Tuesday, April 12, 2016

तलाक के मामले में बच्चे की डीएनए जाँच तब तक नहीं, जब तक पिता न चाहे

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 उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है कि तलाक के मामले में किसी बच्चे के डीएनए परीक्षण के आदेश तब तक नहीं दिये जा सकते जब तक पति उसे अपना बच्चा नहीं होने का निश्चित आरोप नहीं लगाता। दूसरे शब्दों में, बच्चे के असल माता-पिता का पता लगाने के लिये उसका डीएनए परीक्षण तभी किया जा सकता है जब पति यह निश्चित आरोप लगाए वह बच्चा किसी दूसरे आदमी का है। हालांकि वह इस बात को तलाक के आधार के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकता।

 उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक सम्बन्ध होने के दौरान बच्चे का जन्म होने की स्थिति में उसकी वैधता की धारणा काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि तलाक की अर्जी दायर होने के वक्त विवाह के दोनों पक्षों का एक दूसरे से जरूरी वास्ता था। खासकर तब जब पति इस बात को जोर देकर ना कहे कि उसकी पत्नी का बच्चा किसी दूसरे मर्द से अवैध सम्बन्धों का नतीजा है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी तथा न्यायमूर्ति आर. एम. लोढ़ा की पीठ ने अपने निर्णय में पति भरतराम द्वारा दायर याचिका पर बच्चे का डीएनए परीक्षण कराने के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती देने वाली रामकन्या बाई द्वारा दायर अपील को बरकरार रखा। उच्च न्यायालय ने पति द्वारा सत्र न्यायालय में तलाक के मुकदमे की कार्यवाही के दौरान बच्चे की वैधता पर सवाल नहीं उठाए जाने के बावजूद उसका डीएनए परीक्षण कराने का निर्देश दिया था।

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