धारा 498a और घरेलू हिंसा और उत्पीडन के दुरुपयोग के खिलाफ एक प्रयास
यह कानून आप के लिए किस क़दर खतरनाक है और आप किस प्रकार खतरे में है और यह समाज के लिए कितना घातक है --
आपकी पत्नी द्वारा पास के पुलिस स्टेशन पर 498a दहेज़ एक्ट या घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक लिखित झूठी शिकायत करती है तो आप, आपके बुढे माँ- बाप और रिश्तेदार फ़ौरन ही बिना किसी विवेचना के गिरफ्तार कर लिए जायेंगे और गैर-जमानती टर्म्स में जेल में डाल दिए जायेंगे भले चाहे की गई शिकायत फर्जी और झूठी ही क्यूँ न हो! आप शायेद उस गलती की सज़ा पा जायेंगे जो आपने की ही नही और आप अपने आपको निर्दोष भी साबित नही कर पाएँगे और अगर आपने अपने आपको निर्दोष साबित कर भी लिया तब तक शायेद आप आप न रह सके बल्कि समाज में एक जेल याफ्ता मुजरिम कहलायेंगे और आप का परिवार समाज की नज़र में क्या होगा इसका अंदाजा आप लगा सकते है
498a दहेज़ एक्ट या घरेलू हिंसा अधिनियम को केवल आपकी पत्नी या उसके सम्बन्धियों के द्वारा ही निष्प्रभावी किया जा सकता है आपकी पत्नी की शिकायत पर आपका पुरा परिवार जेल जा सकता है चाहे वो आपके बुढे माँ- बाप हों, अविवाहित बहन, भाभी (गर्भवती क्यूँ न हों) या 3 साल का छोटा बच्चा शिकायत को वापस नही लिया जा सकता और शिकायत दर्ज होने के बाद आपका जेल जाना तय है ज्यादातर केसेज़ में यह कम्पलेंट झूठी ही साबित होती है और इस को निष्प्रभावी करने के लिए स्वयं आपकी पत्नी ही आपने पूर्व बयान से मुकर कर आपको जेल से मुक्त कराती है आपका परिवार एक अनदेखे तूफ़ान से घिर जाएगा साथ ही साथ आप भारत के इस सड़े हुए भ्रष्ट तंत्र के दलदल में इस कदर फसेंगे की हो सकता आपका या आपके परिवार के किसी फ़र्द का मानसिक संतुलन ही न बिगड़ जाए यह कानून आपकी पत्नी द्वारा आपको ब्लेकमेल करने का सबसे खतरनाक हथियार है इसलिए आपको शादी करने से पूर्व और शादी के बाद ऐसी भयानक परिस्थिति का सामना न करना पड़े इसके लिए कुछ एहतियात की ज़रूरत होगी जो की इसी ब्लॉग पर मौजूद है आप उसे पढ़े और सतर्क रहे
498a दहेज़ एक्ट या घरेलू हिंसा अधिनियम को केवल आपकी पत्नी या उसके सम्बन्धियों के द्वारा ही निष्प्रभावी किया जा सकता है आपकी पत्नी की शिकायत पर आपका पुरा परिवार जेल जा सकता है चाहे वो आपके बुढे माँ- बाप हों, अविवाहित बहन, भाभी (गर्भवती क्यूँ न हों) या 3 साल का छोटा बच्चा शिकायत को वापस नही लिया जा सकता और शिकायत दर्ज होने के बाद आपका जेल जाना तय है ज्यादातर केसेज़ में यह कम्पलेंट झूठी ही साबित होती है और इस को निष्प्रभावी करने के लिए स्वयं आपकी पत्नी ही आपने पूर्व बयान से मुकर कर आपको जेल से मुक्त कराती है आपका परिवार एक अनदेखे तूफ़ान से घिर जाएगा साथ ही साथ आप भारत के इस सड़े हुए भ्रष्ट तंत्र के दलदल में इस कदर फसेंगे की हो सकता आपका या आपके परिवार के किसी फ़र्द का मानसिक संतुलन ही न बिगड़ जाए यह कानून आपकी पत्नी द्वारा आपको ब्लेकमेल करने का सबसे खतरनाक हथियार है इसलिए आपको शादी करने से पूर्व और शादी के बाद ऐसी भयानक परिस्थिति का सामना न करना पड़े इसके लिए कुछ एहतियात की ज़रूरत होगी जो की इसी ब्लॉग पर मौजूद है आप उसे पढ़े और सतर्क रहे
पुरुष भी हैं घरेलू हिंसा का शिकार |
Written by भास्कर न्यूज |
Wednesday, 14 October 2009 09:27 |
लुधियाना . स्वतंत्र आवाज वेलफेयर आग्रेनाइजेशन ने दहेज व घरेलू हिंसा कानून के दुरुपयोग के मसले उठाए है। आग्रेनाइजेशन के अनुसार पिछले पांच वर्षो के दौरान देश में दहेज प्रताड़ना के मात्र दो प्रतिशत मामले ही साबित हो पाए हैं। साफ जाहिर है कि इस कानून का दुरुपयोग रहा है। पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार हो रहे हैं, लेकिन विडंबना है कि कानून उनकी इस शिकायत पर गौर नहीं कर रहा है।
अगर एक महिला अपने पति या ससुरालियों के खिलाफ थाने में दहेज उत्पीड़न की झूठी शिकायत भी दे देती है, तो पुलिस बिना जांच उस पूरे परिवार को उठा लाती है। बिना कसूर परिवार को जेल में रहना पड़ता है। महिला सशक्तिकरण के लिए सरकारें काम कर रही हैं और कानून भी महिलाओं के हक में बनाए गए हैं, लेकिन दहेज उत्पीड़न में वृद्ध महिलाएं व अविवाहित लड़कियां भी कष्ट झेलती हैं। ऐसे कई केस हैं जब रंजिशन दर्ज कराए मामलों में किशोर सदस्यों को भी जेल में धकेल दिया जाता है।
