498a (दहेज़ एक्ट) का दुरूपयोग

धारा 498a और घरेलू हिंसा और उत्पीडन के दुरुपयोग के खिलाफ एक प्रयास

यह कानून आप के लिए किस क़दर खतरनाक है और आप किस प्रकार खतरे में है और यह समाज के लिए कितना घातक है --
आपकी पत्नी द्वारा पास के पुलिस स्टेशन पर 498a दहेज़ एक्ट या घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक लिखित झूठी शिकायत करती है तो आप, आपके बुढे माँ- बाप और रिश्तेदार फ़ौरन ही बिना किसी विवेचना के गिरफ्तार कर लिए जायेंगे और गैर-जमानती टर्म्स में जेल में डाल दिए जायेंगे भले चाहे की गई शिकायत फर्जी और झूठी ही क्यूँ न हो! आप शायेद उस गलती की सज़ा पा जायेंगे जो आपने की ही नही और आप अपने आपको निर्दोष भी साबित नही कर पाएँगे और अगर आपने अपने आपको निर्दोष साबित कर भी लिया तब तक शायेद आप आप न रह सके बल्कि समाज में एक जेल याफ्ता मुजरिम कहलायेंगे और आप का परिवार समाज की नज़र में क्या होगा इसका अंदाजा आप लगा सकते है
498a दहेज़ एक्ट या घरेलू हिंसा अधिनियम को केवल आपकी पत्नी या उसके सम्बन्धियों के द्वारा ही निष्प्रभावी किया जा सकता है आपकी पत्नी की शिकायत पर आपका पुरा परिवार जेल जा सकता है चाहे वो आपके बुढे माँ- बाप हों, अविवाहित बहन, भाभी (गर्भवती क्यूँ न हों) या 3 साल का छोटा बच्चा शिकायत को वापस नही लिया जा सकता और शिकायत दर्ज होने के बाद आपका जेल जाना तय है ज्यादातर केसेज़ में यह कम्पलेंट झूठी ही साबित होती है और इस को निष्प्रभावी करने के लिए स्वयं आपकी पत्नी ही आपने पूर्व बयान से मुकर कर आपको जेल से मुक्त कराती है आपका परिवार एक अनदेखे तूफ़ान से घिर जाएगा साथ ही साथ आप भारत के इस सड़े हुए भ्रष्ट तंत्र के दलदल में इस कदर फसेंगे की हो सकता आपका या आपके परिवार के किसी फ़र्द का मानसिक संतुलन ही न बिगड़ जाए यह कानून आपकी पत्नी द्वारा आपको ब्लेकमेल करने का सबसे खतरनाक हथियार है इसलिए आपको शादी करने से पूर्व और शादी के बाद ऐसी भयानक परिस्थिति का सामना न करना पड़े इसके लिए कुछ एहतियात की ज़रूरत होगी जो की इसी ब्लॉग पर मौजूद है आप उसे पढ़े और सतर्क रहे 

पुरुष भी हैं घरेलू हिंसा का शिकारPDFPrintE-mail

Written by भास्कर न्यूज   
Wednesday, 14 October 2009 09:27
लुधियाना . स्वतंत्र आवाज वेलफेयर आग्रेनाइजेशन ने दहेज व घरेलू हिंसा कानून के दुरुपयोग के मसले उठाए है। आग्रेनाइजेशन के अनुसार पिछले पांच वर्षो के दौरान देश में दहेज प्रताड़ना के मात्र दो प्रतिशत मामले ही साबित हो पाए हैं। साफ जाहिर है कि इस कानून का दुरुपयोग रहा है। पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार हो रहे हैं, लेकिन विडंबना है कि कानून उनकी इस शिकायत पर गौर नहीं कर रहा है।
अगर एक महिला अपने पति या ससुरालियों के खिलाफ थाने में दहेज उत्पीड़न की झूठी शिकायत भी दे देती है, तो पुलिस बिना जांच उस पूरे परिवार को उठा लाती है। बिना कसूर परिवार को जेल में रहना पड़ता है। महिला सशक्तिकरण के लिए सरकारें काम कर रही हैं और कानून भी महिलाओं के हक में बनाए गए हैं, लेकिन दहेज उत्पीड़न में वृद्ध महिलाएं व अविवाहित लड़कियां भी कष्ट झेलती हैं। ऐसे कई केस हैं जब रंजिशन दर्ज कराए मामलों में किशोर सदस्यों को भी जेल में धकेल दिया जाता है।
आग्रेनाइजेशन के सदस्य गौरव सैनी के अनुसार वह संसद को इस बारे में ज्ञापन भेज कर संशोधन के लिए आग्रह करेंगे। गौरव सैनी के मुताबिक पुलिस ऐसे मामलों को दर्ज करने में कोई जल्दबाजी दिखाए बिना पूरी जांच के बाद केस दर्ज करे। दफा 498—ए को जमानत योग्य बनाया जाए। वह पंजाब में करीब 500 परिवारों के केसों का ब्यौरा एकत्रित कर चुके हैं। उन्होंने पीड़ित परिवारों के लिए हेल्प लाइन भी जारी की है।
YEH KAISA INSAAF

मुझे मेरी बीवी से बचाओ  
Written by Navbharat Times   
Monday, 03 August 2009 14:16

