्रख्‍यापित करने की प्रशासक की शक्ति
240कुछ संघ राज्‍य क्षेत्रों के लिए विनियम बनाने की राष्‍ट्रपति की शक्ति
241संघ राज्‍य क्षेत्रों के लिए उच्‍च न्‍यायालय
242[निरसन]

भाग IX: पंचायत(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
243परिभाषाएं
243कग्राम सभा
243खपंचायतों का गठन
243गपंचायतों की संरचना
243घस्‍थानों का आरक्षण
243डपंचायतों की अवधि, आदि
243चसदस्‍यता के लिए निरर्हताएं
243छपंचायतों की शक्तियां, प्राधिकार और उत्तरदायित्‍व
243जपंचायतों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियां और उनकी निधियां
243-झवित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन
243ञपंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा
243टपंचायतों के लिए निर्वाचन
243ठसंघ राज्‍य क्षेत्रों को लागू होना
243डइस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू नह होना
243ढविद्यमान विधियों और पंचायतों का बना रहना
243-णनिर्वाचन संबंधी मामलों में न्‍यायालयों के हस्‍तक्षेप का वर्जन

भाग IX क: नगरपालिकाएं(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
243तपरिभाषाएं
243थनगरपालिकाओं का गठन
243दनगरपालिकाओं की संरचना
243धवार्ड समितियों, आदि का गठन और संरचना
243नस्‍थानों का आरक्षण
243पनगरपालिकाओं की अवधि, आदि
243फसदस्‍यता के लिए निरर्हताएं
243बनगरपालिकाओं, आदि की शक्तियां, प्राधिकार और उत्तरदायित्‍व
243भनगरपालिकाओं द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्ति और उनकी निधियां
243मवित्त आयोग
243यनगरपालिकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा
243यकनगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन
243यखसंघ राज्‍यक्षेत्रों को लागू होना
243यगइस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना
243यघजिला योजना के लिए समिति
243यडमहानगर योजना के लिए समिति
243यचविद्यमान विधियों और नगरपालिकाओं का बना रहना
243यछनिर्वाचन संबंधी मामलों में न्‍यायालयों के हस्‍तक्षेप का वर्जन

भाग X: अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
244अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन.
244कअसम के कुछ जनजाति क्षेत्रों को समाविष्‍ट करने वाला एक स्‍वशासी राज्‍य बनाना और उसके लिए स्‍थानीय विधान मंडल या मंत्रि परिषद का या दोनों का सृजन.

भाग XI: संघ और राज्‍यों के बीच संबंध(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अध्‍याय I. विधायी संबंध

विधायी शक्तियों का वितरण

अनुच्‍छेदविवरण
245संसद द्वारा राज्‍यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों का विस्‍तार.
246संसद द्वारा और राज्‍य के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों की विषयवस्‍तु.
247कुछ अतिरिक्‍त न्‍यायालयों की स्‍थापना का उपबंध करने की संसद की शक्ति.
248अवशिष्‍ट विधायी शक्तियां.
249राज्‍य सूची में के विषय के संबंध में राष्‍ट्रीय हित में विधि बनाने की संसद की शक्ति.
250यदि आपात की उदघोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्‍य सूची में के विषय के संबंध में विधि.
251संसद द्वारा अनुच्‍छेद 249 और अनुच्‍छेद 250 के अधीन बनाई गई विधियों और राज्‍यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति.
252दो या अधिक राज्‍यों के लिए उनकी सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति और ऐसी विधि का किसी अन्‍य राज्‍य द्वारा अंगीकार किया जाना.
253अंतरराष्‍ट्रीय करारों को प्रभावी करने के लिए विधान.
254संसद द्वारा बनाई गई विधियों और राज्‍यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति.
255सिफारिशों और पूर्व मंजूरी के बारे में अपेक्षाओं को केवल प्रक्रिया के विषय मानना.