आग्रेनाइजेशन के सदस्य गौरव सैनी के अनुसार वह संसद को इस बारे में ज्ञापन भेज कर संशोधन के लिए आग्रह करेंगे। गौरव सैनी के मुताबिक पुलिस ऐसे मामलों को दर्ज करने में कोई जल्दबाजी दिखाए बिना पूरी जांच के बाद केस दर्ज करे। दफा 498—ए को जमानत योग्य बनाया जाए। वह पंजाब में करीब 500 परिवारों के केसों का ब्यौरा एकत्रित कर चुके हैं। उन्होंने पीड़ित परिवारों के लिए हेल्प लाइन भी जारी की है।
YEH KAISA INSAAF
मुझे मेरी बीवी से बचाओ
Written by Navbharat Times
Monday, 03 August 2009 14:16
ऐसा नहीं है कि दहेज के लिए लड़कियों को सताने के मामले कम हो गए हैं। अब भी हर रोज कहीं न कहीं से दहेज उत्पीड़न की खबरें आती रहती हैं। दहेज हत्याओं का सिलसिला भी जारी है। हालांकि दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा का दूसरा पहलू भी कम चिंताजनक नहीं है। यह है दहेज कानून की आड़ में लड़के और उसके परिवारवालों को तंग करना दहेज के झूठे मामले दर्ज कराना। महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने कानूनों का धड़ल्ले से गलत इस्तेमाल हो रहा है। इसी का नतीजा है कि महिला मुक्ति की तर्ज पर पुरुष भी अपने हकों के लिए एकजुट होने लगे हैं। मंडे स्कैन में इसी के अलग - अलग पहलुओं को टटोल रही है पूनम पाण्डे की स्पेशल रिपोर्ट -
मजाक के लिए तराशे गए जुमले ' मुझे मेरी बीवी से बचाओ ' अब हकीकत बन चुके हैं। बीवियों के सताए पति त्रस्त होकर ऐसी गुहार लगा रहे हैं। ' दहेज और घरेलू हिंसा कानून की आड़ में अगर बीवी सताए तो हमें बताएं ' लिखे पोस्टर मेट्रो सिटीज में आम हो गए हैं। कुछ लोग पहचान छुपाकर अत्याचार का शिकार पुरुषों की मदद कर रहे हैं , तो कुछ सड़कों से लेकर कोर्ट तक और मीडिया से लेकर इंटरनेट तक के जरिए अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं।
2005 में तीन ऐसे ही लोगों से शुरू हुए ग्रुप के साथ अब दुनिया भर में एक लाख से ज्यादा ऐक्टिव मेंबर जुड़ चुके हैं। पढ़े लिखे , मैनिजमंट , आईटी , टेलिकॉम , बैंकिंग , सर्विस इंडस्ट्री , ब्यूरोक्रेट्स सरीखे सभी फील्ड के प्रफेशनल्स ने मिलकर ' सेव फैमिली फाउंडेशन ' बनाई है। इनका दावा है कि दिल्ली - एनसीआर में 5 लाख ऐसे लोग हैं , जो कथित तौर पर पत्नियों के पक्ष में बने एकतरफा कानून (498 ए और घरेलू हिंसा कानून ) से पीड़ित हैं या इसे झेल चुके हैं।
आजादी की आस
अत्याचार के शिकार पति इस बार स्वतंत्रता दिवस पारंपरिक तरीके से नहीं मनाने वाले हैं। देश भर से करीब 30 हजार लोगों के प्रतिनिधि के तौर पर अलग - अलग शहरों से सैकड़ों पति 15 अगस्त को शिमला में इकट्ठे हो रहे हैं। ये अत्याचार से आजादी के लिए रणनीति तैयार करेंगे। इनका मानना है कि ये स्त्री केंद्रित समाज में लगातार जकड़ते जा रहे हैं। इन्होंने ऐलान किया है कि ये तब तक स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाएंगे , जब तक इनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं। इनकी मांगे हैं - महिला और बाल कल्याण मंत्रालय की तर्ज पर पुरुष कल्याण मंत्रालय बनाया जाए , घरेलू हिंसा एक्ट में बदलाव किया जाए और तलाकशुदा जोड़े के बच्चों की जॉइंट कस्टडी दी जाए।
मर्द को भी होता है दर्द
पुरुष घरेलू हिंसा के शिकार होते हैं या नहीं , इसे लेकर अब तक कोई सरकारी स्टडी नहीं हुई है , लेकिन ' सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन ' और ' माई नेशन ' की एक स्टडी के मुताबिक 98 फीसदी भारतीय पति तीन साल की रिलेशनशिप में कम से कम एक बार इसका सामना कर चुके हैं। इस ऑनलाइन स्टडी में शामिल 25.21 फीसदी शारीरिक , 22.18 फीसदी मौखिक और भावनात्मक , 32.79 फीसदी आर्थिक हिंसा के शिकार बने जबकि 17.82 फीसदी पतियों को ' सेक्सुअल अब्यूज ' झेलना पड़ा।
स्टडी रिपोर्ट में कहा गया कि जब पुरुषों ने अपनी समस्या , पत्नी द्वारा अपने और परिवार वालों के शोषण के बारे में बताना चाहा तो कोई सुनने को ही तैयार नहीं हुआ। उल्टा सब उन पर हंसे। कई ने स्वीकारा कि उन्हें किसी को यह बताने में शर्म आती है कि उनकी पत्नी उन्हें पीटती है। स्टडी में विभिन्न सामाजिक और आर्थिक वर्ग के लोगों को शामिल किया गया था। इसमें ज्यादातर मिडल क्लास और अपर मिडल क्लास के थे। ऐसे में सवाल उठता है कि जब पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार बनता है , तो कानून में उसे संरक्षण क्यों नहीं मिलता। विकसित देशों की तरह घरेलू हिंसा ऐक्ट महिला और पुरुष के लिए बराबर क्यों नहीं है ?