ऐसा नहीं है कि दहेज के लिए लड़कियों को सताने के मामले कम हो गए हैं। अब भी हर रोज कहीं न कहीं से दहेज उत्पीड़न की खबरें आती रहती हैं। दहेज हत्याओं का सिलसिला भी जारी है। हालांकि दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा का दूसरा पहलू भी कम चिंताजनक नहीं है। यह है दहेज कानून की आड़ में लड़के और उसके परिवारवालों को तंग करना दहेज के झूठे मामले दर्ज कराना। महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने कानूनों का धड़ल्ले से गलत इस्तेमाल हो रहा है। इसी का नतीजा है कि महिला मुक्ति की तर्ज पर पुरुष भी अपने हकों के लिए एकजुट होने लगे हैं। मंडे स्कैन में इसी के अलग - अलग पहलुओं को टटोल रही है पूनम पाण्डे की स्पेशल रिपोर्ट -
मजाक के लिए तराशे गए जुमले ' मुझे मेरी बीवी से बचाओ ' अब हकीकत बन चुके हैं। बीवियों के सताए पति त्रस्त होकर ऐसी गुहार लगा रहे हैं। ' दहेज और घरेलू हिंसा कानून की आड़ में अगर बीवी सताए तो हमें बताएं ' लिखे पोस्टर मेट्रो सिटीज में आम हो गए हैं। कुछ लोग पहचान छुपाकर अत्याचार का शिकार पुरुषों की मदद कर रहे हैं , तो कुछ सड़कों से लेकर कोर्ट तक और मीडिया से लेकर इंटरनेट तक के जरिए अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं।
2005 में तीन ऐसे ही लोगों से शुरू हुए ग्रुप के साथ अब दुनिया भर में एक लाख से ज्यादा ऐक्टिव मेंबर जुड़ चुके हैं। पढ़े लिखे , मैनिजमंट , आईटी , टेलिकॉम , बैंकिंग , सर्विस इंडस्ट्री , ब्यूरोक्रेट्स सरीखे सभी फील्ड के प्रफेशनल्स ने मिलकर ' सेव फैमिली फाउंडेशन ' बनाई है। इनका दावा है कि दिल्ली - एनसीआर में 5 लाख ऐसे लोग हैं , जो कथित तौर पर पत्नियों के पक्ष में बने एकतरफा कानून (498 ए और घरेलू हिंसा कानून ) से पीड़ित हैं या इसे झेल चुके हैं।
आजादी की आस
अत्याचार के शिकार पति इस बार स्वतंत्रता दिवस पारंपरिक तरीके से नहीं मनाने वाले हैं। देश भर से करीब 30 हजार लोगों के प्रतिनिधि के तौर पर अलग - अलग शहरों से सैकड़ों पति 15 अगस्त को शिमला में इकट्ठे हो रहे हैं। ये अत्याचार से आजादी के लिए रणनीति तैयार करेंगे। इनका मानना है कि ये स्त्री केंद्रित समाज में लगातार जकड़ते जा रहे हैं। इन्होंने ऐलान किया है कि ये तब तक स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाएंगे , जब तक इनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं। इनकी मांगे हैं - महिला और बाल कल्याण मंत्रालय की तर्ज पर पुरुष कल्याण मंत्रालय बनाया जाए , घरेलू हिंसा एक्ट में बदलाव किया जाए और तलाकशुदा जोड़े के बच्चों की जॉइंट कस्टडी दी जाए।
मर्द को भी होता है दर्द
पुरुष घरेलू हिंसा के शिकार होते हैं या नहीं , इसे लेकर अब तक कोई सरकारी स्टडी नहीं हुई है , लेकिन ' सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन ' और ' माई नेशन ' की एक स्टडी के मुताबिक 98 फीसदी भारतीय पति तीन साल की रिलेशनशिप में कम से कम एक बार इसका सामना कर चुके हैं। इस ऑनलाइन स्टडी में शामिल 25.21 फीसदी शारीरिक , 22.18 फीसदी मौखिक और भावनात्मक , 32.79 फीसदी आर्थिक हिंसा के शिकार बने जबकि 17.82 फीसदी पतियों को ' सेक्सुअल अब्यूज ' झेलना पड़ा।
स्टडी रिपोर्ट में कहा गया कि जब पुरुषों ने अपनी समस्या , पत्नी द्वारा अपने और परिवार वालों के शोषण के बारे में बताना चाहा तो कोई सुनने को ही तैयार नहीं हुआ। उल्टा सब उन पर हंसे। कई ने स्वीकारा कि उन्हें किसी को यह बताने में शर्म आती है कि उनकी पत्नी उन्हें पीटती है। स्टडी में विभिन्न सामाजिक और आर्थिक वर्ग के लोगों को शामिल किया गया था। इसमें ज्यादातर मिडल क्लास और अपर मिडल क्लास के थे। ऐसे में सवाल उठता है कि जब पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार बनता है , तो कानून में उसे संरक्षण क्यों नहीं मिलता। विकसित देशों की तरह घरेलू हिंसा ऐक्ट महिला और पुरुष के लिए बराबर क्यों नहीं है ?
498 ए के बारे में कुछ फैक्ट
गिरफ्तार किए गए लोगों में से 94 फीसदी लोग दोषी नहीं पाए गए। ( प्री और पोस्ट ट्रायल )
ट्रायल पूरा होने के बाद 85 फीसदी दोषी नहीं पाए गए , लेकिन इन्हें भी बिना किसी जांच के गिरफ्तार किया गया।
यूपी के खीरी जिले में ही सात सालों में 498 ए के तहत 1000 नाबालिग लड़कियां बिना किसी जांच के गिरफ्तार की गईं।
क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में रिफॉर्म्स को लेकर बनी जस्टिस मलिमथ कमिटी ने भी 2005 में अपनी रिपोर्ट में 498 ए को जमानती और कंपाउंडेबल बनाने की सिफारिश की थी।
कानून , मिसयूज और सुझाव
आईपीसी 498 ए
क्या है कानून - अगर किसी महिला को उसका पति या पति के रिश्तेदार दहेज के लिए प्रताडि़त करते हैं तो इसके तहत उन्हें तीन साल की सजा हो सकती है। इसके दायरे में दूरदराज के रिश्तेदार जैसे शादीशुदा बहन का पति ( चाहे वह वहां रहता हो या नहीं ) भी शामिल हो सकता हैं। यह संज्ञेय अपराध है। मतलब बिना कोर्ट के आदेश के पुलिस उनको गिरफ्तार कर सकती है जिनका नाम एफआईआर में है। यह गैर - जमानती है। कोर्ट से ही जमानत ली जा सकती है और कोर्ट पर निर्भर है कि कितने दिन में जमानत दे।
कैसे होता है मिसयूज - पुलिस बिना किसी जांच और सबूत के एफआईआर में नामजद लोगों को गिरफ्तार करती है। ससुराल पक्ष के लोगों को परेशान करने की नीयत से सबका नाम एफआईआर में डलवाया जा रहा है। जिन्होंने एफआईआर करवाई है , वह जमानत के लिए विरोध न करने के नाम पर मनचाही रकम वसूल रहे हैं। उन राज्यों में जहां लॉ ऐंड ऑर्डर की हालात ज्यादा खस्ता है , इसका सबसे ज्यादा मिसयूज होता है। यूपी में तो स्टेट अमेंडमंट हैं कि अंतरिम जमानत नहीं मिल सकती।
कैसे रुके मिसयूज - 498 ए में कोई भी शिकायत आए तो गिरफ्तारी तब तक ना हो जब तक कोई सबूत या साक्ष्य उपलब्ध न हों। एफआईआर में जो आरोप हैं ( जैसे - लाखों रुपये शादी में खर्च किए ) उसे साबित करने के लिए दो विटनस या डॉक्युमंट एफआईआर करते वक्त ही मांगे जाएं। अभी सिर्फ आरोप लगाना काफी माना जाता है। हालांकि उत्तराखंड जैसे कुछ स्टेट में प्रशासनिक स्तर पर बिना किसी ऑर्डर या नोटिस के इसे फॉलो किया जा रहा है। एफआईआर करने वाले को एफआईआर में शामिल लोगों से कोई मोटी रकम ना दिलाई जाए। इससे लालच बढ़ता है और मिसयूज की संभावना भी। दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस एस . एन . ढींगरा के एक जजमंट पर दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने गाइडलाइंस जारी की है कि एफआईआर में लाखों रुपये दहेज में देने के आरोप की जांच करें। अरेस्ट करने के लिए सीनियर पुलिस ऑफिसर की रिकमंडेशन लें और एफआईआर भी करें तो सीनियर पुलिस ऑफिसर की रिकमंडेशन लें।
डोमेस्टिक वॉयलंस ऐक्ट 2005
क्या है कानून - इसमें महिला अपने साथ हुए फिजिकल , इमोशनल , इकॉनमिक , सेक्सुअल वॉयलंस की शिकायत कर सकती है। शिकायत करने वाली महिला कोर्ट से संरक्षण , रहने के अधिकार , बच्चे की कस्टडी और मेंटेनेंस को लेकर ऑर्डर मांग सकती है। यह संज्ञेय या असंज्ञेय के तहत नहीं आता। कोई भी महिला पुलिस से , कोर्ट से या प्रोटेक्शन ऑफिसर से शिकायत कर सकती है। इसमें स्पीडी ट्रायल होता है। कोर्ट 60 दिनों के भीतर केस खत्म करने की कोशिश करती है।
कैसे होता है मिसयूज - अगर कोई लड़की यह शिकायत करे कि उसे घर में मारापीटा जा रहा है और घर से निकाल दिया है , तो वह कोर्ट से इस कानून के तहत रेजिडंस राइट मांग सकती है। झूठे आरोप लगाकर कोई भी लड़की ससुरालवालों को घर से बाहर निकलवा सकती है। इमोशनल वॉयलंस का आरोप लगा सकती है , जिसका कोई पैमाना नहीं है।
कैसे रुके मिसयूज - यह कानून अमेरिका के कानून की तर्ज पर बनाया गया , लेकिन वहां यह कानून जेंडर न्यूट्रल है। वहां बिना जांच पड़ताल और बिना सबूत के कोई ऐक्शन नहीं लिया जाता। हमारे कानून में इसका जिक्र नहीं कि किस तरह इसकी जांच हो। मिसयूज रोकने के लिए जांच की एक प्रक्रिया बनाई जा सकती है और इसे महिला , पुरुष के लिए समान बनाया जा सकता है।
( सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट महेश तिवारी से बातचीत के आधार पर )
'498A.org' नाम से बने एक ग्रुप को ऑनलाइन मिलीं तीन शिकायतें
पीड़ित -1, नई दिल्ली
मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं। शादी के बाद मैं , मेरी पत्नी और मेरे पेरंट्स साथ रहते हैं। दिक्कत तब शुरू हुई जब मेरे भाई का यहां ट्रांसफर हो गया। तब पिता ने हमें एक दूसरा बड़ा कमरा देकर उस कमरे को छोटे भाई को दे दिया। तब मेरी पत्नी घर पर नहीं थी। जैसे ही वह आई तो मेरे पेरंट्स पर चिल्लाने लगी कि उसका कमरा क्यों चेंज कर दिया है। उसने बेहद गलत शब्दों का इस्तेमाल किया और अपने और मेरी मां के गहने , जो उसे पार्टी में पहनने के लिए दिए थे , लेकर अपने मायके चली गई। एक महीना हो चुका है। मैं जब भी उससे बात करता हूं तो वह कहती है , हम अकेले रहेंगे। मैं अपना परिवार नहीं छोड़ना चाहता। शादी के बाद से वह हर रोज अपनी मां से मिलने जाती थी। उनका घर हमारे घर से 5-6 किलोमीटर दूर है। जब कभी मैं उसे वहां न जाने को कहता तो वह मुझे खुदकुशी की धमकी देती। अभी वह प्रेग्नंट है और अब उसके घर वाले अफवाह फैला रहे हैं कि हम उसे मारते थे और हमने उसे घर से बाहर फेंक दिया। आप बताइये मैं क्या करूं ? बेहद परेशान हूं।
पीड़ित - 2, मुंबई
शादी के बाद ही मेरी पत्नी ने मुझसे कहा , मैं हैंडसम नहीं हूं और वह मुझसे संतुष्ट नहीं है। उसने कहा कि उसने अपने भाइयों की डर से मेरे साथ शादी की क्योंकि उन्होंने मुझे चुना था , लेकिन यह बात वह अपने घर वालों के सामने नहीं कहती। उसने झूठा इल्जाम लगाकर मुझे 498 ए में फंसा दिया। मैं एक साल जेल में रहा। मैंने अपर कोर्ट में अप्लाई किया और हमारे बीच समझौता हो गया। अब मैं अपनी पत्नी और उसके पैरंट्स के साथ उनके घर पर रहता हूं। अब फिर वही हाल शुरू हो गया है। वह मुझ पर चिल्लाती है , गाली देती है और मेरी सारी सैलरी ले लेती है। मैं अपने मां - बाप का इकलौता बेटा हूं। वह मेरे साथ नहीं रहना चाहती। उसकी मां और भाई धमकाते हैं कि उसके साथ ही रहूं , नहीं तो वह फिर 498 ए के तहत शिकायत कर देंगे। मैं कैसे इससे बाहर निकलूं ?
पीड़ित - 3, मेंगलूर
मैं एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करता हूं। कभी - कभी काम के सिलसिले में बाहर जाने पर पत्नी को अपने पेरंट्स के साथ छोड़ता हूं। लेकिन यह उसे अच्छा नहीं लगता। उसे लगता है कि मैं उसकी केयर नहीं करता। मैं अपने परिवार के साथ रहना चाहता हूं , लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं है। एक दिन वह पुलिस स्टेशन गई और शिकायत दर्ज करा दी कि मैं उसे पीटता हूं और मैं और मेरे परिवार वाले उसे दहेज के लिए परेशान करते हैं। हकीकत यह है कि मेरा काफी पैसा बहुत समय तक उसके पिता के पास था जो उन्होंने अपने बेटे की शादी में इस्तेमाल किया। पुलिस हमारे घर आई और हम सब को पुलिस स्टेशन ले गई , लेकिन हमारे कुछ कॉन्टेक्ट थे , इसलिए लंबी बहस के बाद केस रजिस्टर्ड नहीं हुआ। तब उसके पेरंट्स भी मौजूद थे। तब से मैं शर्मिन्दगी महसूस करता हूं। अपनी पत्नी से बात करने का मन नहीं करता , जबकि वह मेरे साथ ही रह रही है।

कौन सुनेगा बीवी के सताए पतियों की गुहार!


नवभारत टाइम्स | Aug 19, 2009, 06.10AM IST
एनबीटी 

मुम्बई ।। पतियों से सताई गई पत्नियों की दास्तान अक्सर सुनाई दे जाती है, मगर पत्नी के पति-उत्पीड़न के किस्से भी सामने आते हैं। समस्या ये है कि कमजोर महिलाओं के पक्ष में बने कानून में इनकी को सुनवाई नहीं। सेव इंडियन फैमिली (एसआईएफ) फाउंडेशन के बैनर तले बीवियों के सताए हजारों पतियों के प्रतिनिधि के तौर पर करीब सौ लोग शिमला में मिले और आजादी के जश्न का बहिष्कार किया। 

सम्मेलन में पीडि़त पुरुषों का कहना था कि भारत आजाद और डेमोक्रेटिक कंट्री नहीं है क्योंकि यहां सामान्य वर्ग के पुरुष और खासकर शादीशुदा पुरुष के साथ भेदभाव किया जाता है। संविधान के आटिर्कल 14, 15, 20 और 21 के तहत मिले अधिकारों का हनन होता है। एसआईएफ के पीआरओ विराग धूलिया ने बताया कि दो दिन में हमने आगे की रणनीति पर काम किया। हमने इस झूठी आजादी का जश्न इसलिए नहीं मनाया क्योंकि हमारे साथ भेदभाव हो रहा है। संविधान ने हमें 'राइट टू लिबर्टी' दिया है लेकिन आईपीसी के सेक्शन 498ए के तहत अगर बीवी शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न की शिकायत करती है तो उसे वेरिफाई किए बिना और किसी सबूत के बगैर ही पुरुषों को सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है। 

उन्होंने कहा कि आर्टिकल-20 कहता है कि एक ही अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दो बार दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जबकि शादी से जुड़े मामलों में इस अधिकार का हनन होता है। एक ही आरोप के लिए 498ए, डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट, सीआरपीसी के सेक्शन 125, हिंदू मैरिज एक्ट, डाइवोर्स केस, चाइल्ड कस्टडी केस आदि मामलों में एक्शन की वजह से कई लिटिगेशन, प्रॉसिक्यूशन और ट्रायल का सामना करना पड़ता है। इसी तरह आटिर्कल-14 के मुताबिक, कानून की नजर में सब बराबर हैं। इस मामले में भी हमारे साथ भेदभाव होता है। एक तो डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट में पुरुषों को घरेलू हिंसा के खिलाफ संरक्षण नहीं दिया गया है। दूसरा, सिर्फ महिला के कहने भर से बिना किसी सबूत के पुरुष को दोषी ठहरा दिया जाता है। 
                                                                                                                                                           एसआईएफ के संस्थापक सदस्य गुरुदर्शन सिंह कहते हैं कि इन हालात में आजादी के कोई मायने नहीं हैं। यह डेमोक्रेटिक कंट्री नहीं बल्कि एक फासिस्ट कंट्री है। हमारी मांग है कि एक नैशनल लेवल कमिटी बनाई जाए, जो 498ए और डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट की संवैधानिकता की जांच करे। एक नैशनल कमिशन बने, जो पुरुषों के मुद्दों और उनकी समस्याओं की स्टडी करे और सरकार को अपनी सिफारिशें दें। मैन्स वेलफेयर मिनिस्ट्री बने। कानून में लिंगभेद खत्म किया जाए और हस्बैंड, वाइफ वर्ड हटाकर स्पाउस और मैन, वूमन की जगह पर्सन शब्द इस्तेमाल हो ताकि हम भी महसूस कर सकें कि वाकई हम एक आजाद देश के नागरिक हैं।