अध्‍याय II. प्रशासनिक संबंध

साधारण

अनुच्‍छेदविवरण
256राज्‍यों की ओर संघ की बाध्‍यता.
257कुछ दशाओं में राज्‍यों पर संघ का नियंत्रण.
257क[निरसन]
258कुछ दशाओं में राज्‍यों को शक्ति प्रदान करने आदि की संघ की शक्ति.
258कसंघ को कृत्‍य सौंपने की राज्‍यों की शक्ति.
259[निरसन]
260भारत के बाहर के राज्‍य क्षेत्रों के संबंध में संघ की अधिकारिता.
261सार्वजनिक कार्य, अभिलेख और न्‍यायिक कार्यवाहियां.

जल संबंधी विवाद

अनुच्‍छेदविवरण
262अंतरराज्यिक नदियों या नदी दूनों के जल संबंधी विवादों का न्‍यायनिर्णयन.

राज्‍यों के बीच समन्‍वय

अनुच्‍छेदविवरण
263अंतरराज्‍य परिषद के संबंध में उपबंध.

भाग XII: वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अध्‍याय I. वित्त

साधारण

अनुच्‍छेदविवरण
264विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना.
265विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना.
266भारत और राज्‍यों के संचित निधियां और लोक लेखे.
267आकस्मिकता निधि.

संघ और राज्‍यों के बीच राजस्‍वों का‍ वितरण

अनुच्‍छेदविवरण
268संघ द्वारा उदगृहीत किए जाने वाले किन्‍तु राज्‍यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किए जाने वाले शुल्‍क.
269संघ द्वारा उदगृहीत और संगृहीत किन्‍तु राज्‍यों को सौंपे जाने वाले कर.
270उदगृहीत कर और उनका संघ तथा राज्‍यों के बीच वितरण.
271कुछ शुल्‍कों और करों पर संघ के प्रयोजनों के लिए अधिभार.
272[निरसन]
273जूट पर और जूट उत्‍पादों का निर्यात शुल्‍क के स्‍थान पर अनुदान.
274ऐसे कराधान पर जिसमें राज्‍य हितबद्ध है, प्रभाव डालने वाले विधेयकों के लिए राष्‍ट्रपति की पूर्व सिफारिश की अपेक्षा.
275कुछ राज्‍यों को संघ अनुदान.
276वृत्तियों, व्‍यापारों, आजीविकाओं और नियोजनों पर कर.
277व्‍यावृत्ति.
278[निरसन]
279"शुद्ध आगम", आदि की गणना.
280वित्त आयोग.
281वित्त आयोग की सिफारिशें.

प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध

अनुच्‍छेदविवरण
282संघ या राज्‍य द्वारा अपने राजस्‍व के लिए जाने वाले व्‍यय.
283संचित निधियों, आकस्मिकता निधियों और लोक लेखाओं में जमा धनराशियों की अभिरक्षा आदि.
284लोक सेवकों और न्‍यायालयों द्वारा प्राप्‍त वादकर्ताओं की जमा राशियों और अन्‍य धनराशियों की अभिरक्षा.
285संघ और संपत्ति को राजय के कराधान से छूट.
286माल के क्रय या विक्रय पर कर के अधिरोपण के बारे में निर्बंधन.
287विद्युत पर करों से छूट.
288जल या विद्युत के संबंध में राज्‍यों द्वारा कराधान से कुछ दशाओं में छूट.
289राज्‍यों की संपत्ति और आय को संघ और कराधार से छूट.
290कुछ व्‍ययों और पेंशनों के संबंध में समायोजन.
290ककुछ देवस्‍वम निधियों की वार्षिक संदाय.
291[निरसन]

अध्‍याय II. उधार लेना

अनुच्‍छेदविवरण
292भारत सरकार द्वारा उधार लेना.
293राज्‍यों द्वारा उधार लेना.

अध्‍याय III. संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्‍व, बाध्‍यताएं और वाद

अनुच्‍छेदविवरण
294कुछ दशाओं में संपत्ति, अ‍ास्तियों, अधिकारों, दायित्‍वों और बाध्‍यताओं का उत्तराधिकार.
295अन्‍य दशाओं में संपत्ति, अ‍ास्तियों, अधिकारों, दायित्‍वों और बाध्‍यताओं का उत्तराधिकार.
296राजगामी या व्‍यपगत या स्‍वामीवि‍हीन होने से प्रोदभूत संपत्ति.
297राज्‍य क्षेत्रीय सागर खण्‍ड या महाद्वीपीय मग्‍नतट भूमि में स्थित मूल्‍यवान चीजों और अनन्‍य आर्थिक क्षेत्र संपत्ति स्रोतों का संघ में निहित होना.
298व्‍यापार करने आदि की शक्ति.
299संविदाएं.
300वाद और कार्यवाहियां.