498 ए के बारे में कुछ फैक्ट
गिरफ्तार किए गए लोगों में से 94 फीसदी लोग दोषी नहीं पाए गए। ( प्री और पोस्ट ट्रायल )
ट्रायल पूरा होने के बाद 85 फीसदी दोषी नहीं पाए गए , लेकिन इन्हें भी बिना किसी जांच के गिरफ्तार किया गया।
यूपी के खीरी जिले में ही सात सालों में 498 ए के तहत 1000 नाबालिग लड़कियां बिना किसी जांच के गिरफ्तार की गईं।
क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में रिफॉर्म्स को लेकर बनी जस्टिस मलिमथ कमिटी ने भी 2005 में अपनी रिपोर्ट में 498 ए को जमानती और कंपाउंडेबल बनाने की सिफारिश की थी।
कानून , मिसयूज और सुझाव
आईपीसी 498 ए
क्या है कानून - अगर किसी महिला को उसका पति या पति के रिश्तेदार दहेज के लिए प्रताडि़त करते हैं तो इसके तहत उन्हें तीन साल की सजा हो सकती है। इसके दायरे में दूरदराज के रिश्तेदार जैसे शादीशुदा बहन का पति ( चाहे वह वहां रहता हो या नहीं ) भी शामिल हो सकता हैं। यह संज्ञेय अपराध है। मतलब बिना कोर्ट के आदेश के पुलिस उनको गिरफ्तार कर सकती है जिनका नाम एफआईआर में है। यह गैर - जमानती है। कोर्ट से ही जमानत ली जा सकती है और कोर्ट पर निर्भर है कि कितने दिन में जमानत दे।
कैसे होता है मिसयूज - पुलिस बिना किसी जांच और सबूत के एफआईआर में नामजद लोगों को गिरफ्तार करती है। ससुराल पक्ष के लोगों को परेशान करने की नीयत से सबका नाम एफआईआर में डलवाया जा रहा है। जिन्होंने एफआईआर करवाई है , वह जमानत के लिए विरोध न करने के नाम पर मनचाही रकम वसूल रहे हैं। उन राज्यों में जहां लॉ ऐंड ऑर्डर की हालात ज्यादा खस्ता है , इसका सबसे ज्यादा मिसयूज होता है। यूपी में तो स्टेट अमेंडमंट हैं कि अंतरिम जमानत नहीं मिल सकती।
कैसे रुके मिसयूज - 498 ए में कोई भी शिकायत आए तो गिरफ्तारी तब तक ना हो जब तक कोई सबूत या साक्ष्य उपलब्ध न हों। एफआईआर में जो आरोप हैं ( जैसे - लाखों रुपये शादी में खर्च किए ) उसे साबित करने के लिए दो विटनस या डॉक्युमंट एफआईआर करते वक्त ही मांगे जाएं। अभी सिर्फ आरोप लगाना काफी माना जाता है। हालांकि उत्तराखंड जैसे कुछ स्टेट में प्रशासनिक स्तर पर बिना किसी ऑर्डर या नोटिस के इसे फॉलो किया जा रहा है। एफआईआर करने वाले को एफआईआर में शामिल लोगों से कोई मोटी रकम ना दिलाई जाए। इससे लालच बढ़ता है और मिसयूज की संभावना भी। दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस एस . एन . ढींगरा के एक जजमंट पर दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने गाइडलाइंस जारी की है कि एफआईआर में लाखों रुपये दहेज में देने के आरोप की जांच करें। अरेस्ट करने के लिए सीनियर पुलिस ऑफिसर की रिकमंडेशन लें और एफआईआर भी करें तो सीनियर पुलिस ऑफिसर की रिकमंडेशन लें।
डोमेस्टिक वॉयलंस ऐक्ट 2005
क्या है कानून - इसमें महिला अपने साथ हुए फिजिकल , इमोशनल , इकॉनमिक , सेक्सुअल वॉयलंस की शिकायत कर सकती है। शिकायत करने वाली महिला कोर्ट से संरक्षण , रहने के अधिकार , बच्चे की कस्टडी और मेंटेनेंस को लेकर ऑर्डर मांग सकती है। यह संज्ञेय या असंज्ञेय के तहत नहीं आता। कोई भी महिला पुलिस से , कोर्ट से या प्रोटेक्शन ऑफिसर से शिकायत कर सकती है। इसमें स्पीडी ट्रायल होता है। कोर्ट 60 दिनों के भीतर केस खत्म करने की कोशिश करती है।
कैसे होता है मिसयूज - अगर कोई लड़की यह शिकायत करे कि उसे घर में मारापीटा जा रहा है और घर से निकाल दिया है , तो वह कोर्ट से इस कानून के तहत रेजिडंस राइट मांग सकती है। झूठे आरोप लगाकर कोई भी लड़की ससुरालवालों को घर से बाहर निकलवा सकती है। इमोशनल वॉयलंस का आरोप लगा सकती है , जिसका कोई पैमाना नहीं है।