बीवियों के सताए पति आज करेंगे गांधीगिरी


नवभारत टाइम्स | Oct 2, 2009, 06.00AM IST
पूनम पाण्डे ।। नई दिल्ली 

इस बार 'इंटरनैशनल डे ऑफ नॉन वॉयलंस' इस मायने में अलग है कि महिला और पुरुषों के संगठन इसे अलग-अलग तरह से मना रहे हैं। पहली बार बीवियों के सताए पति इस दिन से 'घरेलू हिंसा जागरुकता महीना' मनाने की शुरुआत कर रहे हैं। इसके जरिए वे घरेलू हिंसा कानून के दुरुपयोग के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। 

2 अक्टूबर से महिला और बाल विकास मंत्रालय महिलाओं के खिलाफ हिंसा के निवारण के लिए नैशनल कैंपेन शुरू कर रहा है, वहीं पुरुषों की शिकायत है कि पत्नियों को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए घरेलू हिंसा कानून समेत कुल 15 सिविल और क्रिमिनल कानून हैं, लेकिन पतियों, बच्चों और पति की फैमिली को बचाने के लिए एक भी कानून नहीं है। पीड़ित पतियों ने अक्टूबर का महीना ही इसलिए चुना, क्योंकि 2006 में अक्टूबर के महीने में ही डोमेस्टिक वॉयलंस ऐक्ट पास हुआ था। 

सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन (एसआईएफएफ) के विराग धूलिया ने बताया कि इसके जरिए हम देशभर में अपना विरोध जताएंगे। एक महीने चलने वाले इस शांतिपूर्ण विरोध में बेंगलुरु, पुणे, नागपुर, हैदराबाद और दिल्ली में कई कार्यक्रम होंगे। आम जनता के अलावा हम उन लोगों को भी एजुकेट करेंगे जो शादी कर रहे हैं और घरेलू हिंसा कानून के बारे में जिन्हें जानकारी नहीं है। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वे इसके शिकार न बनें।  
एसआईएफएफ के फाउंडर मेंबर गुरुदर्शन सिंह कहते हैं कि मानवाधिकार के यूनिवर्सल डिक्लरेशन के मुताबिक कानून की नजर में किसी भी आरोपी को यह अधिकार है कि वह तब तक निर्दोष माना जाए, जब तक दोषी साबित नहीं हो जाता। लेकिन घरेलू हिंसा ऐक्ट में हमारा कानून यह मानता है कि जब तक आरोपी निर्दोष साबित नहीं होता, तब तक वह दोषी है। यह निष्पक्ष ट्रायल के यूनिवर्सल सिद्धांत के खिलाफ है। हर साल 4 हजार निर्दोष सीनियर सिटीजन और 350 बच्चों समेत करीब एक लाख निर्दोष लोग आईपीसी के सेक्शन 498ए के तहत बिना सबूत और जांच के गिरफ्तार होते हैं। 

मानवाधिकार के यूनिवर्सल डिक्लरेशन के मुताबिक कानून की नजर में सब बराबर हैं और बिना किसी भेदभाव के कानून में समान संरक्षण के अधिकारी हैं। साथ ही, संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत की सीमा के भीतर राज्य, किसी व्यक्ति को कानून में बराबर के अधिकार और कानून में बराबर संरक्षण के अधिकार से मना नहीं कर सकता। लेकिन डोमेस्टिक वॉयलंस ऐक्ट पुरुषों को घरेलू हिंसा में संरक्षण देने से साफ मना करता है। हर साल 56 हजार से ज्यादा शादीशुदा पुरुष मौखिक, भावनात्मक, इकनॉमिक और फिजिकल अब्यूज और लीगल ह्रासमेंट की वजह से खुदकुशी करते हैं। लेकिन पुरुषों के संरक्षण की कोई बात नहीं कर रहा है।  

Written by Jaipur Patrika   
Wednesday, 29 April 2009 13:59

जयपुर। दहेज प्रताडना से जुडे मामलों में हमेशा से ही पत्नी ससुरालवालों की प्रताडना झेलती आ रही है। इससे उलट शहर के एक युवक ने अपनी पत्नी व ससुराल वालों पर उसे परेशान करने तथा षड्यंत्रपूर्वक दहेज देने का आरोप लगाते हुए अदालत में परिवाद दायर किया है। सी-स्कीम निवासी चन्द्रबदन शर्मा की ओर से दायर परिवाद पर शहर की एक अधीनस्थ अदालत ने मंगलवार को मामला दर्ज करने के आदेश सुनाए।
न्यायिक मजिस्ट्रेट क्रम-ग्यारह जयपुर शहर ने परिवाद को अशोक नगर थानाधिकारी को भिजवाते हुए मामला दर्ज करने तथा उसकी जांच रिपोर्ट अदालत में पेश करने को कहा है। परिवाद में चन्द्रबदन ने दौसा निवासी ससुर सत्यनारायण पुरोहित, सास पुष्पा पुरोहित, साले कपिल व विकास पुरोहित व पत्नी ऋतु को अभियुक्त बनाया है। अधिवक्ता अश्विनी बोहरा ने अदालत में पेश परिवाद में बताया कि वर्ष 2006 में वैवाहिक रिश्ता तय होने पर परिवादी ने ससुरालवालों को स्पष्ट कह दिया था कि विवाह में उसे कोई सामान नहीं चाहिए, लेकिन इसके बाद भी सगाई व विवाह में ससुरालवालों ने दहेज के तौर पर सामान देना चाहा, लेकिन प्रार्थी ने लेने से इनकार कर दिया।
शादी के कुछ दिनों बाद ससुराल वाले दहेज के सामान को प्रार्थी के घर रखकर चले गए। बाद में ससुराल वाले प्रार्थी को अपने पिता का मकान ऋतु के नाम करवाने या अलग मकान दिलवाने के लिए परेशान करने लगे। ससुराल वालों ने आपराधिक षड्यंत्र रचकर दहेज का सामान दिया है, जो दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा-तीन के तहत अपराध है।
उधर, पत्नी ऋतु ने भी पति चन्द्रबदन शर्मा व उसके परिजनों पर दहेज प्रताडना व घरेलू हिंसा अधिनियम में मामला दर्ज करवा रखा है।

दहेज देने वाले भी रहें खबरदार

Written by राजेश चौधरी   
Monday, 01 March 2010 17:16
नई दिल्ली।। दहेज निरोधक कानून का इस्तेमाल कम होने के कारण ही दहेज से संबंधित मामलों में बढ़ोतरी हुई है। जानकारों का कहना है कि अगर 1961 में बना दहेज निरोधक कानून का सही तरीके से पालन किया जाए तो दहेज जैसी कुरीतियों पर काफी हद तक अंकुश लगेगा क्योंकि इस कानून के तहत न सिर्फ दहेज लेना जुर्म है बल्कि दहेज देना भी जुर्म है।
समाज में दहेज जैसी कुरीति को खत्म करने के लिए 1961 में कानून बनाया गया। हालांकि बाद में आईपीसी में संशोधन कर धारा-498 ए बनाया गया जिसके तहत पत्नी को प्रताडि़त करने के मामले में सजा का प्रावधान किया गया। साथ ही लड़की का स्त्रीधन रखने के मामले में अमानत में खयानत का केस दर्ज करने का प्रावधान है।
कानूनी जानकार बताते हैं कि दहेज निरोधक कानून की धारा-8 कहती है कि दहेज देना और लेना दोनों ही संज्ञेय अपराध हैं। इसमें धारा-3 के तहत मामला दर्ज हो सकता है और जुर्म साबित होने पर कम से कम 5 साल कैद का प्रावधान है। साथ ही कम से कम 15,000 रुपये जुर्माने का प्रावधान है। धारा-4 के मुताबिक दहेज की मांग करना जुर्म है। सीनियर क्रिमिनल लॉयर रमेश गुप्ता ने बताया कि शादी से पहले भी अगर लड़के वाले दहेज मांगते हैं, तब भी इस धारा के तहत केस दर्ज हो सकता है। जुर्म साबित होने पर 6 महीने से दो साल तक कैद की सजा हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के क्रिमिनल लॉयर डी. बी. गोस्वामी का कहना है कि पुलिस को ऐसे मामलों की छानबीन के दौरान काफी सजग रहने की जरूरत है। अगर एक पक्ष दहेज देने की शिकायत करता है तो निश्चित तौर पर पुलिस दहेज प्रताड़ना या दहेज निरोधक कानून के तहत दूसरे पक्ष के खिलाफ दहेज लेने का केस दर्ज करे। लेकिन दूसरी तरफ अगर रेकॉर्ड में दहेज देने की बात हो तो लड़की पक्ष पर भी कार्रवाई हो सकती है। यह कानून नेहरू जी के जमाने में बना था, मकसद था समाज में बदलाव हो। लेकिन इसके बावजूद पुलिस एकतरफा कार्रवाई करती है और इसका दुरुपयोग होता रहा है।

क्या है स्त्रीधन
शादी के समय जो उपहार और जेवर लड़की को दिया गया हो वह स्त्रीधन कहलाता है और उस पर लड़की का पूरा अधिकार है। लड़के और लड़की दोनों को कॉमन यूज के लिए भी जो फर्नीचर, टीवी अथवा अन्य आइटम दिया जाता है वह भी कई बार स्त्रीधन के दायरे में रखा जाता है। उस पर लड़की का पूरा अधिकार है और वह दहेज के दायरे में नहीं आता।

क्या है दहेज सामग्री
शादी के वक्त लड़के को दिए जाने वाले आभूषण, गाड़ी अथवा कैश के अलावा जो भी चीजें मांगी जाएं, वह दहेज कहलाती हैं।

Written by PTI   
Tuesday, 29 December 2009 23:19
नई दिल्ली ।। सुप्रीम कोर्ट ने कानून के शब्दों के बजाय उसकी भावनाओं को अहमियत देते हुए तलाक के एक मामले में पत्नी को निर्देश दिया क ि वह मुकदमा लड़ने के लिए पति को 10,000 रुपए दे। अदालत ने गौर किया कि पति बेरोजगार है जबकि पत्नी स्वतंत्र लेखन करती है। आम तौर पर सीआरपीसी की धारा 125 के तहत तलाक के मुकदमे के दौरान यह पति का कर्तव्य माना जाता है कि वह पत्नी को या उसके माता-पिता को मुकदमे के दौरान या तलाक के बाद गुजारा भत्ता दे।
जस्टिस दलवीर भंडारी की अध्यक्षता वाली बेंच ने मद्रास निवासी संतोष के स्वामी और बेंगलुरु में रहने वाली उनकी पत्नी इनेश मिरांडा के मामले की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।मिरांडा ने चेन्नै अदालत में स्वामी द्वारा दायर एक मुकदमे की सुनवाई बेंगलुरु अदालत में स्थानांतरित करने की याचिका दायर की थी। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक आदेश दिया।
मिरांडा का कहना था कि उसके द्वारा बेंगलुरु की अदालत में दायर किए गए तलाक के मुकदमे के जवाब में स्वामी ने जानबूझ कर उसे परेशान करने के लिए चेन्नै में मुकदमा दायर किया। अदालत ने गौर किया कि स्वामी बेरोजगार है, जबकि मिरांडा फ्रीलांस राइटर के तौर पर काम करती है और इतना कमा लेती है कि खुद की और तीन साल की अपनी बेटी की देखभाल कर सके।
अदालत ने आदेश दिया कि बेंगलुरु में तलाक का मुकदमा लड़ने के लिए मिरांडा अपने पति को 10.000 रुपए की मदद दे।