अध्‍याय IV. संपत्ति का अधिकार

अनुच्‍छेदविवरण
300कविधि के प्राधिकार के बिना व्‍यक्तियों को संपत्ति से वंचित न किया जाना.

भाग XIII: भारत के राज्‍य क्षेत्र के भीतर व्‍यापार, वाणिज्‍य और समागम (पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है)

भारत के संघ राज्‍य क्षेत्र

अनुच्‍छेदविवरण
301व्‍यापार, वाणज्यि और समागम की स्‍वतंत्रता.
302व्‍यापार, वाणज्यि और समागम पर निर्बंधन अधिरोपित करने की संसद की शक्ति.
303व्‍यापार और वाणिज्‍य के संबंध में संघ और राज्‍यों की विधायी शक्तियों पर निर्बंधन.
304राज्‍यों के बीच व्‍यापार, वाणिज्य और समागम पर निर्बंधन.
305विद्यमान विधियों और राज्‍य के एकाधिकार का उपबंध करने वाली विधियों की व्‍यावृत्ति.
306[निरसन]
307अनुच्‍छेद 301 से अनुच्‍छेद 304 के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए प्राधिकारी की नियुक्ति.

भाग XIV: संघ और राज्‍यों के अधीन सेवाएं(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अध्‍याय I. सेवाएं

अनुच्‍छेदविवरण
308निर्वचन.
309संघ या राज्‍य की सेवा करने वाले व्‍यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तें.
310संघ या राज्‍य की सेवा करने वाले व्‍यक्तियों की पदावधि.
311संघ या राज्‍य के अधीन सिविल हैसियत में नियोजित व्‍यक्तियों का पदच्‍युत किया जाना या पंक्ति में अवनत किया जाना.
312अखिल भारतीय सेवाएं.
312ककुछ सेवाओं के अधिकारियों की सेवा की शर्तों में परिवर्तन करने या उन्‍हें प्रतिसंहृत करने की संसद की शक्ति.
313संक्रमण कालीन उपबंध.
314[निरसन]

अध्‍याय II.- लोक सेवा आयोग

अनुच्‍छेदविवरण
315संघ और राज्‍यों के लिए लोक सेवा आयोग.
316सदस्‍यों की नियुक्ति और पदावधि.
317लोक सेवा आयोग के किसी सदस्‍य का हटाया जाना और निलंबित किया जाना.
318आयोग के सदस्‍यों और कर्मचारिवृंद की सेवा की शर्तों के बारे में विनियम बनाने की शक्ति.
319आयोग के सदस्‍यों द्वारा ऐसे सदस्‍य न रहने पर पद धारण करने के सबंध में प्रतिषेध.
320लोक सेवा आयोगों के कृत्‍य.
321लोक सेवा आयोगों के कृत्‍यों का विस्‍तार करने की शक्ति.
322लोक सेवा आयोगों के व्‍यय.
323लोक सेवा आयोगों के प्रतिवेदन.

भाग XIVक: अभिकरण(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
323कप्रशासनिक अधिकरण.
323खअन्‍य विषयों के लिए अधिकरण.

भाग XV: निर्वाचन(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
324निर्वाचनों के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना.
325धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी व्‍यक्ति का निर्वाचक नामावली में सम्मिलित किए जाने के लिए अपात्र न होना और उसके द्वारा किसी विशेष निर्वाचक-नामावली में सम्मिलित किए जाने का दावा न किया जाना.
326लोक सभा और राज्‍यों की विधान सभाओं के लिए निर्वाचनों का वयस्‍क मताधिकार के आधार पर होना.
327विधान मंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की संसद की शक्ति.
328किसी राज्‍य के विधान मंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की उस विधान मंडल की शक्ति.
329निर्वाचन संबंधी मामलों में न्‍यायालयों के हस्‍तक्षेप का वर्जन.
329क[निरसन]