कैसे रुके मिसयूज - यह कानून अमेरिका के कानून की तर्ज पर बनाया गया , लेकिन वहां यह कानून जेंडर न्यूट्रल है। वहां बिना जांच पड़ताल और बिना सबूत के कोई ऐक्शन नहीं लिया जाता। हमारे कानून में इसका जिक्र नहीं कि किस तरह इसकी जांच हो। मिसयूज रोकने के लिए जांच की एक प्रक्रिया बनाई जा सकती है और इसे महिला , पुरुष के लिए समान बनाया जा सकता है।
( सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट महेश तिवारी से बातचीत के आधार पर )
'498A.org' नाम से बने एक ग्रुप को ऑनलाइन मिलीं तीन शिकायतें
पीड़ित -1, नई दिल्ली
मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं। शादी के बाद मैं , मेरी पत्नी और मेरे पेरंट्स साथ रहते हैं। दिक्कत तब शुरू हुई जब मेरे भाई का यहां ट्रांसफर हो गया। तब पिता ने हमें एक दूसरा बड़ा कमरा देकर उस कमरे को छोटे भाई को दे दिया। तब मेरी पत्नी घर पर नहीं थी। जैसे ही वह आई तो मेरे पेरंट्स पर चिल्लाने लगी कि उसका कमरा क्यों चेंज कर दिया है। उसने बेहद गलत शब्दों का इस्तेमाल किया और अपने और मेरी मां के गहने , जो उसे पार्टी में पहनने के लिए दिए थे , लेकर अपने मायके चली गई। एक महीना हो चुका है। मैं जब भी उससे बात करता हूं तो वह कहती है , हम अकेले रहेंगे। मैं अपना परिवार नहीं छोड़ना चाहता। शादी के बाद से वह हर रोज अपनी मां से मिलने जाती थी। उनका घर हमारे घर से 5-6 किलोमीटर दूर है। जब कभी मैं उसे वहां न जाने को कहता तो वह मुझे खुदकुशी की धमकी देती। अभी वह प्रेग्नंट है और अब उसके घर वाले अफवाह फैला रहे हैं कि हम उसे मारते थे और हमने उसे घर से बाहर फेंक दिया। आप बताइये मैं क्या करूं ? बेहद परेशान हूं।
पीड़ित - 2, मुंबई
शादी के बाद ही मेरी पत्नी ने मुझसे कहा , मैं हैंडसम नहीं हूं और वह मुझसे संतुष्ट नहीं है। उसने कहा कि उसने अपने भाइयों की डर से मेरे साथ शादी की क्योंकि उन्होंने मुझे चुना था , लेकिन यह बात वह अपने घर वालों के सामने नहीं कहती। उसने झूठा इल्जाम लगाकर मुझे 498 ए में फंसा दिया। मैं एक साल जेल में रहा। मैंने अपर कोर्ट में अप्लाई किया और हमारे बीच समझौता हो गया। अब मैं अपनी पत्नी और उसके पैरंट्स के साथ उनके घर पर रहता हूं। अब फिर वही हाल शुरू हो गया है। वह मुझ पर चिल्लाती है , गाली देती है और मेरी सारी सैलरी ले लेती है। मैं अपने मां - बाप का इकलौता बेटा हूं। वह मेरे साथ नहीं रहना चाहती। उसकी मां और भाई धमकाते हैं कि उसके साथ ही रहूं , नहीं तो वह फिर 498 ए के तहत शिकायत कर देंगे। मैं कैसे इससे बाहर निकलूं ?
पीड़ित - 3, मेंगलूर
मैं एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करता हूं। कभी - कभी काम के सिलसिले में बाहर जाने पर पत्नी को अपने पेरंट्स के साथ छोड़ता हूं। लेकिन यह उसे अच्छा नहीं लगता। उसे लगता है कि मैं उसकी केयर नहीं करता। मैं अपने परिवार के साथ रहना चाहता हूं , लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं है। एक दिन वह पुलिस स्टेशन गई और शिकायत दर्ज करा दी कि मैं उसे पीटता हूं और मैं और मेरे परिवार वाले उसे दहेज के लिए परेशान करते हैं। हकीकत यह है कि मेरा काफी पैसा बहुत समय तक उसके पिता के पास था जो उन्होंने अपने बेटे की शादी में इस्तेमाल किया। पुलिस हमारे घर आई और हम सब को पुलिस स्टेशन ले गई , लेकिन हमारे कुछ कॉन्टेक्ट थे , इसलिए लंबी बहस के बाद केस रजिस्टर्ड नहीं हुआ। तब उसके पेरंट्स भी मौजूद थे। तब से मैं शर्मिन्दगी महसूस करता हूं। अपनी पत्नी से बात करने का मन नहीं करता , जबकि वह मेरे साथ ही रह रही है।
कौन सुनेगा बीवी के सताए पतियों की गुहार!