शुक्र है, अब तलाक लेना हुआ ज्‍यादा आसान


आपकी शादी अगर बर्बादी में तब्दील हो चुकी है, तो उससे पीछा छुड़ाना अब आसान हो गया है. केंद्रीय कैबिनेट ने मैरिज एक्ट में संशोधन को मंजूरी दे दी है. 
इसके मुताबिक तलाक की अर्जी देने के बाद कई महीनों का इंतजार जरूरी नहीं रह जाएगा. मैरिज एक्‍ट में बदलाव की कुछ मुख्‍य बातें ये हैं: 
-तलाक के लिए जरूरी शर्तों में एक नई शर्त शामिल की गई है. अगर शादी की ऐसी हालत हो गई है, जिसमें सुधार की कोई गुंजाइश न बची हो, तो इस शर्त के तहत अगर पत्नी तलाक की अर्जी देती है, तो पति विरोध दर्ज नहीं करा सकता. लेकिन अगर पति की अर्जी है और पत्नी ने विरोध दर्ज करा दिया है, तो कोर्ट उस पर विचार करेगा. 
-तलाक तो जल्दी मिलेगा, लेकिन अब तलाक के बाद पत्नी का हक आपकी उस संपत्ति पर भी होगा, जो आपने शादी के बाद जुटाई है. पत्नी को कितनी संपत्ति मिलेगी, इसका फैसला कोर्ट करेगा. 
-अगर तलाक होता है, तो गोद लिये बच्चे के भी अधिकार भी ठीक वैसे ही होंगे, जैसे अपने पैदा होने वाले बच्चों के होते हैं. 
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला किया गया. पति की संपत्ति में अधिकार देने के अलावा विवाह कानून (संशोधन) विधेयक 2010 का उद्देश्य गोद लिये हुए बच्चों को भी मां-बाप से जन्मे बच्चों के समान अधिकार दिलाना है. 
इससे पूर्व दो साल पहले राज्यसभा में यह विधेयक पेश किया गया था. फिर इसे कानून एवं कार्मिक संबंधी संसद की स्थायी समिति के पास भेजा गया. 
स्थायी समिति की सिफारिशों के आधार पर विधेयक का मसौदा फिर से तैयार किया गया और कैबिनेट द्वारा मंजूर यह विधेयक पति पत्नी का तलाक होने की स्थिति में गोद लिये बच्चों को भी मां-बाप से जन्मे बच्चों के समान अधिकार का प्रावधान करता है. 
सरकार ने संसदीय समिति की इस सिफारिश को भी हालांकि मान लिया है कि तलाक की स्थिति में पत्नी का पति की संपत्ति में अधिकार होगा, लेकिन कितना हिस्सा मिलेगा, यह मामले दर मामले आधार पर अदालतें तय करेंगी.........

jan.18/2012 

नई दिल्ली। एक जोडा शादी के बाद महज एक दिन के लिए साथ रहा लेकिन उनको तलाक लेने में पूरे 30 साल लग गए। 30 साल के बाद हाइकोर्ट ने सोमवार को उनकी तलाक की अर्जी पर मंजूरी की मोहर लगा दी। दरअसल तलाक लेने वाले जोडे की शादी 30 जून 1982 को हुई थी।

शादी के दूसरे दिन 1 जुलाई को लडकी रस्म के लिए अपने पीहर गई लेकिन लौटकर नहीं आई। पति उसको कई बार लेने के लिए लडकी के घर गया लेकिन लडकी ससुराल आने के लिए तैयार नहीं हुई। शादी के करीब 5 साल बाद लडके ने निचली अदालत में तलाक की अर्जी लगाई। 

निचली अदालत ने 1996 में तलाक की डिक्री दे दी थी। लेकिन महिला ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए तलाक पर मंजूरी दे दी। हाइकोर्ट का कहना है कि पत्नी खुद पति को छोडकर गई थी और यह तलाक का आधार बनता है।

 तलाक और 498A  के साइड इफेक्ट 



आज तलाक और 498 का दुरूपयोग बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा इसे रोकना होगा क्यूकि ये दोनों विषय हमारे देश की  संस्कृति देश समाज परिवार रिश्ते बच्चो का फ्यूचर को तबाह कर रहे है |    
तलाक के बाद तो पति पत्नी को दूसरा पति और पत्नी मिल जाते हे पर उनकी संतान को माँ बाप नहीं मिलते क्या तलाक बच्चो के फ्यूचर के  साथ  खिलवाड़  नहीं  है ? 
अगर हम चाहे तो इस गंभीर मुद्दे पर एक होकर अपने देश को परिवार को समाज को बच्चो को बचा सकते है | आज की तरह ही हालत रहे तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे देश की वैवाहिक विश्वसनीयता का आस्तित्वाव ख़तम     हो जायेगा और हमारे देश में शादी एक करार बन कर रह जाएगी |  पछमी देश आज भारत  आकर सात फेरे सात वचनों  में बंध रहे है और हम अपनी परम्परा  को भूलते जा रहे  है | कृपया  करके  मुझे अपनी राय जरुर दे ताकि हम आपके विचारो को घर घर तक पंहुचा सके | धन्यबाद 

दहेज़ विरोधी कानून (498A) का दुरूपयोग “कानूनन-आतंकवाद” के समान हैं


दहेज़ विरोधी कानून (498A) का दुरूपयोग “कानूनन-आतंकवाद” के समान हैं : माननीय सुप्रीम कोर्ट
यह मुद्दा (दहेज़ विरोधी कानून-498A) बहुत ही प्रासंगिक है, कुछ विचारनीय प्रश्न और बिंदु इस प्रकार है :

1.    इस दहेज़ विरोधी क़ानून (498A) के दुरूपयोग ने शादी को तोड़ना बहुत आसान बना दिया है और शादी निभाना बहुत कठिन…..

2.     टूटती शादीओ का असली बोझ उठाते है , मासूम बच्चे , उनके प्रति भी कुछ ज़िम्मेदारी है समाज की और क़ानून विशेषज्ञों की ? ईलैक्ट्रानिक मीडिया / चैनल को बच्चो का प्रतिनिधित्व  भी करना चाहिए.

3.     माननीय कोर्ट को मानवीय सोच के साथ यह भी देखना चाहिये कि इस प्रकार के कानून मे सिर्फ बहू (विवाहिता/वादी) ही महिला नही है अपितु सास (माँ), ननद (बहन), व भाभी भी महिला है, जिनको कि बहू      (विवाहिता/वादी) सबसे पहले अभियुक्त बनाती है सिर्फ इस सोच के साथ कि बाद मे समझौते के तहत  अधिक से अधिक एकमुश्त पैसा प्राप्त कर सके ।

4.      दहेज के लिए दहेज प्रतिरोधक क़ानून अलग से है, यह क़ानून क्रूरता के लिए है और इसका इस्तेमाल  खुलेआम दहेज से जोड़कर किया जा रहा है, जो की अपने आप मैं सबूत है, इसके मिसयूज़ का ?

5.      यह क़ानून एक गुनहगार को सज़ा दिलाने के लिए लाखो बेगुनाह को शिकार बना रहा है . इसे बंद कर देना चाहिए. असली सशक्तिकरण शिक्षा से आता है जो की अर्बन महिलाओ में आ चुका है.

6.      इस क़ानून का सिर्फ़ और सिर्फ़ मिसयूज़ है, क्योंकि असली विक्टिम , अगर कोई है तो , वो दहेज देने के समय शादी से माना कर सकती है, या फिर एक क्रूर पार्ट्नर से संबंद तोड़ सकती , कभी भी.

7.       माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर आश्चर्य जताया है कि 498A के अधिकाशं केसो में समझौता कैसे हो जाता है (?) जबकि यह धारा (498A) गैर-समझौतावादी है? किस प्रकार एक वादी (पत्नी ??) 498A का केस करके, एक समझौते के तहत एकमुश्त पैसा प्राप्त कर लेती है और फिर उसी माननीय कोर्ट के समक्ष अपने पूर्व के आरोपो को वापिस ले लेती है ???

8.       शोयिब मलिक पर 498A लगाया था, परंतु क्या मुद्दा दहेज का था ? हर कोई जानता है, की मुद्दा पैसे का था और पैसा देते ही खत्म हो गया| मेरठ का नितीश-आडति प्रकरण भी अभी ज्यादा पुराना नही हुआ है कि किस प्रकार से लङ्की व उसके अभिभावको ने इस दहेज़ विरोधी क़ानून (498A) का दुरूपयोग कर रहे है।

9.       यह क़ानून लीगल टेररिज़म है, जो की देश की नवयुवक पीढ़ी की उर्जा ओर और समय को खा रहा है, अगर देश का युवा ऐसे ही अदालत मे समय लगता रहा अपने को निर्दोष साबित करने के जद्दोजहद में तो कैसे हम मुकाबला करेंगे  चीन, अमेरिका, जापान से ?

10.      इसी कानून (498A) मे एसे प्रावधान भी होने चाहिये जिससे कि केस को लम्बित रखने और केस के झूठे सिद्ध होने पर वादी को सज़ा मिल सके, जिससे दहेज़ विरोधी क़ानून (498A) का दुरूपयोग रोका जा सके ।
धनयवाद,                 

दहेज प्रताड़ना कानून का दुरुपयोग

बाहरी दिल्ली, जागरण संवाददाता : रोहिणी कोर्ट की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ. कामिनी लॉ ने दहेज प्रताड़ना के एक मामले में शिकायतकर्ता के रवैये पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कानून की धारा 498ए यानी दहेज प्रताड़ना का दुरुपयोग हो रहा है। पिछले कुछ समय में ऐसा पाया गया है कि इस कानून की आड़ में मानव अधिकारों का उल्लंघन, अवैध वसूली और भ्रष्टाचार के लिए किया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस दुरुपयोग को स्वीकार किया था और कहा था कि यह कानूनी आतंक है। यह कानून बदला लेने, दहेज की वसूली और तलाक का दबाव बनाने के लिए नहीं, बल्कि दोषियों को सजा देने के लिए है।
शनिवार को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने इस मामले में निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया, जिसमें चार आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था। मामले के अुनसार शिकायतकर्ता वीणा ने पति, सास-ससुर व देवर के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज किया था। निचली अदालत ने चारों आरोपियों को बरी कर दिया, तो वाणी ने सत्र न्यायालय में चुनौती दी। सत्र अदालत ने पाया कि वीणा व उसके पति के बीच वर्ष 2000 में स्त्रीधन आदि लेन-देन का मामले का निबटारा हो गया था। उसके बाद वीणा ने ससुराल वालों पर दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया था।
वीणा का आरोप था कि दहेज के लिए उसकी पिटाई की गई, जिससे उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। लेकिन वह अस्पताल का कोई सबूत नहीं पेश कर सकी। साथ ही अदालत में वीणा के भाई व पिता भी वीणा द्वारा पति पर लगाए गए आरोपों से इनकार कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे में आरोपियों को कैसे दोषी ठहराया जा सकता है। इसके लिए अदालत ने प्रसिद्ध कवि साहिर लुधियानवी की इन पक्तियों का हवाला देते हुए कहा कि 'तार्रुफ रोग हो जाए तो उसको भुलाना बेहतर, ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा। वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकीन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।'