भाग XVI: कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
330लोक सभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्‍थानों का आरक्षण.
331लोक सभा में आंग्‍ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्‍व.
332राज्‍यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्‍थानों का आरक्षण.
333राज्‍यों की विधान सभाओं में आंग्‍ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्‍व.
334स्‍थानों के आरक्षण और विशेष प्रतिनिधित्‍व का साठ वर्ष के पश्‍चात न रहना.
335सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावे.
336कुछ सेवाओं में आंग्‍ल भारतीय समुदाय के लिए विशेष उपबंध.
337आंग्‍ल भारतीय समुदाय के फायदे के लिए शैक्षिक अनुदान के लिए विशेष उपबंध.
338राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग.
338कराष्‍ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग.
339अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्‍याण के बारे में संघ का नियंत्रण.
340पिछड़े वर्गों की दशाओं के अन्‍वेषण के लिए आयोग की नियुक्ति.
341अनुसूचित जातियां.
342अनुसूचित जनजातियां.

भाग XVII: राजभाषा(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अध्‍याय I. - संघ की भाषा

अनुच्‍छेदविवरण
343संघ की राजभाषा.
344राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति.

अध्‍याय II. प्रादेशिक भाषाएं

अनुच्‍छेदविवरण
345राज्‍य की राजभाषा या राजभाषाएं.
346एक राज्‍य और दूसरे राज्‍य के बीच या किसी राज्‍य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा.
347एक राज्‍य और दूसरे राज्‍य के बीच या किसी राज्‍य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा.

अध्‍याय III. उच्‍चतम न्‍यायालय, उच्‍च न्‍यायालयों आदि की भाषा.

अनुच्‍छेदविवरण
348उच्‍चतम न्‍यायालय और उच्‍च न्‍यायालयों में और अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा.
349भाषा से संबंधित कुछ विधियां अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया.

अध्‍याय IV. विशेष निदेश

अनुच्‍छेदविवरण
350व्‍यथा के निवारण के लिए अभ्‍यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा.
350कप्राथमिक स्‍तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएं.
350खभाषाई अल्‍पसंख्‍यक वर्गों के लिए विशेष अधिकारी.
351हिन्‍दी भाषा के विकास के लिए निदेश.

भाग XVIII: आपात उपबंध(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
352आपात की उदघोषणा.
353आपात की उदघोषणा का प्रभाव.
354जब आपात की उदघोषणा प्रवर्तन में है तब राजस्‍वों के वितरण संबंधी उपबंधों का लागू होना.
355बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से राज्‍य की संरक्षा करने का संघ का कर्तव्‍य.
356राज्‍यों सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध.
357अनुच्‍छेद 356 के अधीन की गई उदघोषणा के अधीन विधायी शाक्तियों का प्रयोग.
358आपात के दौरान अनुच्‍छेद 19 के उपबंधों का निलंबन.
359आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रवर्तन का निलबंन.
359क[निरसन]
360वित्तीय आपात के बारे में उपबंध.

भाग XIX: प्रकीर्ण(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
361राष्‍ट्रपति और राज्‍यपालों और राजप्रमुखों का संरक्षण.
361कसंसद और राज्‍यों के विधान मंडलों की कार्यवाहियों की प्रकाशन का संरक्षण.
361खलाभप्रद राजनीतिक पद पर नियुक्ति के लिए निरर्हता.
362[निरसन]
363कुछ संधियों, करारों आदि से उत्‍पन्‍न विवादों में न्‍यायालयों के हस्‍तक्षेप का वर्जन.
363कदेशी राज्‍यों के शासकों को दी गई मान्‍यता की समाप्ति और निजी थौलियों का अंत.
364महापत्तनों और विमानक्षेत्रों के बारे में विशेष उपबंध.
365संघ द्वारा दिए गए निदेशों का अनुपालन करने में या उनको प्रभावी करने में असफलता का प्रभाव.
366परिभाषाएं.
367निर्वचन.

भाग XX: संविधान का संशोधन(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
368संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया.