नवभारत टाइम्स | Aug 19, 2009, 06.10AM IST
एनबीटी
मुम्बई ।। पतियों से सताई गई पत्नियों की दास्तान अक्सर सुनाई दे जाती है, मगर पत्नी के पति-उत्पीड़न के किस्से भी सामने आते हैं। समस्या ये है कि कमजोर महिलाओं के पक्ष में बने कानून में इनकी को सुनवाई नहीं। सेव इंडियन फैमिली (एसआईएफ) फाउंडेशन के बैनर तले बीवियों के सताए हजारों पतियों के प्रतिनिधि के तौर पर करीब सौ लोग शिमला में मिले और आजादी के जश्न का बहिष्कार किया।
सम्मेलन में पीडि़त पुरुषों का कहना था कि भारत आजाद और डेमोक्रेटिक कंट्री नहीं है क्योंकि यहां सामान्य वर्ग के पुरुष और खासकर शादीशुदा पुरुष के साथ भेदभाव किया जाता है। संविधान के आटिर्कल 14, 15, 20 और 21 के तहत मिले अधिकारों का हनन होता है। एसआईएफ के पीआरओ विराग धूलिया ने बताया कि दो दिन में हमने आगे की रणनीति पर काम किया। हमने इस झूठी आजादी का जश्न इसलिए नहीं मनाया क्योंकि हमारे साथ भेदभाव हो रहा है। संविधान ने हमें 'राइट टू लिबर्टी' दिया है लेकिन आईपीसी के सेक्शन 498ए के तहत अगर बीवी शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न की शिकायत करती है तो उसे वेरिफाई किए बिना और किसी सबूत के बगैर ही पुरुषों को सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि आर्टिकल-20 कहता है कि एक ही अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दो बार दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जबकि शादी से जुड़े मामलों में इस अधिकार का हनन होता है। एक ही आरोप के लिए 498ए, डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट, सीआरपीसी के सेक्शन 125, हिंदू मैरिज एक्ट, डाइवोर्स केस, चाइल्ड कस्टडी केस आदि मामलों में एक्शन की वजह से कई लिटिगेशन, प्रॉसिक्यूशन और ट्रायल का सामना करना पड़ता है। इसी तरह आटिर्कल-14 के मुताबिक, कानून की नजर में सब बराबर हैं। इस मामले में भी हमारे साथ भेदभाव होता है। एक तो डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट में पुरुषों को घरेलू हिंसा के खिलाफ संरक्षण नहीं दिया गया है। दूसरा, सिर्फ महिला के कहने भर से बिना किसी सबूत के पुरुष को दोषी ठहरा दिया जाता है।
एसआईएफ के संस्थापक सदस्य गुरुदर्शन सिंह कहते हैं कि इन हालात में आजादी के कोई मायने नहीं हैं। यह डेमोक्रेटिक कंट्री नहीं बल्कि एक फासिस्ट कंट्री है। हमारी मांग है कि एक नैशनल लेवल कमिटी बनाई जाए, जो 498ए और डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट की संवैधानिकता की जांच करे। एक नैशनल कमिशन बने, जो पुरुषों के मुद्दों और उनकी समस्याओं की स्टडी करे और सरकार को अपनी सिफारिशें दें। मैन्स वेलफेयर मिनिस्ट्री बने। कानून में लिंगभेद खत्म किया जाए और हस्बैंड, वाइफ वर्ड हटाकर स्पाउस और मैन, वूमन की जगह पर्सन शब्द इस्तेमाल हो ताकि हम भी महसूस कर सकें कि वाकई हम एक आजाद देश के नागरिक हैं।
बीवियों के सताए पति आज करेंगे गांधीगिरी
नवभारत टाइम्स | Oct 2, 2009, 06.00AM IST
पूनम पाण्डे ।। नई दिल्ली
इस बार 'इंटरनैशनल डे ऑफ नॉन वॉयलंस' इस मायने में अलग है कि महिला और पुरुषों के संगठन इसे अलग-अलग तरह से मना रहे हैं। पहली बार बीवियों के सताए पति इस दिन से 'घरेलू हिंसा जागरुकता महीना' मनाने की शुरुआत कर रहे हैं। इसके जरिए वे घरेलू हिंसा कानून के दुरुपयोग के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं।
2 अक्टूबर से महिला और बाल विकास मंत्रालय महिलाओं के खिलाफ हिंसा के निवारण के लिए नैशनल कैंपेन शुरू कर रहा है, वहीं पुरुषों की शिकायत है कि पत्नियों को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए घरेलू हिंसा कानून समेत कुल 15 सिविल और क्रिमिनल कानून हैं, लेकिन पतियों, बच्चों और पति की फैमिली को बचाने के लिए एक भी कानून नहीं है। पीड़ित पतियों ने अक्टूबर का महीना ही इसलिए चुना, क्योंकि 2006 में अक्टूबर के महीने में ही डोमेस्टिक वॉयलंस ऐक्ट पास हुआ था।
सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन (एसआईएफएफ) के विराग धूलिया ने बताया कि इसके जरिए हम देशभर में अपना विरोध जताएंगे। एक महीने चलने वाले इस शांतिपूर्ण विरोध में बेंगलुरु, पुणे, नागपुर, हैदराबाद और दिल्ली में कई कार्यक्रम होंगे। आम जनता के अलावा हम उन लोगों को भी एजुकेट करेंगे जो शादी कर रहे हैं और घरेलू हिंसा कानून के बारे में जिन्हें जानकारी नहीं है। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वे इसके शिकार न बनें।
एसआईएफएफ के फाउंडर मेंबर गुरुदर्शन सिंह कहते हैं कि मानवाधिकार के यूनिवर्सल डिक्लरेशन के मुताबिक कानून की नजर में किसी भी आरोपी को यह अधिकार है कि वह तब तक निर्दोष माना जाए, जब तक दोषी साबित नहीं हो जाता। लेकिन घरेलू हिंसा ऐक्ट में हमारा कानून यह मानता है कि जब तक आरोपी निर्दोष साबित नहीं होता, तब तक वह दोषी है। यह निष्पक्ष ट्रायल के यूनिवर्सल सिद्धांत के खिलाफ है। हर साल 4 हजार निर्दोष सीनियर सिटीजन और 350 बच्चों समेत करीब एक लाख निर्दोष लोग आईपीसी के सेक्शन 498ए के तहत बिना सबूत और जांच के गिरफ्तार होते हैं।
मानवाधिकार के यूनिवर्सल डिक्लरेशन के मुताबिक कानून की नजर में सब बराबर हैं और बिना किसी भेदभाव के कानून में समान संरक्षण के अधिकारी हैं। साथ ही, संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत की सीमा के भीतर राज्य, किसी व्यक्ति को कानून में बराबर के अधिकार और कानून में बराबर संरक्षण के अधिकार से मना नहीं कर सकता। लेकिन डोमेस्टिक वॉयलंस ऐक्ट पुरुषों को घरेलू हिंसा में संरक्षण देने से साफ मना करता है। हर साल 56 हजार से ज्यादा शादीशुदा पुरुष मौखिक, भावनात्मक, इकनॉमिक और फिजिकल अब्यूज और लीगल ह्रासमेंट की वजह से खुदकुशी करते हैं। लेकिन पुरुषों के संरक्षण की कोई बात नहीं कर रहा है।
|
Written by Jaipur Patrika
Wednesday, 29 April 2009 13:59
जयपुर। दहेज प्रताडना से जुडे मामलों में हमेशा से ही पत्नी ससुरालवालों की प्रताडना झेलती आ रही है। इससे उलट शहर के एक युवक ने अपनी पत्नी व ससुराल वालों पर उसे परेशान करने तथा षड्यंत्रपूर्वक दहेज देने का आरोप लगाते हुए अदालत में परिवाद दायर किया है। सी-स्कीम निवासी चन्द्रबदन शर्मा की ओर से दायर परिवाद पर शहर की एक अधीनस्थ अदालत ने मंगलवार को मामला दर्ज करने के आदेश सुनाए।
न्यायिक मजिस्ट्रेट क्रम-ग्यारह जयपुर शहर ने परिवाद को अशोक नगर थानाधिकारी को भिजवाते हुए मामला दर्ज करने तथा उसकी जांच रिपोर्ट अदालत में पेश करने को कहा है। परिवाद में चन्द्रबदन ने दौसा निवासी ससुर सत्यनारायण पुरोहित, सास पुष्पा पुरोहित, साले कपिल व विकास पुरोहित व पत्नी ऋतु को अभियुक्त बनाया है। अधिवक्ता अश्विनी बोहरा ने अदालत में पेश परिवाद में बताया कि वर्ष 2006 में वैवाहिक रिश्ता तय होने पर परिवादी ने ससुरालवालों को स्पष्ट कह दिया था कि विवाह में उसे कोई सामान नहीं चाहिए, लेकिन इसके बाद भी सगाई व विवाह में ससुरालवालों ने दहेज के तौर पर सामान देना चाहा, लेकिन प्रार्थी ने लेने से इनकार कर दिया।
शादी के कुछ दिनों बाद ससुराल वाले दहेज के सामान को प्रार्थी के घर रखकर चले गए। बाद में ससुराल वाले प्रार्थी को अपने पिता का मकान ऋतु के नाम करवाने या अलग मकान दिलवाने के लिए परेशान करने लगे। ससुराल वालों ने आपराधिक षड्यंत्र रचकर दहेज का सामान दिया है, जो दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा-तीन के तहत अपराध है।
उधर, पत्नी ऋतु ने भी पति चन्द्रबदन शर्मा व उसके परिजनों पर दहेज प्रताडना व घरेलू हिंसा अधिनियम में मामला दर्ज करवा रखा है।
दहेज देने वाले भी रहें खबरदार
शुक्र है, अब तलाक लेना हुआ ज्यादा आसान
आपकी शादी अगर बर्बादी में तब्दील हो चुकी है, तो उससे पीछा छुड़ाना अब आसान हो गया है. केंद्रीय कैबिनेट ने मैरिज एक्ट में संशोधन को मंजूरी दे दी है.