एक पत्नी की घिनोनी करतूत ।

पति को मारने के लिए बुलाए गुंडों ने महिला का गैंग रेप किया ।

एक पत्नी की घिनोनी करतूत ।

पति को मारने के लिए बुलाए गुंडों ने महिला का गैंग रेप किया ।3 Apr 2012, 1122 hrs IST,टाइम्स न्यूज नेटवर्क    फाल्गुनी बनर्जी।। पोल्बा (हुगली)
एक महिला ने अपने प्रेमी की मदद से कुछ गुंडों को अपने पति के कत्ल की सुपारी दी थी। उन गुंडों ने पति के कत्ल के बाद महिला के साथ गैंग रेप किया। यह घटना कोलकाता से करीब 60 किलोमीटर दूर हुगली में पोल्बा के पटना गांव में घटी।

महिला का 50 साल का पति आलू की खेती करता था और अमीर था। जब वह बाथरूम जाने के लिए उठा, तब उस पर आंगन में हमला हुआ। कातिलों ने उसका गला काट दिया और कई बार चाकू घोंपा। इसके बाद गुंडों ने पूरे घर को इस तरह कर दिया जैसे कि वहां पर डकैती हुई हो। उन्होंने महिला और बेटे को भी बांध दिया। घर से जाने से पहले गुंडों ने महिला के साथ गैंग रेप किया।

39 साल की इस महिला का प्रेमी 25 साल का एक किसान है। प्रेमी ने पुलिस को बताया कि उसने गुंडों को रेप करने से रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन गुंडों ने उसे भी बांध दिया था। बेलघरिया, बारानगर और बंदेल से भाड़े के उन गुंडों को प्रेमी ने ही बुलाया था। महिला और उसके प्रेमी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया है। उन दोनों समेत गुंडों को भी गिरफ्तार कर लिया गया है।

पूरे मामले में पुलिस को महिला की भूमिका पर तब शक हुआ कि जब उसे पता चला कि महिला ने अपनी शिकायत में रेप का जिक्र नहीं किया है, जबकि मेडिकल जांच में इसकी पुष्टि हुई। महिला ने एफआईआर में केवल डकैती और कत्ल का जिक्र किया था।


शादी के दिन से ही फूट गई बेचारे पति की किस्मत!

 Source:   Bhaskar News   |   Last Updated 13:18(23/11/11)

 रायपुर/ पलारी। ग्राम खैरा (अमेठी) निवासी दीनदयाल धृतलहरे ने गत रविवार को पुलिस थाने पहुंच पत्नी के अत्याचार से बचाने की मांग की। इस पर पुलिस ने घरेलू मामला होने के कारण पत्नी को थाने बुलाकर अत्याचार न करने की हिदायत दी तथा दोनों को घर वापस भेज दिया। अंचल में यह अपने किस्म का पहला मामला है।

आम तौर पर तो पत्नी ही पति के अत्याचार से परेशान रहती हैं। लेकिन ग्राम खैरा का मामला उल्टा है। दीनदयाल पिता संतराम दो बच्चों का पिता है। उसका कहना है कि उसकी किस्मत तो उसी दिन फूट गई थी, जिस दिन उसकी शादी हुई। शादी के बाद उसकी पत्नी के अत्याचार का जो सिलसिला शुरू हुआ वह खत्म ही नहीं हुआ। शुरू में तो लोग हसेंगे सोचकर वह चुप रह जाता था।

  धीरे-धीरे जब सबको पता चल गया तो उसने इसे अपनी नियति मान लिया। जब हद से ज्यादा अत्याचार और जान का खतरा महसूस हुआ तो वह थाने पहुंचा लेकिन पुलिस भी इस मामले में कुछ खास नहीं कर सकती थी, उसने उसे घर तो वापस भेज दिया है, लेकिन दीनदयाल के मन से पत्नी की दहशत तो बनी हुई है। इस घटना की चर्चा नगर सहित आसपास रही।

इलाहाबाद उच्च न्यायलय की एक महत्वपूर्ण पहल ।

 हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक गंभीर पहल करते हुए कहा कि यदि किसी मामले में पति, उसके परिवार वाले या अन्य रिश्तेदार निचली अदालत में पेश किए जाएं, तो अदालत उन्हें तत्काल अंतरिम जमानत पर रिहा कर दे और मामले को मीडिएशन सेंटर भेजें, क्योंकि पति-पत्नी के छोटे-मोटे झगड़े अदालत की दहलीज पर पहुंचकर उनके रिश्ते में नासूर बन जाते हैं। उच्च न्यायालय की यह पहल महत्वपूर्ण है, क्योंकि बीते वर्षों में नगर संस्कृति ने वैवाहिक रिश्तों के स्वरूप को बदल दिया है। जीवन की आपाधापी में तिल का ताड़ बन जाने वाले घरेलू मुद्दे अदालतों के चक्कर काटते दिखाई दे रहे हैं।


सामाजिक व नैतिक मूल्यों में आए बदलाव के चलते ‘प्यार’ और ‘विवाह’ की परिभाषा बदल गई है। विवाह अब ‘दायित्व’ के निर्वहन का नाम नहीं, बल्कि अधिकारों की प्राप्ति का युद्धक्षेत्र बनता जा रहा है। चिंतनीय प्रश्न यह है कि क्यों वैवाहिक संबंधों में बदला लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। विवाह ऐसा बंधन है, जहां स्त्री और पुरुष कुछ रस्में पूरी कर जीवन भर साथ रहने का वचन लेते-देते हैं, परंतु जरूरी नहीं कि जीवनपर्यंत, जीवन में सहजता और सरसता बनी रहे। कभी-कभी अहं का टकराव और वैवाहिक मतभेद संबंधों में खटास पैदा कर देते हैं। स्थिति तब अधिक घातक हो जाती है, जब किसी एक को अपना अस्तित्व खोता नजर आए, जिसकी प्रतिक्रिया कभी-कभी मिथ्या आरोप गढ़कर रिश्तों को नीचा दिखाने की चाह में सलाखों के पीछे पहुंचाने तक की हो जाती है। केवल बयान पर ही ससुराल पक्ष के सभी आरोपियों को जेल भेजे जाने की व्यवस्था ने कानून के नाजायज इस्तेमाल को बढ़ा दिया है। इस बढ़ती प्रवृत्ति पर दिल्ली की एक अदालत ने भी पिछले दिनों चिंता जताई थी। ‘सेव फैमिली फाउंडेशन’ और ‘माई नेशन’ के मुताबिक, भारतीय पति मौखिक, भावनात्मक और आर्थिक हिंसा का शिकार बन रहे हैं। यह ठीक है कि ऐसे पुरुषों की संख्या पीड़ित स्त्रियों की अपेक्षा बहुत कम हो, लेकिन इस प्रवृत्ति को पूरी तरह अविश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। हमेशा ही यह मानकर नहीं चला जा सकता कि पुरुष सदैव शोषक और स्त्री शोषित ही होती है। यह मानवाधिकार के लिहाज से भी गलत है कि किसी गैरजघन्य अपराध के मामले में बिना जांच किए किसी व्यक्ति को सिर्फ एफआईआर के आधार पर गिरफ्तार कर लिया जाए।
समय बदल रहा है और स्त्री-पुरुष के रिश्ते इस बदलाव में अपना संतुलन खोज रहे हैं। यह संतुलन किसी कानून से नहीं कायम किया जा सकता। कानून से रोका भी नहीं जा सकता। यह कानून का मसला है भी नहीं। कानून तो सिर्फ उसके दुरुपयोग की वजह से कठघरे में खड़ा है। ऐसे कानून हमें चाहिए, लेकिन दुरुपयोग न होने की गारंटी के साथ।

एक औरत कहाँ तक गिर सकती है ।

विधवा बहू के कारनामें से चौंक गए ससुर जी, उड़ गए होश!


रायपुर। पति की मृत्यु के बाद दूसरी शादी करने वाली युवती ने मृत पति के पिता का मकान हड़पने के लिए फर्जी दस्तावेज बनवाए और संपत्ति अपने नाम करवा ली। पुलिस से शिकायत के बाद गड़बड़ी सामने आ गई। पुलिस ने आरोपी बहू के खिलाफ चारसौबीसी का केस दर्ज कर लिया है।

आरोपी सुषमा निर्मलकर के पति की मौत कुछ वर्ष पहले हो चुकी है। इसके बाद उसने दूसरा विवाह कर लिया। दूसरी शादी के बाद उसके दो बच्चे हुए। सुषमा का पहला ससुराल गुढ़ियारी में था। उसने उसी मकान को हड़पने की योजना बनायी। वह इस कोशिश में कामयाब हो गई। फर्जी दस्तावेज बनाकर मकान अपने नाम पर करवा लिया। बाद में नगर निगम में नामांतरण करवाने की अर्जी दी। इसके लिए भी उसने फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत किए।

उसके पहले पति की बहन उमा देवी निमर्लकर को इस बात की खबर हो गई। जब उसने इसकी चर्चा घर वालों से की तो बहु के इस कारनामें से ससुराल के लोग चौंक गए. उसने एसएसपी दिपांशु काबरा से मिलकर पूरे हालात की जानकारी दी। उन्होंने इस बात को गंभीरता से लिया और गोलबाजार थाने को निर्देश दिए। पुलिस ने परीक्षण के बाद अपराध पंजीबद्ध कर लिया। इस मामले में सुषमा के दूसरे पति की भूमिका की भी जांच की जा रही है।


कोई भी सफल महिला अपने घर से लड़कर सफल नहीं हुई बल्कि परिवार का साथ पाकर ही सफल बनी है


क़ानून के दुरुपयोग से पीड़ित पति
आजकल भारत में झूठे मामले में पतियों को पत्नियों द्वारा फ़साना आम बात हो गयी है । यदि किसी पत्नी को पति को काबू में रखना है और पति काबू में आने से मना कर दे तो 498A और DV जैसे क़ानून पत्नियों की सहायता करने के लिए तत्पर हैं। यदि पत्नी को पति का अपने माँ बाप की सहायता करना अच्छा नहीं लगता तो भी वह इन क़ानून की आड़ लेकर पति तो फसा सकती है।

Tuesday 23 February 2010
आज के अखबार में खबर पढ़ी। कुछ अनोखी सी लगी। अनोखी इसलिए कि अपने प्रदेश में नामी वकील रहीं और अब रायपुर की मेयर बनीं किरणमयी नायक ने जो कुछ कहा वह आज की कथित प्रगतिशील महिलाओं को शायद हजम ना हो।

कल आयोजित किए गए एक दिवसीय कार्यशाला में नुख्य अतिथि की आसंदी से रायपुर निगम की महापौर किरणमयी नायक ने कहा कि किस्सा यहाँ एक के साथ चार फ़्री का है! दहेज की रिपोर्ट दर्ज कराते वक्त महिलाएं इस मुगालते में रहती हैं कि बस रिपोर्ट दर्ज कराई और ससुराल वालों को सजा मिल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं होता। वह दहेज की एक रिपोर्ट लिखवाती है और बदले में उसे चार केस भुगतने पड़ते हैं यानि तलाक, मेंटेनेंस, संपत्ति में अधिकार और बच्चे हैं तो उसकी गार्जनशिप का मामला भी उसे फेस करने होते हैं। अकेले परिवार की जिद और सास-ससुर को नहीं रखने वाली महिला कहीं की नहीं रह जाती और दहेज का मामला दायर करने के बाद वह वापस भी नहीं जा पाती। उन्होंने महिलाओं से कहा कि अपने घर को जोड़कर रखें न कि अपने घर के मामले को पुलिस थाने तक ले कर जाएं। उन्होंने कहा कि कोई भी सफल महिला अपने घर से लड़कर सफल नहीं हुई बल्कि परिवार का साथ पाकर ही सफल बनी है, इसलिए अपने अधिकारों से ज्यादा कर्तव्यों को निभाना सीखें।