भाग XXI:अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रावधान(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुच्‍छेदविवरण
369राज्‍य सूची के कुछ विषयों के सबंध में विधि बनाने की संसद की इस प्रकार अस्‍थायी शक्ति मानो वे समवर्ती सूची के विषय हों.
370जम्‍मू और कश्‍मीर राज्‍य के संबंध में अस्‍थायी उपबंध.
371महाराष्‍ट्र और गुजरात राज्‍यों के संबंध में विशेष उपबंध.
371कनागालैंड राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
371खअसम राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
371गमणिपुर राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
371घआंध्र प्रदेश राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
371डआंध्र प्रदेश में केंद्रीय विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना.
371चसिक्किम राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
371छमिजोरम राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
371जअरुणाचल प्रदेश राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
371-झगोवा राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
372विद्यमान विधियों का प्रवृत्त बने रहना और उनका अनुकूलन.
372कविधियों का अनुकूलन करने की राष्‍ट्रपति की शक्ति.
373निवारक निरोध में रखे गए व्‍यक्तियों के संबंध में कुछ दशाओं में आदेश करने की राष्‍ट्रपति की शाक्ति.
374फेडरल न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों और फेडरल न्‍यायालय में या सपरिषद हिज मेजेस्‍टी के समक्ष लंबित कार्यवाहियों के बारे में उपबंध.
375संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए न्‍यायालयों, प्राधिकारियों और अधिकारियों का कृत्‍य करते रहना.
376उच्‍च न्‍यायालयों के न्‍यायाधीशों के बारे में उपबंध.
377भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक के बारे में उपबंध.
378लोक सेवा आयोगों के बारे में उपबंध.
378कआंध्र प्रदेश विधान सभा की अवधि के बारे में विशेष उपबंध.
379-391[निरसन]
392कठिनाइयों को दूर करने की राष्‍ष्‍ट्रपति की शक्ति.

भाग XXII: संक्षिप्‍त नाम, प्रारंभ और निरसन(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

हिंदी में प्राधिकृत पाठ

अनुच्‍छेदविवरण
393संक्षिप्‍त नाम.
394प्रारंभ.
394कहिन्‍दी भाषा में प्राधिकृत पाठ.
395निरसन.

अनुसूची

पहली अनुसूची(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

  • I. - राज्‍य.
  • II. - संघ राज्‍य क्षेत्र.

दूसरी अनुसूची(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

  • भाग क - राष्‍ट्रपति और राज्‍यों के राज्‍यपालों के बारे में उपबंध.
  • भाग ख - [निरसन]
  • भाग ग - लोक सभा के अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष के तथा राज्‍य सभा के सभापति और उप सभापति के तथा (राज्‍य) की विधान सभा के अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष के तथा विधान परिषद के सभापति और उप सभापति के बारे में उपबंध.
  • भाग घ - उच्‍चतम न्‍यायालय और उच्‍च न्‍यायालयों के न्‍यायाधीशों के बारे में उपबंध.
  • भाग ड - भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षण के बारे में उपबंध.

तीसरी अनुसूची(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

- शपथ या प्रतिज्ञान के प्ररूप.

चौथी अनुसूची(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

- राज्‍य सभा में स्‍थानों का आबंटन.

पांचवीं अनुसूची(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में उपबंध.
  • भाग क - साधारण.
  • भाग ख - अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों का प्रशासन और नियंत्रण.
  • भाग ग - अनुसूचित क्षेत्र.
  • भाग घ - अनुसूची का संशोधन.

छठवीं अनुसूची(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्‍यों में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के प्रावधान.

सातवीं अनुसूची(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

  • सूची I - संघ सूची.
  • सूची II - राज्‍य सूची.
  • सूची III - समवर्ती सूची.

आठवीं अनुसूची(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

- भाषाएं.

नौवीं अनुसूची(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

- विशिष्‍ट अधिनियमों और विनियमों का सत्‍यापन.

दसवीं अनुसूची (पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है)

- दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता के बारे में उपबंध.

ग्‍यारहवीं अनुसूची(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

- पंचायतों के अधिकार, प्राधिकार और दायित्‍व.

बारहवीं अनुसूची(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है) 

- नगरपालिकाओं के अधिकार, प्राधिकार तथा दायित्‍व आदि.

परिशिष्‍ट

अनुक्रमणिका(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है)