इसके मुताबिक तलाक की अर्जी देने के बाद कई महीनों का इंतजार जरूरी नहीं रह जाएगा. मैरिज एक्ट में बदलाव की कुछ मुख्य बातें ये हैं:
-तलाक के लिए जरूरी शर्तों में एक नई शर्त शामिल की गई है. अगर शादी की ऐसी हालत हो गई है, जिसमें सुधार की कोई गुंजाइश न बची हो, तो इस शर्त के तहत अगर पत्नी तलाक की अर्जी देती है, तो पति विरोध दर्ज नहीं करा सकता. लेकिन अगर पति की अर्जी है और पत्नी ने विरोध दर्ज करा दिया है, तो कोर्ट उस पर विचार करेगा.
-तलाक तो जल्दी मिलेगा, लेकिन अब तलाक के बाद पत्नी का हक आपकी उस संपत्ति पर भी होगा, जो आपने शादी के बाद जुटाई है. पत्नी को कितनी संपत्ति मिलेगी, इसका फैसला कोर्ट करेगा.
-अगर तलाक होता है, तो गोद लिये बच्चे के भी अधिकार भी ठीक वैसे ही होंगे, जैसे अपने पैदा होने वाले बच्चों के होते हैं.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला किया गया. पति की संपत्ति में अधिकार देने के अलावा विवाह कानून (संशोधन) विधेयक 2010 का उद्देश्य गोद लिये हुए बच्चों को भी मां-बाप से जन्मे बच्चों के समान अधिकार दिलाना है.
इससे पूर्व दो साल पहले राज्यसभा में यह विधेयक पेश किया गया था. फिर इसे कानून एवं कार्मिक संबंधी संसद की स्थायी समिति के पास भेजा गया.
स्थायी समिति की सिफारिशों के आधार पर विधेयक का मसौदा फिर से तैयार किया गया और कैबिनेट द्वारा मंजूर यह विधेयक पति पत्नी का तलाक होने की स्थिति में गोद लिये बच्चों को भी मां-बाप से जन्मे बच्चों के समान अधिकार का प्रावधान करता है.
सरकार ने संसदीय समिति की इस सिफारिश को भी हालांकि मान लिया है कि तलाक की स्थिति में पत्नी का पति की संपत्ति में अधिकार होगा, लेकिन कितना हिस्सा मिलेगा, यह मामले दर मामले आधार पर अदालतें तय करेंगी.........
jan.18/2012नई दिल्ली। एक जोडा शादी के बाद महज एक दिन के लिए साथ रहा लेकिन उनको तलाक लेने में पूरे 30 साल लग गए। 30 साल के बाद हाइकोर्ट ने सोमवार को उनकी तलाक की अर्जी पर मंजूरी की मोहर लगा दी। दरअसल तलाक लेने वाले जोडे की शादी 30 जून 1982 को हुई थी।शादी के दूसरे दिन 1 जुलाई को लडकी रस्म के लिए अपने पीहर गई लेकिन लौटकर नहीं आई। पति उसको कई बार लेने के लिए लडकी के घर गया लेकिन लडकी ससुराल आने के लिए तैयार नहीं हुई। शादी के करीब 5 साल बाद लडके ने निचली अदालत में तलाक की अर्जी लगाई।निचली अदालत ने 1996 में तलाक की डिक्री दे दी थी। लेकिन महिला ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए तलाक पर मंजूरी दे दी। हाइकोर्ट का कहना है कि पत्नी खुद पति को छोडकर गई थी और यह तलाक का आधार बनता है।
तलाक और 498A के साइड इफेक्ट
आज तलाक और 498 का दुरूपयोग बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा इसे रोकना होगा क्यूकि ये दोनों विषय हमारे देश की संस्कृति देश समाज परिवार रिश्ते बच्चो का फ्यूचर को तबाह कर रहे है |
तलाक के बाद तो पति पत्नी को दूसरा पति और पत्नी मिल जाते हे पर उनकी संतान को माँ बाप नहीं मिलते क्या तलाक बच्चो के फ्यूचर के साथ खिलवाड़ नहीं है ?
अगर हम चाहे तो इस गंभीर मुद्दे पर एक होकर अपने देश को परिवार को समाज को बच्चो को बचा सकते है | आज की तरह ही हालत रहे तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे देश की वैवाहिक विश्वसनीयता का आस्तित्वाव ख़तम हो जायेगा और हमारे देश में शादी एक करार बन कर रह जाएगी | पछमी देश आज भारत आकर सात फेरे सात वचनों में बंध रहे है और हम अपनी परम्परा को भूलते जा रहे है | कृपया करके मुझे अपनी राय जरुर दे ताकि हम आपके विचारो को घर घर तक पंहुचा सके | धन्यबाद
दहेज़ विरोधी कानून (498A) का दुरूपयोग “कानूनन-आतंकवाद” के समान हैं
दहेज़ विरोधी कानून (498A) का दुरूपयोग “कानूनन-आतंकवाद” के समान हैं : माननीय सुप्रीम कोर्ट
यह मुद्दा (दहेज़ विरोधी कानून-498A) बहुत ही प्रासंगिक है, कुछ विचारनीय प्रश्न और बिंदु इस प्रकार है :
1. इस दहेज़ विरोधी क़ानून (498A) के दुरूपयोग ने शादी को तोड़ना बहुत आसान बना दिया है और शादी निभाना बहुत कठिन…..