ऐसा नहीं है   कि दहेज के लिए लड़कियों को सताने के मामले कम हो गए हैं। अब भी हर रोजकहीं न कहीं से दहेज उत्पीड़न की खबरें आती रहती हैं। दहेज हत्याओं का सिलसिला भी जारीहै। हालांकि दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा का दूसरा पहलू भी कम चिंताजनक नहीं है। यह हैदहेज कानून की आड़ में लड़के और उसके परिवारवालों को तंग करना दहेज के झूठे मामलेदर्ज कराना। महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने कानूनों का धड़ल्ले से गलत इस्तेमाल हो रहा है।इसी का नतीजा है कि महिला मुक्ति की तर्ज पर पुरुष भी अपने हकों के लिए एकजुट होने लगेहैं।  
मजाक के लिए   तराशे गए जुमले मुझे मेरी बीवी से बचाओ अब हकीकत बन चुके हैं।बीवियों के सताए पति त्रस्त होकर ऐसी गुहार लगा रहे हैं। दहेज और घरेलू हिंसा कानून कीआड़ में अगर बीवी सताए तो हमें बताएं लिखे पोस्टर मेट्रो सिटीज में आम हो गए हैं। कुछलोग पहचान छुपाकर अत्याचार का शिकार पुरुषों की मदद कर रहे हैं तो कुछ सड़कों से लेकरकोर्ट तक और मीडिया से लेकर इंटरनेट तक के जरिए अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। 

2005 में तीन ऐसे ही लोगों से शुरू हुए ग्रुप के साथ अब दुनिया भर में एक लाख से ज्यादाऐक्टिव मेंबर जुड़ चुके हैं। पढ़े लिखे मैनिजमंट आईटी टेलिकॉम बैंकिंग सर्विस इंडस्ट्री ,ब्यूरोक्रेट्स सरीखे सभी फील्ड के प्रफेशनल्स ने मिलकर सेव फैमिली फाउंडेशन बनाई है।इनका दावा है कि दिल्ली एनसीआर में लाख ऐसे लोग हैं जो कथित तौर पर पत्नियों केपक्ष में बने एकतरफा कानून (498 ए और घरेलू हिंसा कानून से पीड़ित हैं या इसे झेल चुके हैं। 

आजादी की आस 
अत्याचार के शिकार पति इस बार स्वतंत्रता दिवस पारंपरिक तरीके से नहीं मनाने वाले हैं। देशभर से करीब 30 हजार लोगों के प्रतिनिधि के तौर पर अलग अलग शहरों से सैकड़ों पति 15अगस्त को शिमला में इकट्ठे हो रहे हैं। ये अत्याचार से आजादी के लिए रणनीति तैयार करेंगे।इनका मानना है कि ये स्त्री केंद्रित समाज में लगातार जकड़ते जा रहे हैं। इन्होंने ऐलान किया हैकि ये तब तक स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाएंगे जब तक इनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं। इनकीमांगे हैं महिला और बाल कल्याण मंत्रालय की तर्ज पर पुरुष कल्याण मंत्रालय बनाया जाए ,घरेलू हिंसा एक्ट में बदलाव किया जाए और तलाकशुदा जोड़े के बच्चों की जॉइंट कस्टडी दीजाए। 
मर्द को भी होता है दर्द 
पुरुष घरेलू हिंसा के शिकार होते हैं या नहीं इसे लेकर अब तक कोई सरकारी स्टडी नहीं हुई है ,लेकिन सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन और माई नेशन की एक स्टडी के मुताबिक 98फीसदी भारतीय पति तीन साल की रिलेशनशिप में कम से कम एक बार इसका सामना करचुके हैं। इस ऑनलाइन स्टडी में शामिल 25.21 फीसदी शारीरिक , 22.18 फीसदी मौखिकऔर भावनात्मक , 32.79 फीसदी आर्थिक हिंसा के शिकार बने जबकि 17.82 फीसदी पतियोंको सेक्सुअल अब्यूज झेलना पड़ा। 

स्टडी रिपोर्ट में कहा गया कि जब पुरुषों ने अपनी समस्या पत्नी द्वारा अपने और परिवारवालों के शोषण के बारे में बताना चाहा तो कोई सुनने को ही तैयार नहीं हुआ। उल्टा सब उन परहंसे। कई ने स्वीकारा कि उन्हें किसी को यह बताने में शर्म आती है कि उनकी पत्नी उन्हें पीटतीहै। स्टडी में विभिन्न सामाजिक और आर्थिक वर्ग के लोगों को शामिल किया गया था। इसमेंज्यादातर मिडल क्लास और अपर मिडल क्लास के थे। ऐसे में सवाल उठता है कि जब पुरुष भीघरेलू हिंसा का शिकार बनता है तो कानून में उसे संरक्षण क्यों नहीं मिलता। विकसित देशों कीतरह घरेलू हिंसा ऐक्ट महिला और पुरुष के लिए बराबर क्यों नहीं है 

498 ए के बारे में कुछ फैक्ट 
गिरफ्तार किए गए लोगों में से 94 फीसदी लोग दोषी नहीं पाए गए। प्री और पोस्ट ट्रायल 
ट्रायल पूरा होने के बाद 85 फीसदी दोषी नहीं पाए गए लेकिन इन्हें भी बिना किसी जांच केगिरफ्तार किया गया। 
यूपी के खीरी जिले में ही सात सालों में 498 ए के तहत 1000 नाबालिग लड़कियां बिनाकिसी जांच के गिरफ्तार की गईं। 
क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में रिफॉर्म्स को लेकर बनी जस्टिस मलिमथ कमिटी ने भी 2005में अपनी रिपोर्ट में 498 ए को जमानती और कंपाउंडेबल बनाने की सिफारिश की थी। 

कानून मिसयूज और सुझाव 

आईपीसी 498 ए 
क्या है कानून अगर किसी महिला को उसका पति या पति के रिश्तेदार दहेज के लिए प्रताडि़तकरते हैं तो इसके तहत उन्हें तीन साल की सजा हो सकती है। इसके दायरे में दूरदराज केरिश्तेदार जैसे शादीशुदा बहन का पति चाहे वह वहां रहता हो या नहीं भी शामिल हो सकताहैं। यह संज्ञेय अपराध है। मतलब बिना कोर्ट के आदेश के पुलिस उनको गिरफ्तार कर सकती हैजिनका नाम एफआईआर में है। यह गैर जमानती है। कोर्ट से ही जमानत ली जा सकती हैऔर कोर्ट पर निर्भर है कि कितने दिन में जमानत दे। 

कैसे होता है मिसयूज पुलिस बिना किसी जांच और सबूत के एफआईआर में नामजद लोगोंको गिरफ्तार करती है। ससुराल पक्ष के लोगों को परेशान करने की नीयत से सबका नामएफआईआर में डलवाया जा रहा है। जिन्होंने एफआईआर करवाई है वह जमानत के लिएविरोध न करने के नाम पर मनचाही रकम वसूल रहे हैं। उन राज्यों में जहां लॉ ऐंड ऑर्डर कीहालात ज्यादा खस्ता है इसका सबसे ज्यादा मिसयूज होता है। यूपी में तो स्टेट अमेंडमंट हैंकि अंतरिम जमानत नहीं मिल सकती। 

कैसे रुके मिसयूज 498 ए में कोई भी शिकायत आए तो गिरफ्तारी तब तक ना हो जब तककोई सबूत या साक्ष्य उपलब्ध न हों। एफआईआर में जो आरोप हैं जैसे लाखों रुपये शादी मेंखर्च किए उसे साबित करने के लिए दो विटनस या डॉक्युमंट एफआईआर करते वक्त ही मांगेजाएं। अभी सिर्फ आरोप लगाना काफी माना जाता है। हालांकि उत्तराखंड जैसे कुछ स्टेट मेंप्रशासनिक स्तर पर बिना किसी ऑर्डर या नोटिस के इसे फॉलो किया जा रहा है। एफआईआरकरने वाले को एफआईआर में शामिल लोगों से कोई मोटी रकम ना दिलाई जाए। इससे लालचबढ़ता है और मिसयूज की संभावना भी। दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस एस एन ढींगरा के एकजजमंट पर दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने गाइडलाइंस जारी की है कि एफआईआर में लाखों रुपयेदहेज में देने के आरोप की जांच करें। अरेस्ट करने के लिए सीनियर पुलिस ऑफिसर कीरिकमंडेशन लें और एफआईआर भी करें तो सीनियर पुलिस ऑफिसर की रिकमंडेशन लें। 

डोमेस्टिक वॉयलंस ऐक्ट 2005 
क्या है कानून इसमें महिला अपने साथ हुए फिजिकल इमोशनल इकॉनमिक सेक्सुअलवॉयलंस की शिकायत कर सकती है। शिकायत करने वाली महिला कोर्ट से संरक्षण रहने केअधिकार बच्चे की कस्टडी और मेंटेनेंस को लेकर ऑर्डर मांग सकती है। यह संज्ञेय याअसंज्ञेय के तहत नहीं आता। कोई भी महिला पुलिस से कोर्ट से या प्रोटेक्शन ऑफिसर सेशिकायत कर सकती है। इसमें स्पीडी ट्रायल होता है। कोर्ट 60 दिनों के भीतर केस खत्म करनेकी कोशिश करती है। 

कैसे होता है मिसयूज अगर कोई लड़की यह शिकायत करे कि उसे घर में मारापीटा जा रहा हैऔर घर से निकाल दिया है तो वह कोर्ट से इस कानून के तहत रेजिडंस राइट मांग सकती है।झूठे आरोप लगाकर कोई भी लड़की ससुरालवालों को घर से बाहर निकलवा सकती है।इमोशनल वॉयलंस का आरोप लगा सकती है जिसका कोई पैमाना नहीं है। 

कैसे रुके मिसयूज यह कानून अमेरिका के कानून की तर्ज पर बनाया गया लेकिन वहां यहकानून जेंडर न्यूट्रल है। वहां बिना जांच पड़ताल और बिना सबूत के कोई ऐक्शन नहीं लियाजाता। हमारे कानून में इसका जिक्र नहीं कि किस तरह इसकी जांच हो। मिसयूज रोकने केलिए जांच की एक प्रक्रिया बनाई जा सकती है और इसे महिला पुरुष के लिए समान बनाया जासकता है। 
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट महेश तिवारी से बातचीत के आधार पर 


'498A.org' नाम से बने एक ग्रुप को ऑनलाइन मिलीं तीन शिकायतें 

पीड़ित -1, नई दिल्ली 
मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं। शादी के बाद मैं मेरी पत्नी और मेरे पेरंट्स साथ रहते हैं।दिक्कत तब शुरू हुई जब मेरे भाई का यहां ट्रांसफर हो गया। तब पिता ने हमें एक दूसरा बड़ाकमरा देकर उस कमरे को छोटे भाई को दे दिया। तब मेरी पत्नी घर पर नहीं थी। जैसे ही वहआई तो मेरे पेरंट्स पर चिल्लाने लगी कि उसका कमरा क्यों चेंज कर दिया है। उसने बेहदगलत शब्दों का इस्तेमाल किया और अपने और मेरी मां के गहने जो उसे पार्टी में पहनने केलिए दिए थे लेकर अपने मायके चली गई। एक महीना हो चुका है। मैं जब भी उससे बातकरता हूं तो वह कहती है हम अकेले रहेंगे। मैं अपना परिवार नहीं छोड़ना चाहता। शादी केबाद से वह हर रोज अपनी मां से मिलने जाती थी। उनका घर हमारे घर से 5-6 किलोमीटर दूरहै। जब कभी मैं उसे वहां न जाने को कहता तो वह मुझे खुदकुशी की धमकी देती। अभी वहप्रेग्नंट है और अब उसके घर वाले अफवाह फैला रहे हैं कि हम उसे मारते थे और हमने उसे घरसे बाहर फेंक दिया। आप बताइये मैं क्या करूं बेहद परेशान हूं। 

पीड़ित - 2, मुंबई 
शादी के बाद ही मेरी पत्नी ने मुझसे कहा मैं हैंडसम नहीं हूं और वह मुझसे संतुष्ट नहीं है।उसने कहा कि उसने अपने भाइयों की डर से मेरे साथ शादी की क्योंकि उन्होंने मुझे चुना था ,लेकिन यह बात वह अपने घर वालों के सामने नहीं कहती। उसने झूठा इल्जाम लगाकर मुझे498 ए में फंसा दिया। मैं एक साल जेल में रहा। मैंने अपर कोर्ट में अप्लाई किया और हमारेबीच समझौता हो गया। अब मैं अपनी पत्नी और उसके पैरंट्स के साथ उनके घर पर रहता हूं।अब फिर वही हाल शुरू हो गया है। वह मुझ पर चिल्लाती है गाली देती है और मेरी सारीसैलरी ले लेती है। मैं अपने मां बाप का इकलौता बेटा हूं। वह मेरे साथ नहीं रहना चाहती।उसकी मां और भाई धमकाते हैं कि उसके साथ ही रहूं नहीं तो वह फिर 498 ए के तहतशिकायत कर देंगे। मैं कैसे इससे बाहर निकलूं 

पीड़ित - 3, मेंगलूर 
मैं एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करता हूं। कभी कभी काम के सिलसिले में बाहर जाने परपत्नी को अपने पेरंट्स के साथ छोड़ता हूं। लेकिन यह उसे अच्छा नहीं लगता। उसे लगता है किमैं उसकी केयर नहीं करता। मैं अपने परिवार के साथ रहना चाहता हूं लेकिन वह इसके लिएतैयार नहीं है। एक दिन वह पुलिस स्टेशन गई और शिकायत दर्ज करा दी कि मैं उसे पीटता हूंऔर मैं और मेरे परिवार वाले उसे दहेज के लिए परेशान करते हैं। हकीकत यह है कि मेरा काफीपैसा बहुत समय तक उसके पिता के पास था जो उन्होंने अपने बेटे की शादी में इस्तेमाल किया।पुलिस हमारे घर आई और हम सब को पुलिस स्टेशन ले गई लेकिन हमारे कुछ कॉन्टेक्ट थे ,इसलिए लंबी बहस के बाद केस रजिस्टर्ड नहीं हुआ। तब उसके पेरंट्स भी मौजूद थे। तब से मैंशर्मिन्दगी महसूस करता हूं। अपनी पत्नी से बात करने का मन नहीं करता जबकि वह मेरेसाथ ही रह रही है। 

क्या आपको भी लगता है कि दहेज कानून का दुरुपयोग हो रहा है। अपनी राय देने के लिए 


पतियों से पीडित पत्नियों के हक के लिये कई संगठन संघर्ष कर रहे हैं लेकिन पत्नियों के हाथों सताये गये पतियों के हक में लडाई लडने के लिये आल इंडिया फॉरगौटेन वुमेन. बनाया गया है । इस संगठन की अध्यक्षा उमा चल्ला का कहना है कि हर दिन पतियों एवं उनके परिवार वालों के खिलाफ अनेक फर्जी मामले देश भर में दर्ज किये जा रहे हैं और फर्जी शिकायतों के आधार पर निर्दोष पुरूषों एवं उनके सगे.संबधियों को जेलों में डाला जा रहा है। यह संगठन न केवल पतियों के बल्कि पत्नियों एवं सास के हकों के लिये भी संघर्ष कर रहा है।

श्रीमती उमा ने कहा कि उनके संगठन का लक्ष्य लैंगिक विषमताओं एवं भेदभाव से उपर उठकर हर किसी के हितों की रक्षा के लिये संघर्ष करना है। उन्होंने बताया कि संगठन ने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि घरों में छोटे.मोटे झगडों एवं मनमुनाव के बाद कई महिलायें अपने पतियों एवं सास.श्वसुर को ब्लैकमेल करती है।

करवा चौथ के दिन भी महिलाएं पतियों के खिलाफ कार्रवाई पर अड़ीं
करवा चौथ के दिन जहां पत्नियां अपने पतियों की लंबी उम्र और सलामती के लिये व्रत रख रही थीं। वहीं जबलपुर के परिवार परामर्श केन्द्र में अनेक पत्नियां अपने पतियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई किये जाने के अलावा किसी प्रकार के समाधान के लिये सहमत नहीं हुई। परिवार परामर्श केन्द्र से प्राप्त जानकारी के अनुसार करवा चौथ के दिन केन्द्र में वैवाहिक विवाद के 42 मामलों की सुनवाई की गयी। केन्द्र में ऐसा पहली बार हुआ कि इन 42 मामलों में एक भी निपटारा आपसी समझौते से नहीं हो पाया।

सुनवाई के दौरान पति पीड़ित अधिकांश पत्नियां करवा चौथ होने के बावजूद परिवार परामर्श के सलाहकारों के समक्ष पतियों एवं ससुराल पक्ष के लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के अलावा किसी प्रकार के समाधान के लिये सहमत नहीं थी। सलाहकारों की समझाइश के बावजूद 12 मामलों में विवादित परिजनों ने आपसी सहमति से अलग-अलग रहने एवं विधि अनुसार आचरण करने का निर्णय लिया। इसके साथ ही आठ पतियों द्वारा पत्नियों से पीडित होकर आवेदन प्रस्तुत किये थे। लेकिन उनकी पत्नियां दिन भर के इंतजार के बाद भी नहीं आईं। सलाहकारों ने ऐसे पतियों को न्यायालय की शरण लेने की सलाह दी।


स्त्री-पुरुष के विपरीत स्वभाव पर दिलचस्प जानकारियाँ

स्त्री-पुरुष के विपरीत स्वभाव पर दिलचस्प जानकारियाँ

पुरुष और महिलाएं भले ही हमराही हो गए हों, लेकिन दोनों का मूल स्वभाव आज भी अलग-अलग है। हर काम करने का दोनों का अंदाज़ एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा होता है। पुरुषों को स्वभाव से आक्रामक, प्रतियोगिता में विश्वास रखने वाला और अपनी बातों को छिपाने में माहिर माना जाता है। दोस्तों से बातचीत में पुरुष अपने सारे राज़ भले ही खोल दें, लेकिन किसी अजनबी से गुफ्तगू में पूरी सावधानी बरतते हैं। कारण, उनकी किसी बात से विरोधी फायदा न उठा सकें। पुरुष आमतौर पर अपने कामकाज़ में किसी तरह की दखलंदाज़ी बर्दाश्त नहीं करते।

आपको यह जानकर हैरत होगी कि बड़े से बड़ा नुकसान होने और बहुत ज़्यादा खुशी दोनों ही हालत में पुरुष सेक्स की ज़रूरत शिद्दत से महसूस करते हैं। वे इसे तनाव से मुक्ति पाने वाला भी मानते हैं। वहीं, महिलाएं पुरुष-मित्र या पति से झगड़ा होने पर चाहती हैं कि उनकी बात को पूरी तरह सुना जाए, लेकिन अगर कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से झगड़े के बाद उसे अपनी मज़बूत बांहों का सहारा देता है और दिल से उससे माफी मांग लेता है, तो महिलाएं सब कुछ तुरंत भूल जाती हैं। महिलाएं तारीखों का काफी हिसाब-किताब रखती हैं। उन्हें अपने जीवनसाथी या पुरुष-मित्र के साथ-साथ दोस्तों, परिचितों और पारिवारिक सदस्यों के जन्मदिन और सालगिरह की तारीखें याद रहती हैं, जबकि पुरुष कभी-कभी अपनी महिला-मित्र या पत्नी का भी जन्मदिन भूल जाते हैं।

महिलायें एक समय पर कई काम कर सकती हैं। वे फोन पर बात करते-करते टीवी देख सकती हैं। डिनर तैयार करते समय बच्चों की निगरानी कर सकती हैं, लेकिन पुरुष एक समय में एक ही काम करने में विश्वास रखते हैं।
पुरुषों के मुकाबले महिलाएं संकेत पहचानने में ज़्यादा माहिर होती हैं, लेकिन वे दिल के मामले में अपनी बात किसी पर जल्दी ज़ाहिर नहीं करतीं। महिलाएं अपने साथी की आंखों, बातों और उसके चेहरे के हाव-भाव से उसकी चाहत का अंदाज़ा बखूबी लगा लेती हैं, लेकिन किसी से कुछ कहतीं नहीं। जबकि पुरुष 'वो मुझे चाहती है, वो मुझे नहीं चाहती' की भूलभुलैया में भटकते रहते हैं।

पुरुष किसी भी चीज़ की ज़रूरत होने पर बड़ी आसानी से उसकी मांग कर देते हैं, पर महिलाएं अपनी पसंद की चीज़ की तरफ पहले केवल इशारा ही करती हैं। इसे न समझने पर वह अपनी मांग शब्दों से ज़ाहिर करती हैं। महिलाएं आमतौर पर अपने बच्चों की तमाम ज़रूरतों के प्रति सजग रहती हैं। उनकी पढ़ाई, अच्छे दोस्तों, प्रिय खाद्य पदार्थ , उनकी आशाओं और सपनों से वे पूरी तरह वाकिफ होती हैं, जबकि पुरुषों का ज़्यादातर समय बाहर बीतता है, इसलिए वे अपने बच्चों को उतनी अच्छी तरह नहीं जान पाते।

महिलाएं टीवी देखते समय एक ही चैनल पर ज़्यादा समय तक टिक सकती हैं। किस चैनल पर उनका पसंदीदा प्रोग्राम कब आएगा, यह उन्हें अच्छी तरह पता होता है, वहीं पुरुष एक समय में छह या सात चैनल देखते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि कुछ समय पहले वे किस चैनल पर कौन-सा कार्यक्रम देख रहे थे! महिलाओं को सोने के लिए पूरी शांति की ज़रूरत होती है। हो सकता है कि एक बल्ब जलता रहने पर वह चैन से न सो पाएं, जबकि पुरुष शोर में भी 'घोड़े बेचकर' सो सकते हैं। चाहे कुत्ते भौंक रहे हों, तेज़ आवाज़ में गाना बज रहा हो या बच्चे ऊधम मचा रहे हों, अगर उन्हें सोना है, तो फिर कोई भी चीज़ उनके लिए कोई मायने नहीं रखती।
(हैलो दिल्ली, नवभारत टाइम्स से साभार)

टाई लगायी, मूंछ कटायी, फिर भी मामला गड़बड़ है

टाई लगायी, मूंछ कटायी, फिर भी मामला गड़बड़ है

शहरी लुक देने के चक्कर में बीवी ने उसकी शानदार मूंछेकटवा दी। गांव में उसे टाई लगाकरघूमने के लिए दबाव बनाती है। गांव के युवक को शहरी बनाने के सपने देखने वाली एक ब्याहता अपने पति और ससुरलियों पर मारपीट करने का आरोप लगा रही है, जबकि उसके पति ने महिला पर ही आरोप लगाते हुए कहा कि उसे शहरी बनाने के चक्कर और घरेलू काम न करने के चलते विवाद हो रहा है। फिलहाल मामला परिवार परामर्श केंद्र में है।