2. टूटती शादीओ का असली बोझ उठाते है , मासूम बच्चे , उनके प्रति भी कुछ ज़िम्मेदारी है समाज की और क़ानून विशेषज्ञों की ? ईलैक्ट्रानिक मीडिया / चैनल को बच्चो का प्रतिनिधित्व भी करना चाहिए.
3. माननीय कोर्ट को मानवीय सोच के साथ यह भी देखना चाहिये कि इस प्रकार के कानून मे सिर्फ बहू (विवाहिता/वादी) ही महिला नही है अपितु सास (माँ), ननद (बहन), व भाभी भी महिला है, जिनको कि बहू (विवाहिता/वादी) सबसे पहले अभियुक्त बनाती है सिर्फ इस सोच के साथ कि बाद मे समझौते के तहत अधिक से अधिक एकमुश्त पैसा प्राप्त कर सके ।
4. दहेज के लिए दहेज प्रतिरोधक क़ानून अलग से है, यह क़ानून क्रूरता के लिए है और इसका इस्तेमाल खुलेआम दहेज से जोड़कर किया जा रहा है, जो की अपने आप मैं सबूत है, इसके मिसयूज़ का ?
5. यह क़ानून एक गुनहगार को सज़ा दिलाने के लिए लाखो बेगुनाह को शिकार बना रहा है . इसे बंद कर देना चाहिए. असली सशक्तिकरण शिक्षा से आता है जो की अर्बन महिलाओ में आ चुका है.
6. इस क़ानून का सिर्फ़ और सिर्फ़ मिसयूज़ है, क्योंकि असली विक्टिम , अगर कोई है तो , वो दहेज देने के समय शादी से माना कर सकती है, या फिर एक क्रूर पार्ट्नर से संबंद तोड़ सकती , कभी भी.
7. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर आश्चर्य जताया है कि 498A के अधिकाशं केसो में समझौता कैसे हो जाता है (?) जबकि यह धारा (498A) गैर-समझौतावादी है? किस प्रकार एक वादी (पत्नी ??) 498A का केस करके, एक समझौते के तहत एकमुश्त पैसा प्राप्त कर लेती है और फिर उसी माननीय कोर्ट के समक्ष अपने पूर्व के आरोपो को वापिस ले लेती है ???
8. शोयिब मलिक पर 498A लगाया था, परंतु क्या मुद्दा दहेज का था ? हर कोई जानता है, की मुद्दा पैसे का था और पैसा देते ही खत्म हो गया| मेरठ का नितीश-आडति प्रकरण भी अभी ज्यादा पुराना नही हुआ है कि किस प्रकार से लङ्की व उसके अभिभावको ने इस दहेज़ विरोधी क़ानून (498A) का दुरूपयोग कर रहे है।
9. यह क़ानून लीगल टेररिज़म है, जो की देश की नवयुवक पीढ़ी की उर्जा ओर और समय को खा रहा है, अगर देश का युवा ऐसे ही अदालत मे समय लगता रहा अपने को निर्दोष साबित करने के जद्दोजहद में तो कैसे हम मुकाबला करेंगे चीन, अमेरिका, जापान से ?
10. इसी कानून (498A) मे एसे प्रावधान भी होने चाहिये जिससे कि केस को लम्बित रखने और केस के झूठे सिद्ध होने पर वादी को सज़ा मिल सके, जिससे दहेज़ विरोधी क़ानून (498A) का दुरूपयोग रोका जा सके ।
धनयवाद,
दहेज प्रताड़ना कानून का दुरुपयोग
|
I need help regarding that issues,
ReplyDeletethank you, bahut accha blog hai ,ye sach hai ki jydatar pati (94%) jhoothey mamlo me fasaye jatey hai,aur unki koi nahi sunta hai ,vo kya kare ,kahan jaye,? is liye ab sarkar ko is tahara ke kanoono ko khatam kar dena chahiye.
ReplyDeleteसिर्फ तलाक क्यों पत्नी के ऊपर अपराधिक मामला चलना चाहिए ।
ReplyDeleteसिर्फ तलाक क्यों पत्नी के ऊपर अपराधिक मामला चलना चाहिए ।
ReplyDeleteBilkul sahi Hai
ReplyDeleteजिस तरह से लड़को को और उनके परिवार को सजा मिलती है, उसी तरह लड़कियों को और उसके परिवार को भी सजा मिलनी चाहिए
ReplyDeletebilkul sahi kaha apne
DeleteGovernment nai bhout galt kiya hai jo koi bhi aisa kanun ni deya jo ladhki pai dabav bana dai... ladhkiya tou jhutai mukdmai kr dai tei hai jis mai ek ki hinsa mai purai parivar valo yaha tk bhain bhanoi tk ko khich lai tei hai tb bhi es kanun ko yai ni dekh ta ki shadi ek sai hue saja en sb ko..... akhir kar yai konun hi ghr begadh ra hai jo ladhkiyo ko badhva dai ta hai... or vo ghr akr apni maan mani chala tei.... hai...
ReplyDeleteMeri manineyai adalat sai vintei hai ki aap plz apnai law mai koi chang karai jis kuch tou dabav ban jy ladhkei pr.....
जबकि अदालत में झूठी साबित हो गयी के बदले में सजा कैसे हो
ReplyDeleteAgar patni 125 crpc ki application dede to pati isse kese bache
ReplyDelete