अमर उजाला में आयी इस ख़बर के मुताबिक, विजयनगर, गाजियाबाद के रहने वाले इस युवक की शादी 30 जनवरी 2005 को दिल्ली निवासी युवती के साथ हुई थी। युवती का आरोप है कि शादी के बाद से ही उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा। उससे दहेज की मांग की गई, मांग पूरी न होने पर उसके साथ मारपीट की गई। इन हालातों में उसका ससुराल में रहाना दूभर हो गया। जिसके चलते वह काफी दिनों से अपने मायके में रह रही है।

दूसरी तरफ, विवाहिता का पति दूसरा ही मामला बता रहा है। उसका कहना है की उसकी बीवी न तो ढंग का खाना बना पाती है, न ही कोई घरेलू काम करती है। साथ ही गांव के माहौल मेंरहने के बावूजद उसे शहरी लुक देने के चक्कर में लगी रहती है। वह मूंछे रखता था, उन्हें उसने कटवा दिया। इतना ही नहीं, टाई लगाने के लिए जोर देती है। कई बार वह लगा भी चुका है, लेकिन बार-बार उसके लिए यह सब करना बहुत मुश्किल है। गांव के माहौल में उसे यह सबकरना बहुत अजीब लगता है। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए। परिवार परामर्श केंद्र के काउंसलरों के मुताबिक, दोनों पक्ष समझाने पर साथ रहने के राजी हो गए हैं। अब कुछ शर्तों के तहत ब्याहता को उसके ससुराल भेजा जाएगा।

पत्नी कैसे बदलती है ... पुत्र की भावनाएँ पिता के लिए

पत्नी कैसे बदलती है ...

शादी के बाद पत्नी कैसे बदलती है, जरा गौर कीजिए...

पहले साल: मैंने कहा जी खाना खा लीजिए, आपने काफी देर से कुछ खाया नहीं .
दूसरे साल: जी खाना तैयार है, लगा दूं ?
तीसरे साल: खाना बन चुका है, जब खाना हो तब बता देना.
चौथे साल: खाना बनाकर रख दिया है, मैं बाजार जा रही हूं, खुद ही निकालकर खा लेना.
पांचवे साल: मैं कहती हूं आज मुझसे खाना नहीं बनेगा, होटल से ले आओ.
छठे साल: जब देखो खाना, खाना और खाना, अभी सुबह ही तो खाया था ...


पुत्र की भावनाएँ पिता के लिए

इस पितृ-दिवस (Father's Day) पर बड़ी मजेदार चीज़ दिखी। आप भी आनंद उठाईये।

एक बेटा अपनी उम्र में क्या सोचता है?
४ साल - मेरे पापा महान हैं।
६ साल - मेरे पापा सब कुछ जानते हैं।
१० साल - मेरे पापा अच्छे हैं, लेकिन गुस्सैल हैं।
१२ साल - मेरे पापा, मेरे लिए बहुत अच्छे थे, जब मैं छोटा था।
१४ साल - मेरे पापा चिड़चिड़ाते हैं।
१६ साल - मेरे पापा ज़माने के हिसाब से नहीं चलते।
१८ साल - मेरे पापा हर बात पर नुक्ताचीनी करते हैं।
२० साल - मेरे पापा को तो बर्दाश्त करना मुश्किल होता जा रहा है, पता नही माँ इन्हें कैसे बर्दाश्त करती है?
२५ साल - मेरे पापा तो हर बात पर एतराज़ करते हैं।
३० साल - मुझे अपने बेटे को संभालना तो मुश्किल होता जा रहा है। जब मैं छोटा था, तब मैं अपने पापा से बहुत डरता था।
४० साल - मेरे पापा ने मुझे बहुत अनुशासन के साथ पाल-पोस कर बड़ा किया, मैं भी अपने बेटे को वैसा ही सिखाऊंगा।
४५ साल - मैं तो हैरान हूँ किस तरह से मेरे पापा ने मुझको इतना बड़ा किया।
५० साल - मेरे पापा ने मुझे पालने में काफी मुश्किलें ऊठाईं। मुझे तो तो बेटे को संभालना मुश्किल हो रहा है।
५५ साल - मेरे पापा कितने दूरदर्शी थे और उन्होंने मेरे लिए सभी चीजें कितनी योजना से तैयार की। वे अपने आप में अद्वितीय हैं, उनके जैसा कोई भी नहीं।
६० साल - मेरे पापा महान हैं.

सजने-संवरने में जिंदगी के तीन साल गंवा दिए !

सजने-संवरने में जिंदगी के तीन साल गंवा दिए !

पत्नियों को शायद यह पसंद न आए लेकिन एक ताजा अध्ययन के मुताबिक महिलाएं घर के बाहर निकलने से पहले सजने-संवरने में अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण तीन साल गंवा देती हैं।

औसतन महिलाएं रात में किसी बड़े आयोजन में जाने से पहले सजने-संवरने में सवा घंटा लगाती हैं। इसमें आखिरी समय में पहने हुए कपड़े बदलना, कपड़े को ठीक तरह से आईने के सामने खड़े होकर निहारना और अपने पर्स या हैंडबैग में चीजें ढूंढना शामिल है।

यह जानकर हैरानी होगी कि आमतौर पर महिलाएं नहाने और पैरों से बाल साफ करने में 22 मिनट, चेहरे या शरीर पर मॉइश्चराइजर या सन्सक्रीन लगाने में सात मिनट, 23 मिनट बाल संवारने में और 14 मिनट मेक-अप करने में लगती हैं। सही मायने में कपड़े पहनने में वे केवल छह मिनट लगाती हैं।

महिलाएं आमतौर पर हर सुबह काम पर जाने से पहले तैयार होने में 40 मिनट लेती हैं और यह सजना-संवरना उनकी जिंदगी के दो साल और नौ महीने खा जाता है।

पुरुषों की बात करें तो वे अपनी साथी द्वारा हैंडबैग खरीदने और एक और जोड़ी जूते पहनकर देखते वक्त उनके इंतजार में अपनी जिंदगी के तीन महीने गंवा देते हैं।

पुरुषों को अपनी साथी महिलाओं के तैयार होने और कपड़े पहनकर देखने की पूरी प्रक्रिया में बाहर खड़े रहकर इंतजार में 17 मिनट और 25 सेकंड लगाना पड़ता है।

डेली मेल के मुताबिक यह अध्ययन शार्लोट न्यूबर्ट द्वारा किया गया है।

इस जानकारी के बाद यह जानकर हैरत नहीं होगी कि अध्ययन के मुताबिक 70 प्रतिशत पुरुष इस तरह इंतजार करने से चिढ़ते हैं और 10 फीसदी पुरुषों ने तो इस कारण संबंध ही खत्म कर दिए हैं।

कुछ रोचक खबरे ...और आपकी राय ......

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अपनी मर्जी से मायके में रह रही महिला को भरण-पोषण की राशि पाने का अधिकार नहीं

 जबलपुर के पारिवारिक न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि अपनी मर्जी से मायके में रह रही महिला को भरण-पोषण पाने का हक नहीं है। विशेष न्यायाधीश शशिकिरण दुबे द्वारा एक महिला द्वारा दायर अर्जी खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी। श्रीमती आराधना की ओर से दायर अर्जी पर हुई सुनवाई के दौरान महिला की ओर से पति दीपक से भरण-पोषण की राशि दिलाए जाने की प्रार्थना की गई थी। सुनवाई के दौरान महिला ने स्वीकार किया था कि वह ससुराल वालों के साथ व्यवस्थित नहीं हो पा रही है, इसलिए वह अपने पति से बंधन मुक्त होना चाहती है। उसने इस आशय का एक पत्र अपने पिता को भी लिखा था कि ससुराल में उसका मन नहीं लगता। इन तमाम बातों पर गौर करने के बाद अदालत ने अर्जी पर फैसला देते हुए कहा कि यह पत्नी द्वारा पति का स्वैच्छिक परित्याग माना जाएगा। पति भले ही कमाई कर रहा हो, लेकिन अपनी मर्जी से मायके में रह रही महिला भरण-पोषण की राशि पाने का अधिकार खो चुकी है।
 इस मत के साथ अदालत ने महिला की अर्जी खारिज कर दी।

पति की सहमति बिना, पत्नी द्वारा गर्भपात कराना, तलाक का आधार है

 सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि अपने पति की सहमति के बिना किसी महिला द्वारा गर्भपात कराना मानसिक प्रताड़ना के समान है। उसका पति इस आधार पर तलाक मांगने का हकदार है। न्यायालय ने सुधीर कपूर की इस अर्जी को उचित ठहराया कि वह हिंदू विवाह कानून के तहत तलाक पाने का हकदार है क्योंकि उसकी पत्नी सुमन कपूर ने उसकी रजामंदी के बगैर तीन बार गर्भपात कराया। सुधीर ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी ने गर्भपात कराये क्योंकि वह परिवार को आगे बढ़ाने के बजाय अमेरिका में अपना करियर बनाना चाहती थी। उसने यह भी आरोप लगाया कि सुमन ने उसके माता पिता और परिवार के अन्य सदस्यों का लगातार अपमान किया। एक वैवाहिक अदालत ने इन आरोपों के आधार पर सुधीर को तलाक की मंजूरी दी। महिला ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया। उच्च न्यायालय ने वैवाहिक अदालत के फैसले की पुष्टि की। इसके बाद सुमन ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। सर्वोच्च न्यायालय ने रिकॉर्ड और कई न्यायिक फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा कि सुमन का कार्य मानसिक प्रताड़ना के बराबर है और उसका पति तलाक का हकदार है।

रमेश कुमार सिरफिरा द्वारा एकत्र की गई जानकारी ....

10 comments:

  1. I need help regarding that issues,

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  2. thank you, bahut accha blog hai ,ye sach hai ki jydatar pati (94%) jhoothey mamlo me fasaye jatey hai,aur unki koi nahi sunta hai ,vo kya kare ,kahan jaye,? is liye ab sarkar ko is tahara ke kanoono ko khatam kar dena chahiye.

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  3. सिर्फ तलाक क्यों पत्नी के ऊपर अपराधिक मामला चलना चाहिए ।

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  4. सिर्फ तलाक क्यों पत्नी के ऊपर अपराधिक मामला चलना चाहिए ।

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  5. जिस तरह से लड़को को और उनके परिवार को सजा मिलती है, उसी तरह लड़कियों को और उसके परिवार को भी सजा मिलनी चाहिए

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  6. Government nai bhout galt kiya hai jo koi bhi aisa kanun ni deya jo ladhki pai dabav bana dai... ladhkiya tou jhutai mukdmai kr dai tei hai jis mai ek ki hinsa mai purai parivar valo yaha tk bhain bhanoi tk ko khich lai tei hai tb bhi es kanun ko yai ni dekh ta ki shadi ek sai hue saja en sb ko..... akhir kar yai konun hi ghr begadh ra hai jo ladhkiyo ko badhva dai ta hai... or vo ghr akr apni maan mani chala tei.... hai...

    Meri manineyai adalat sai vintei hai ki aap plz apnai law mai koi chang karai jis kuch tou dabav ban jy ladhkei pr.....

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  7. जबकि अदालत में झूठी साबित हो गयी के बदले में सजा कैसे हो

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  8. Agar patni 125 crpc ki application dede to pati isse kese bache

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